Sunday 27 December 2015

श्री ब्राह्मणी माताजी और श्री कालिका माताजी ( भवाल माताजी )

मित्रों हम आपको माँ के इस @[306557149512777:] पेज के माध्यम से बाण माताजी के विभिन्न मंदिरों की जानकारी देते एवं माँ बायण का इतिहास बताते आ रहे है , आज हम आपको भवाल माताजी के नाम से विख्यात श्री ब्राह्मणी ( बाण , बायण ) माताजी और श्री कालिका माताजी के इस मंदिर के बारें में बताएँगे । इस मंदिर में कालिका माताजी के सन्मुख ही श्री बाण माताजी विराजमान है ।
भँवाल माँ का इतिहास
यु तो इतिहास बनाने वाली का इतिहास कोई नहीं बता सकता परन्तु कथा साहित्य लिखने से मनुष्य अपनी जानकारी बढ़ा सकता है और इसी सन्दर्भ में हम माँ के भँवाल धाम पर अवतारित होने की गाथा को लिख रहे है !
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जय भंवाल माँ
माँ भवानी की कथा
दन्त कथा के अनुसार सत-युग में भक्त की करुण पुकार सुन माँ भंवाल ने , जो की उस समय काठियावाड़ के भंवाल गढ़ गांव (तत्कालीन जिला नागौर, राजस्थान ) में एक खेजड़े के निचे से धरा फाड़ के मूर्ति रूप में प्रकट हुई और आकाशवाणी करके बतलाया के हम दो बहने कालका व् ब्राह्मणी के रूप में आई है और ये मूर्ति हमारी निशानी रहेगी !! जब जब भक्त (सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी ) यहाँ आके सच्चे मन से हमें पुकारेंगे हम अवश्य ही उनकी  मनसा पूर्ण करेंगी !!
शिलालेख और जैसे हमारे बड़ो ने बताया ......
विक्रम संवत - १०५० के आस - पास एक डाकुओं की बड़ी टुकड़ी को उस समय के राजा की सेना ने घेर लिया था !! वह डाकू माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे और मृत्यु निकट दिख रही थी !! तभी उन्हें सामने माँ कालका - ब्राह्मणी की मूर्ति का साक्षात्कार हुआ !
होरम पल्ला पसार के माँ के सामने नतमस्तक हो कहा " हे माँ अब हमारे प्राण तुम्हारे हाथ है, अगर हमे आपकी दया प्राप्त हुई और हमारे प्राण आपने बचा लिए तो माँ जो कुछ हमारे समक्ष है सब कुछ आपको समर्पित कर देंगे !! और जैसे ब्रह्मा जी कहते है " यम यम चिन्तयते कामम् तम तम प्राप्नितो निश्चितं " अर्थात जिस जिस काम की प्राणी तू कामना करेगा माँ उसे अवश्य की सिद्ध कर देंगी सो माँ ने सभी डाकुओं को भेड बकरी में बदल दिया और सामने होते हुए भी भर जोर कोशिश के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा !!
अब वचन अनुसार जो भी कुछ डाकुओं के पास था माँ को समर्पित किया! परन्तु प्रसाद चढाने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण बहुत निराश हो रहे थे! तभी मन में विचार आया के माँ तो प्रेम भावना से प्रसन होती है ये मदिरा को हम अगर प्रेम भावना से चढ़ाएंगे तो क्या माँ ग्रहण करेंगी ?
झिज्ञासा और वात्सल्य से प्रेरित हो माँ को एक प्याला मदिरा का ज्यों ही चढाने के लिए बढ़ाया तो आश्चर्य चकित होगये के प्याला स्वयं ही खाली हो गया, उत्सुकता वष दूसरा प्याला बढ़ाया और वो भी खाली परन्तु जैसे ही तीसरा प्याला आगे बढ़ाया तो आधा ही खाली हुआ !! तो डाकू सोच में पड़ गए के आखिर क्या गलती रह गयी जो माँ ने तीसरा प्याला नहीं पीया !! तब माँ ने दर्शाया के तुम्हारे प्रेम का प्रसाद है इसलिए जो भी तुम ने दिया मैंने ग्रहण किया अब बचा हुआ आधा प्याला भैरों को चढ़ा दो और आज से ये प्रसाद(तामसिक*) मुझे (अर्थात कालका माँ ) चढ़ेगा !! और माँ ब्राह्मणी के आदेशानुसार उन्हें फल फूल मिठाइयां चढ़ाई जाती है !!
* इसी लिए पहले के समय मदिरा के अलावा रक्त का प्रसाद भी चढ़ता था !!
धन्य है वो डाकू जो माँ को इतने सच्चे मन से पुकारा की उन्हें दर्शन दे दिया !!
और इसी चमत्कार को नमस्कार करते हुए डाकुओं ने दृढ़ संकलप लिया के वे यहाँ माँ के भव्य मंदिर का निर्माण करेंगे और ६० वर्षों तक भक्ति में लीन हो कर उन्हों ने माँ का अद्भुत मंदिर खड़ा किया !! और विक्रम संवत १११९ में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ !! माँ की भक्ति की शक्ति ही प्राप्त थी उन्हें इसी लिए बिना किसी औजार व् वाहन के साधन के भी पांच पांच हज़ार किलो तक के पत्थर को बिना चुना और सीमेंट के जोड़ दिया !! और बेजोड़ नकाशी का कार्य जो आज हम बिना आधुनिक उपकरण के हम सोच भी नहीं सकते उन्होंने साकार कर दिया !! माँ के पुण्य प्रताप से उन्होंने अपने छुपने के लिए माँ के पास ही रहना सबसे उत्तम समझा इसीलिए माँ के निज आले के ऊपर ही एक गुफा बनायीं जो की आज भी विधमान है !!
इसके पश्च्यात मंदिर में कई बदलाव भक्तो द्वारा समय समय पे किये गए !
माँ आज भी अपने बच्चों से प्रसन होकर तामसिक भोग लगाती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है !!
यह हमारे पूर्व जनम के संस्कार ही है के हमें माँ के चरणो में ठिकाना मिला और माँ ने हमे (राजपूत/ बैंगाणी/ अन्य ओसवाल /झांझरा......)को अपने कुल में पैदा किया !! ऐसी कुल धिराणी पा के हम तो धन्य हो गए !! माँ यो ही हम पर मेहर बरसाती रहे और हम यु ही माँ की भक्ति में दुबे रहे ...इसी के साथ

" काळी कल्याणी मावड़ी , लेह ढ़ाई प्याला रो भोग ।
ब्राह्मणी बेठी साथ में , भजिया मिटे सब रोग ।। "

जय श्री बाण माताजी
जय श्री कालिका माताजी
जय श्री सोनाणा खेतलाजी
जय श्री एकलिंग नाथ जी

Saturday 26 December 2015

माँ ब्राह्मणी मंदिर - राजा सुरथ से जुड़े इतिहास

मां ब्राह्मणी मंदिर : राजा सूरथ से जुड़े हैं इतिहास
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जय माँ बाण/बायण/ब्राह्मणी माताजी
हनुमानगंज (बलिया) : जिला मुख्यालय से पांच किमी उत्तर बलिया-सिकंदरपुर मुख्य मार्ग पर ब्रह्माइन गांव स्थित मां ब्राह्मणी देवी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के बीच आस्था का केंद्र ¨बदु बना हुआ है। मान्यता है कि सच्चे मन से जिस किसी ने कुछ मांगा, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। नवरात्र में ही नहीं बल्कि अन्य अवसरों पर भी दर्शन-पूजन को दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। दुर्गा सप्तशती व मारकंडेय पुराण में वर्णित है कि भवन के राजाओं से हार कर राजा सूरथ कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने के बहाने निकल गए। आज जहां ब्रह्माइन गांव स्थित है कालांतर में वहां जंगल था। वहीं रुके और सैनिकों से पानी लाने को कहे। सैनिकों को कुछ दूर चलने पर एक सरोवर दिखाई दिया। वहां से पानी लाकर उन्होंने राजा को दिया। राजा युद्ध में घायल हो गए थे और शरीर के कई जगह से मवाद निकल रहा था। राजा ने जब उस पानी का स्पर्श किया तो वहां का कटा व मवाद युक्त घाव ठीक हो गया। इस घटना से चकित राजा ने सैनिकों को उस स्थान पर ले चलने को कहा जहां से वे जल लाए थे। वहां पहुंचने के बाद राजा ने उस सरोवर में छलांग लगा दी जिससे उनका पूरा शरीर सोवरन हो गया वहां पर राजा ने विचार किया कि निश्चय ही ये स्थान कोई पवित्र जगह है। सैनिकों को भेजकर राजा अकेले ही विचरण करने लगे वहीं पर उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया वह आश्रम महर्षि मेधा का था। महर्षि से उचित सत्कार पाकर राजा उनके आश्रम में विचरण करने लगे। कुछ दिनों बाद वहां पर एक समाधि नाम का वैश्य आया जिसे उसके परिजनों ने धन के लोभ में घर से निकाल दिया था। राजा सूरथ व समाधि ने ऋषि मेधा से शांति पाने का उपाय पूछा। ऋषि ने आदि शक्ति की उपासना को कहा। वहीं पर राजा सूरथ व समाधि ने तीन वर्षों तक मां ब्रह्माणी की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ब्रह्माणी देवी अवतरित हुई दोनों को मनोवांछित फल देकर अभिलाशित किया। राजा सूरथ की तपोस्थली सुरहा के नाम से विख्यात हुई और उससे निकलने वाला एक मात्र नाला जिसके जल से राजा का कोढ़ जैसा शरीर सुंदर हो गया, वह कटहल नाले के नाम से विख्यात हुआ।

Sunday 29 November 2015

श्री ब्राह्मणी माताजी की पल्लू में होने वाली आरती

श्री ब्राह्मणी माता जी पल्लू ( हनुमानगढ़ , राज.)
श्री ब्राह्मणी माताजी के पल्लू स्थित मंदिर में होने वाली आरती

श्री ब्रह्माणी माता जी की आरती

जय अम्बे गौरी, मइया जय आनन्द करनी ।
तुमको निश-दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री ॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृग मद को ।
कमल सरीखे दाऊ नैना, चन्द्र बदन नीको ॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनि-जन-सेवत, सबके दुखहारी ॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥
शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर - घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निश दिन मदमाती ॥
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु कैटभ दोऊ मारे, सुर भय हीन करे ॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरुँ ॥
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥
भुजा अष्ट अति शोभित, वर मुद्रा धारी ।
मन वांछित फल पावे, सेवत नर नारी ॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्री पल्लू कोट में विराजत, कोटि रतन ज्योति ॥
श्री अम्बे भवानी की आरती, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे ॥
जय अम्बे गौरी, मइया जय आनन्द करनी ।
तुमको निश-दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री ॥

जय श्री ब्राह्मणी माताजी
जय श्री सोनाणा खेतलाजी
जय श्री एकलिंग नाथ जी

श्री ब्राह्मणी माताजी पल्लू राजस्थान के ब्लॉग से साभार

Wednesday 18 November 2015

श्री बाण माताजी की महाराणा प्रताप को सहायता

"श्री बाण माताजी ने महाराणा प्रताप को दिया था चमत्कार "
मित्रो सभी को जय माँ बायण की अरज होवे सा.......महाराणा प्रताप व अकबर की एक कहानी जो मैने पापा हुकुम से सुनी थी, बहुत दिनो से सोच रहा था आप स्भी के साथ शेयर करु, आखिर कर आज शेयर कर ही देता हुँ....बात उन दिनो कि है जब महाराणा प्रताप एवम अकबर के बीच युध्य चल रहा था, ,महाराणा प्रताप अकबर की तलाश मे वनो मे भटकते हुए उज्जैन नगरी मे पहुंच गये वहा वे एक गाँव से गुजर रहे थे तभी वहा एक महिला महाराणा प्रताप को देख कर म आवभगत करती ह तथा महाराणा से निवेदन करती हे किआप मेरे घर पधार कर विश्राम करे, महाराणा काफी थक चुके थे अत:वे उस महिला के घर जाने के लिये तैयार हो गये जब महाराणा वहा पहुँचते है तो महिला महाराणा के लिये बिस्तर लगाती है तथा आराम फरमाने का निवेदन करती हुई कहती है कि आप जैसे महाराणा के चरण मेरे घर पर पडने से मै धन्य हो गई, यह मेरा सौभाग्य है कि आप मेरे घर पधारे.... और निवेदन करती है कि आप काफी थक चुके है और आपको भुख भी लगी होगी अत: मेरा पास के गाँव मे निमंत्रण हे मे वहा जाकर भोजन कर आप के लिये थाल लेकर आती हुँ तब तक आप विश्राम करे मै अभी गयी और अभी आयी......महाराणा की आज्ञा लेकर वह महिला प्रस्थान करने के लिये घर से बाहर निकलती है तथा परकोटे के उपर चढ कर बाज का रुप धारण कर वहा से उड जाती है ।वह महिला पास के गाँव मे शादी समारोह मे पहुँच कर महिला का रुप धारण कर लेती है तथा सभी सामाजिक रीती रिवाज को पुरा कर भोजन ग्रहण करती है व महाराणा के लिये थाल परोसकर वापिस बाज का रुप धारण कर उड जाती है तथा वापिस उसी परकोटे पर पहुच कर महिला का रुप धारण कर लेती है महाराणा प्रताप घर मे आराम करते हुए उस दृश्य को देख रहे थे (वह महिला डाकिनी/ तांत्रिक थी) ......तथा महाराणा को भोजन परोसकर प्रेम पुर्वक भोजन कराने के बाद महाराणा को पधारने का प्रयोजन पुँछती है तब महाराणा कहते है कि अकबर हाथ धोकर मेरे पिछे पडा है तथा वह मुझे अपने अधीन करना चाहता है लेकिन मुझे उसकी अधीनता स्वीकार नही है व मै अकबर की तलाश मै निकला हुआ हुँ.... वह महिला महाराणा से निवेदन करती है कि यदि आपकी आज्ञा हो तो मै आपको अकबर के पास ले जाकर छोड दु । महाराणा उसकी बात से सहमत हो जाते है तो वह महिला फिर से बाज का रुप धारण कर महाराणा प्रताप को अपने उपर बैठा कर उडती हुई अकबर के तम्बु के उपर पहुँचती है महाराणा वहा देखते है कि वहा तम्बु के चारो ओर कठोर पहरा है व अकबर के सैनिक तम्बु के चारो ओर चक्कर लगा रहे है व अकबर अपनी बेगम के साथ आराम से सो रहा है । महाराणा तम्बु के उपर से छेद कर अकबर के तम्बु मे प्रवेश करते है , अकबर गहरी निन्द मे सो रहा था महाराणा अकबर के समीप जा कर ...........अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हे तभी अचानक आवाज आती है
ठहर
महाराणा वहा रुक कर चारो तरफ देखते है वहा कोई नही था.......महाराणा फिर से अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हे तभी फिर से आवाज आती है
ठहर
महाराणा के फिर से चारो तरफ देखने पर वहा कोई नही था....
महाराणा तिसरी बार अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हुए सोचते है कि शायद मेरी अंतर आत्मा मुझे इस कार्य को करने के लिये रोक रही है ईसलिये शायद यह आवाज मुझे अनायास ही सुनाई दे रही है व महाराणा मजबुत ईरादे के साथ तिसरी बार तलवार उठाते है तो फिर से ठहर की आवाज आती है......महाराणा ने रुक कर कहा कौन हे तब आवाज आयी हम अकबर के 24 पीर है अकबर ईस समय आराम कर रहा है अत: हम उसकी रक्षा कर रहे है.....उस समय महाराणा प्रताप को क्रोध आता है क्योंकि वो अकबर की कुटनीती से तंग आ चुके थे व भुखे प्यासे वन मे भटक रहे थे व अपने अकेले होने के अहसास पर गुस्से मे कहते है कि तुम अकबर के पीर अकबर की रक्षा कर रहे हो तो मेरी माँ कहाँ गयी......तभी अकबर के पीर ही बोले पिछे मुड कर देख.....
जैसे ही महाराणा पिछे मुडे वहाँ कुलदेवी माँ मौजुद थे और उन्हौने महाराणा से कहाँ कि आप अकबर का वध मत करो सोये हुए व निहत्थो पर वार करना क्षत्रिय धर्म के खिलाफ है आप अपने यहाँ आने की कोई निशानी अकबर के पास छोड जाओ......तब महाराणा अकबर की एक मुंछ काट कर खत लिख कर अकबर के तकिये के निचे रख देते हे कि मै महाराणा प्रताप तेरे पास आया था व अगर मै चाहता तो तेरा वध कर देता लेकिन तुझे चेतावनी दे कर छोड रहा हु तु अपने डेरे समेट ले और यहा से रवाना हो जा.....तब से अकबर रोज निन्द मे महाराणा प्रताप आये उस डर से उचक कर खडा हो जाता तभी से किवन्द्ती है कि

"अकबर सोतो ओझके जाण सिराणे साप"

तो मित्रो सार यह है कि जंग कितनी भी बडी हो हम मेहनत, संघर्ष व माँ के आर्शीवाद से नेक रस्ते पर चलते हुए जीत सकते है माँ तो हमेशा हमारी साथ है लेकिन रास्ते हमारे खराब हे.....

भालों अरि चेतक असवारी , बायण चाले संग ।
भोम भूप ने अति प्यारी , राण प्रताप ने रंग ।।

अकबर मारण पाथळ गया , अध् रात आगरा माहि ।
चौबीस पीर चोकिया , बायण आया उण ठाहि ।।

रक्षा कीन्ही पाथळ री , थू सेवक समर लड़ी ।
रक्षा थारी राखसु , पीछे पाथळ मैं खड़ी ।।

जय श्री बाण माताजी
जय श्री एकलिंग जी
जय श्री सोनाणा खेतलाजी
जय मेवाड़ जय महाराणा प्रताप

आभार : मयूर सिंह जी चुण्डावत ( डूंगरपुर )

Monday 16 November 2015

श्री बाण माताजी मंदिर दुजाणा ( पाली , राज.)

श्री बाण माताजी दुजाणा ( पाली , राज.)
पाली जिले के सांडेराव के पास स्थित गाँव दुजाणा में श्री बाण माताजी का यह मंदिर आया हुआ है ।
मंदिर में श्री बाण माताजी के साथ प्रभु श्री एकलिंग नाथ जी भी बिराजमाम हैं , मंदिर में बिराजमान आनंदमयी अद्भुत  श्री बाण माताजी की यह प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाता है । माँ की लीला अपरम्पार है , भक्तों के दुःख सुख में सदा सेवक की सहायता हेतु एक पुकार पर माँ आ जाते है ।
महामाया मातेश्वरी श्री बाण/बायण/ब्राह्मणी/बाणेश्वरी माताजी आपकी सदा जय हो।

" चित्तोड़ चाल्या मावड़ी , आया गाँव दुजाणा ।
धनुष बाण धारण करी , बायण मात बखाणा ।।

जय श्री बाण माताजी :)
जय श्री सोनाणा खेतलाजी :)
जय श्री एकलिंग नाथ जी :)

Thursday 12 November 2015

Jai Shree Ban Mataji

ब्लॉग से जुड़े सभी सदस्यों को बताना चाहता हूँ कि वैसे तो हर क्षण बाण मैया का सुमिरन करने से जीवन में सुफल मिलता ही है, परन्तु माँ बाणेश्वरी को शुक्रवार अधिक प्रिय हैं वैसे ही जैसे शिव भोले बाबा को सोमवार।

" सुमिरन से संकट मिटे , होवे आणंद अपार ।
बायण भज ले मानवा , जीवन रो ओ सार ।।

जय श्री बाण माताजी जय श्री सोनाणा खेतलाजी

श्री ब्राह्मणी माता जी चालीसा

श्री ब्राह्मणी माता चालीसा
दोहा
कोटि कोटि निवण मेरे माता पिता को
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर ॥ १ ॥
श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै, उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै, माताऒ का सुप्रकाश ॥
मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते, क्या लगता है मोय ॥
जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ बारम्बार ॥
श्री ब्रह्माणी चालीसा
चौपाई
जय जय जग मात ब्रह्माणी ।
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
वीणा पुस्तक कर में सोहे ।
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
हँस वाहिनी जय जग माता ।
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
खीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
चतुर्दश रतनों में मानी ।
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
चार वेद षट शास्त्र कि गाथा ।
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥ ७ ॥
आद अन्त अवतार भवानी ।
पार करो मां माहे जन जानी ॥ ८ ॥
जब−जब पाप बढे अति भारे ।
माता सस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
अद्य विनाशिनी तू जगदम्बा ।
धर्म हेतु ना करी विलम्भा ॥ १० ॥
नमो नमो चण्डी महारानी ।
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
तेरी लीला अजब निराली ।
स्याह करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
चिन्त पुरणी चिन्ता हरणी ।
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
अन्न पूरणी हो अन्न की दाता ।
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
सर्व व्यापिनी अशख्या रूपा ।
तो कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
योग निन्दा योग माया ।
दीन जान, माँ करियो दाया ॥ १६ ॥
पवन पुत्र की करी सहाई ।
लंक जार अनल शित लाई ॥ १७ ॥
कोप किया दश कन्ध पे भारी ।
कुटम्ब सहारा सेना भारी ॥ १८ ॥
तुही मात विधी हरि हर देवा ।
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
देव दानव का हुवा सम्वादा ।
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
श्री नारायण अंग समाई ।
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।
सुधा देवों को दीना माई ॥ २२ ॥
चतुराई कर के महा माई ।
असुरों को तूं दिया मिटाई ॥ २३ ॥
नौखण्ङ मांही नेजा फरके ।
भय मानत है दुष्टि डर के ॥ २४ ॥
तेरह सो पेंसठ की साला ।
आसू मांसा पख उज्याला ॥ २५ ॥
रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
नगर कोट से किया पयाना ।
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
चौसठ योगिन बावन बीरा ।
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
बैठ भवन में न्याव चुकाणी ।
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
सांझ सवेरे बजे नगारा ।
सीस नवाते शिष्य प्यारा ॥ ३० ॥
मढ़ के बीच बैठी मतवाली ।
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
उतरी मढ बैठी महा काली ।
पास खडी साठी के वाली ॥ ३२ ॥
लाल ध्वजा तेरी सीखर फरके ।
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
चेत आसू में भरता मेला ।
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
कोई संग में कोई अकेला ।
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
कंचन कलश शोभा दे भारी ।
पास पताका चमके प्यारी ॥ ३६ ॥
भाग्य साली पाते दर्शन ।
सीस झुका कर होते प्रसन ॥ ३७ ॥
तीन लोक की करता भरता ।
नाम लिया स्यू कारज सरता ॥ ३८ ॥
मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।
भुल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
मन्द मति दास चरण का चेहरा ।
तुझ बिन कौन हरे दुख मेरा ॥ ४० ॥
दोहा
आठों पहर तन आलस रहे, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी, भोला बालक जान ॥
श्री ब्राह्मणी माताजी मंदिर पल्लू , हनुमानगढ़ राजस्थान के ब्लॉग से साभार

Friday 6 November 2015

श्री बाण माताजी की असवारी हंस

खेंचलों थारे हंस री नकेल बाण मैया.......
ढ़ीली छोड्या बाण माँ थाने ले जासी कंही और .....
हंसलो मोड़ दो बाण मैया थारे भगताँ की और ...||
आवो म्हारे आंगणे बैठो इण ठौड़........
हंसलो मोड़ दो बायण थारे भगताँ की और....||

श्री बाण माताजी की प्रिय सवारी हंस

जय माँ बायण जय एकलिंग जी जय सोनाणा खेतलाजी जय हंस राजा

Monday 2 November 2015

Shree Ban Mataji Or Bappa Rawal

ब्राह्मणी तू बाण माता , जगदम्बा भवानीह ।
तू देवी चित्तोड़ धणी , सेवा करे सिसोदिह ।।
बप्पा बाळक आपरो , चाले नित थारी राह ।
गढ़ जीत्या मोकळा , बणायो चित्तोड़ मंदराह ।।
बप्पा बलपत महावीर , झुकिया कद नाह ।
आई बेल ब्राह्मणी , राखी छत्र चाह ।।
भवानीह माँ भगवती , भव्याह भगवत भाण ।
या देवी बायण माँ , सेवा करे नित राण ।।
दरश दीजो उपरकार करो , आईज इक चाह ।
भक्तिं करू भय हिन भयी , राखो चरणा माह ।।
भजियो जिण भव सु , बायण थारो नाम ।
कीरत भयी चहु ओर में , बणिया बिगड़िया काम ।।
संकट सुमरो सेवको , बायण दौड़ी आय ।
महेंद्र सिंह शरण में थारी , चरणा सुख पाय ।।

Sunday 1 November 2015

श्री बाण माताजी मंदिर प्रतापगढ़ ( मेवाड़ , राज.)

श्री बाण माताजी प्रतापगढ़ ( मेवाड़ )
भक्तों जैसा कि आप जानतें हैं , महामाया श्री बाण माताजी की लीला अपरम्पार हैं .......इनका बखाण जितना करें उतना कम हैं |
माँ बायण अलग - अलग समय में अपने अलग - अलग रूपों से विख्यात हुये है ।
द्वापरयुग में बाणासुर दैत्य का वध करने और धरती को उसकें अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए बाण मैया ने हाथों में धनुष - बाण धारण कर एक छोटी कन्या के रूप में यज्ञ कुण्ड से क्षत्रियों की आराधना पर पधारें थे ।
मैया का मुख अति अद्भुत था , जिसे अगर एक बार देखे तो देखते ही रहें । बाणासुर के वध के बाद माँ बायण दक्षिण में " कन्या कुमारी " में जा बसे । कन्या कुमारी भी बाण मैया के नाम से पड़ा हैं , बाण मैया का पालन पोषण एक ब्राह्मण ने किया था और नाम " कुमारी " रखा ।
आज भी दक्षिण में बाण मैया को " कुमारी अम्मा " के नाम से लोग पूजते हैं , मंदिर समुद्र के बिच में स्थित है ।
उसके बाद दुसरा अवतार  दुर्गासप्तशती के अनुसार  बाण मैया ने नो बहनों के साथ लिया था , उस अवतार में माँ बायण ने अपनी असवारी हंस को बनाया और चार भुजा धारण कर हाथों में कर कमंडल और वैद लिए । इस रूप की पूजा ख़ास कर गुजरात में की जाने लगी और ब्राह्मणी माता के नाम से विख्यात हुए , गुजरात के पाटण के सोलंकियों की कुलदेवी भी ब्राह्मणी माताजी है । कई जगह गुजरात में चौहान भी ब्राह्मणी माता को मानते है , इस बात का प्रमाण आपको पाटण स्थित मंदिर में मिल जाएगा ।
दुर्गा सप्तशति के अनुसार देवियो में " कुमारी " ( श्री बायण माताजी का दक्षिण में विराजमान रूप ) सर्वपूजनिय है , सबसे पहले इन्ही का नाम लिया जाता हैं । कुमारी ( श्री बाण माताजी ) का स्थान माता लक्ष्मी , सरस्वती और काली माँ के बराबर है ।
माँ बायण के अनेकों अवतारों में अलग अलग रूप में प्रकट हुए और भक्तों के दुःख दूर किये ।
ठीक इसी तरह बाण मैया ने प्रतापगढ़ में घोड़े की असवार कर अपने भक्तों के दुःख दूर करते है , जी हाँ हम बात कर रहे हैं मेवाड़ के प्रतापगढ़ की जहाँ पर श्री बाण माताजी ने हंस की जगह घोड़े पर असवार होकर बीराजमान है । इसके अलावा मेवाड़ के केलवाडा गाँव में भी श्री बायण माताजी की घोड़े पर असवारी है , केलवाडा स्थित मंदिर माँ बायण के लाड़ले भक्त महाराणा हमीर सिंह जी ने बनाया था , माँ बायण के आशीष से ही हमीर सिंह ने पुनः मेवाड़ पर अधिकार किया था ।
प्रतापगढ़ में आज माँ बायण की घोड़े  पर  असवारी वाले मंदिर में हजारो भक्त आते है और अपने मनवांछित वर पाते है , निर्धन को माया , कोडे को काया , बाँझ को बेटा , अंधे को आँखे देती है ।
जो भी इसके दरबार में सच्चे मन से हाजरी लगाता है उसकी नाव कभी नही डोलती स्वयं बाण माँ उसके नाव की पतवार बन कर उसके जीवन को पार लगाती है । मेवाड़ की धनियाणि महामाया श्री बाण माताजी की लीला अपरम्पार है ,
महामाया श्री बाण माताजी आपकी सदा ही जय हो

धिन धरती मेवाड़ री , धिन धिन प्रताप गढ़ देश ।
बायण आप पधारिया , जबर घोड़ा पर बैश ।।

जय माँ बायण जय एकलिंग जी जय खेतलाजी

Saturday 31 October 2015

श्री बाण माताजी मंदिर बिरामी ( पाली , राज.)

श्री बाण माताजी ( भुवाल माता ) मंदिर बिरामी ( पाली , राज.)
पाली जिले के बिरामी गाँव में भुवाल माता के नाम से विख्यात माँ बायण और माँ काली का विश्व विख्यात मंदिर है ।
यहाँ माँ ब्राह्मणी को मीठा भोग लगता है , जबकि माँ काली को ढ़ाई प्याला मदिरा चढ़ता है ।
प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार माँ काली खुद मदिरा पुजारी के हाथ से पीती है ।
इस मंदिर में विराजमान माँ ब्राह्मणी और माँ काली के दर्शन हेतु हजारो भक्त नित आते है और अपनी मन छाए वरदान प्राप्त करते है ।
बोलो बाणेश्वरी मात की जय
बोलो काली मात की जय

काली का संग में , बेठी बिरामी माय ।
मिठो भोग भवानी रे , भुवाल माँ ओळखाय ।।

जय माँ बायण जय एकलिंग जी जय खेतलाजी

Wednesday 28 October 2015

Chilay Mata Kuldevi Of Tanwar Rajput's

तँवर वँश की कुलदेवी
तु संगती तंवरा तणी चावी मात चिलाय!
म्हैर करी अत मातथूं दिल्ली राज दिलाय!!
तँवर वँश की कुलदेवी चिलाय माता है। इतिहास में तँवरो की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे चिलाय माता, जोग माया (योग माया), योगेश्वरी (जोगेश्वरी), सरूण्ड माता, मन्सादेवी आदि।
दिल्ली के इतिहास में तँवरो की कुलदेवी का नाम योग माया मिलता है, तंवरो के पुर्वज पांडवो ने भगवान कृष्ण की बहन को कुलदेवी मानकर इन्द्रप्रस्थ में कुलदेवी का मंदिर बनवाया और उसी स्थान पर दिल्ली के संस्थापक राजा अनंगपाल प्रथम ने पुनः योगमाया के मंदिर का निर्माण करवाया।
इसी मंदिर के कारण तवरो की राजधानी को योगिनीपुर भी कहा गया, जो महरौली के पास स्थित है।
तोमरों की अन्य शाखा और ग्वालियर के इतिहास में तँवरो की कुलदेवी का नाम योगेश्वरी ओर जोगेश्वरी भी मिलता है। एसा माना जाता है कि योगमाया( जोग माया) को ही बाद में योगेश्वरी, जोगेश्वरी बोलने लग गये।
तोरावाटी के तंवर कुलदेवी के रूप में सरूण्ड माता को पुजते है।पाटन के इतिहास मे पाटन के राजा राव भोपाजी तँवर द्वारा कोटपुतली के पास कुलदेवी का मंदिर बनवाने का विवरण मिलता है जहाँ पहले अग्यातवास के दोरान पांडवो ने योगमाया का मंदिर बनाया था।
यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाड़ी पर स्थित है ! मंदिर परिसर मैं उपलब्ध शिलालेख के आधार पर 650 फुट ऊँचा मंदिर एक छत्री(चबूतरा)मैं स्थित है! इस छत्री के चार दरवाजे है उसके अन्दर माता जी विराजमान है! छत्री के बाद का मंदिर 7 भवनों वाला है! मंदिर का मुख्या मार्ग दक्षिण मैं व माता का नीज मंदिर का द्वार पश्चिम मैं हैं! इस मंदिर मैं माता का 8 भुजावाला आदमकद स्वरुप स्थित है! स्थम्भो व दीवारो पर वाम मार्गियों व तांत्रिको की मूर्तियाँ की मोजुदगी इनका प्रभाव दर्शाती है! मदिर मैं माता को पांडवो द्वारा सतापित के साक्ष्य छत्री मैं स्थित हैं! मदिर की परिक्रमा मैं चामुंडा की मूर्ति है जो आज भीसुरापान करती है! मंदिर की छत्री मैं जो लाल पत्थर है वो 5 टन का है! मंदिर पीली मिट्टी से बना हुआ है पर कई से भी चूता नहीं है! मंदिर तक पहुचने के लिए 282 सीढियाँ है! इनके मध्य मैं माता की पवन चरण के निशान हैं! यहाँ 52 भेरव व 64 योग्नियाँ है ! सरुन्द देवी की पहाड़ी से सोता नदी बहती है जिसके पास एशिया प्रसिद्ध बावड़ी है जो बिना चुने सीमेन्ट से बनी हुए है ! यह दवापर युग मैं पाङ्वो द्वारा 2500 चट्टानों से बनाई गई थी।
योग माया का मंदिर सरूण्ड गांव में स्थित होने से इसे सरूण्ड माता भी बोलते हैं।
तंवरो के बडवाजी(जागाजी) के अनुसार तंवरो की कुलदेवी चिलाय माता है।
जाटू तंवरो ओर बडवो की बही के अनुसार तँवरो की कुलदेवी ने चिल पक्षी का रूप धारण कर राव धोतजी के पुत्र जयरथजी के पुत्र जाटू सिंहजी की बाल अवस्था में रक्षा की थी जिसके कारण माँ जोगमाया को चिलाय माता बोलने लगे।
इतिहास कारो के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी के होने कारण यह चिल, चिलाय माता कहलाई। राजस्थान के तंवर चिलाय माता कोही कुलदेवी मानते हैं। लेकिन चिलाय माता के नाम से कोई भी पुराना मंदिर नहीं मिलता है।
दो मदिरो का विवरण मिलता है जो चिलाय माता के मदिर है। जाटू तंवर और पाटन का इतिहास पढने पर पता चलता है कि 12 वी सताब्दी मे जाटू तंवरो ने खुडाना में चिलाय माता का मंदिर बनाया था ओर माता द्वारा मन्सा पुर्ण करने के कारण आज उसे मन्सादेवी के नाम से जानते हैं।
एक और मदिर का विवरण मिलता है जो पाटन के राजाओ ने 14 वी शताब्दी में गुडगाँव मे चिलाय माता का मंदिर बनवाया और ब्राह्मणों को माता की सेवा के लिए नियुक्त किया। लेकिन 17 वी शताब्दी के बाद पाटन के राजा द्वारा माता के लिए सेवा जानी बन्द हो गयी ओर आज स्थानीय लोग चिलाय माता को शीतला माता समझ कर शीतला माता के रूप में पुजते है।
विभिन्न स्त्रोतों और पांडवो या तंवरो द्वारा बनवाये गये मंदिर से यही प्रतीत होता है कि तोमर (तँवर) की कुलदेवी माँ योगमाया है जो बाद में योगेश्वरी कहलाई। माता का वाहन चिल पक्षी होने के कारण और कुलदेवी ने चिल का रूप धारण कर जाटू सिंहजी की बाल अवस्था में रक्षा की थी जिसके कारण यह आज चिलाय माता के नाम से जानी जाती है।

जय माँ बायण जय एकलिंग जी

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