Wednesday 7 October 2015

Jai Banmataji

अनन्त कोटि रो देवरो , बैठी किला रे माई ।
रक्षा करें माँ मेवाड़ री , बाणेश्वरी मम् माई ।
जद पुकारी राणा सहाय ने , हंस चढ़ बेगी आई ।
इष्टदेव एकलिंग रे संग में , माँ थू है पुजाई ।
क्षत्रियो री सहाय ने , द्वापरयुग में माँ आई ।
यज्ञ कुण्ड सु आप , कन्या रूप प्रकटाई ।
बाणासुर मारने , धर अन्धकार मिटाई ।
जय जय कार किनी देवता , बायण रुपे ओळखाई ।
जाये बिराजी दक्षिण में , कुमारी अम्मा कहलाई ।
ईडर सुता बप्पा राज ने , स्वप्न में दरश दिखाई ।
राज करो थे राजवी , साथै थारे थारी माई ।
बप्पा मुख सु बोलिया माँ , नही राज मारे माई ।
बाण बावो राजवी , पड़े जठे थारो राज बसाई ।
हुकुम सुण हंसावाळी रो , बप्पा बाण बाई ।
कृपा करी धनियाणि माँ , चित्तोड़ बाण गिराई ।
राज बसायो राजवी , बायण कुलदेवी माई ।
नित नमिया थारे सामने , मन्दिर जोर बणाई ।
रक्षा भार दियो राजवी , रक्षा कीजे माई ।
शिशोदा गहलोत सरदार , लक्ष्मण पर कृपा कराई ।
आखेट खेलण पाटण पधारिया , थो आखेट जिताई ।
प्रसन्न हो भटियाणी , राजकुमारी सोलंकणि परनाई ।
सुता लक्ष्मण ने सपनो आवियो , काली रूप दिखाई ।
साथे चालु राणा थारे , रक्षा करू मो कुलमाई ।
थू धनियाणि धोरा री , साथै चलो माई ।
इक शरत सेवक री , मिठो भोग चढ़ाई ।
बलि नही चढ़े भवानी , लक्ष्मण मुख कहाई ।
प्रसन्न हो डोकरी , रूप उज्जवल कराई ।
राजकुमारी लक्ष्मण संग में , शिशोदा आई ।
शिशोदा मंदिर बणा , बायण नाम देराई ।
लक्ष्मण पोत्र हमीर हठीला , नित बायण रो गुण गाई ।
राजधानी शिशोदा बदल , केलवाडा आस्था केंद्र बनाई ।
बायण थारी महिमा गुणगान करी , मंदिर जोर बणाई ।
नित नित नमिया थारे देवरे , मनवांछित फल पाई ।
हमीर करी अरदास भवानी , गहलोत एक कराई ।
कृपा भई मावड़ी थारी , चित्तोड़ राज पुनः देराई ।
बेर लेवण ख़िलजी अत्याचारी , फौज मोकळी मंगाई ।
गेरियों गढ़ चित्तोड़ रो , संकट भारी आई ।
हमीर सिंह आराध किनी , आई मेवाड़ वाळी माई ।
अन्न-धन्न रा भण्डार भरी , हमीर री किनी सहाई ।
ख़िलजी ख़ौप सु नायगो , धिन धिन हमीर री माई ।
बायण थू मोटी माड़ी , सब सेवकीयो रे मन भाई ।
हंस सवारी हद सोवे , धनुष बाण हथ माई ।
सिसोदिया गहलोत वंश पूजे , तू कुल री कुल माई ।
ढ़ोल नगाड़ा नोपत बाजे , गूंजे जयकारो देवलोक ताई ।
बप्पा लक्ष्मण ध्यावे , हमीर चरणा माई ।
सेवकीयो पर कृपा करो माँ , कमी न राखो काई ।
छतर छाया राखजो , भक्तो री दुहाई ।
भोग लगाऊ चुरमो , राती लापसी रंदाई ।
आठम रात जमलो जागियो , आवि घूमर रमो माई ।
अनुराधा ने चरणे राखजो , मोटी है मम् माई ।
प्रदीप जस थारा गावता  , हिवड़े ज्यारे थू भाई ।
महेंद्र सिंह सेवक चरण रो , भजन थारो गाई ।
विनंती सूणलिजे मावड़ी थू , दर्शन दीजे सपने आई ।
नित नमण रो माजी मन हुवे है , चरणा में थारे माई ।
बाण तू ही ब्राह्मणी , बायण सु ओळखाई ।।

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