Saturday 29 October 2016

नमो बाणेश्वरी माता बाण

तुही आदि अन्नादि वाणी विधाता , तुंही रिद्धि सिद्धि नवनिद्धि दाता |
वदे क्रोड़ सुर तेतीस आह्वाण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

कळा चंद्र ज्योति झळेळ कपाळ , वळे कुंडळ कान शोभत माळ |
बैठी गढ़ चित्तौड़ धनुष-बाण ताण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

वंदन करूँ मेवाड़ी मात , हरदम रेहिजे म्हारे साथ |
संकट सब माँ बायण टाळ , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

कई दैत्य मार दळ झेर कीधा , देवी भक्ता ने सुख आणंद दीधा |
जो ध्यावे मिळे खुशियां री खाण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

बप्पा रावल रे सेव माँ आवी , राज मेवाड़ी आप दिरावी |
गुहिलोतों रो आप बढ़ायों माण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

सुर तेतिसा बन्द छुड़ावै , मात बायण री महिमा गावै |
ध्यावे मेवाड़ी महाराण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

दुःख दाळद माँ दूर करती , अन्न-धन्न रा भंडार भरती |
भव में करें भक्तो कल्याण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

ज्यो अम्बिका त्रयंबका जोगमाया , परा पार ॐकार पारं न पाया |
पायो न पार होवे ना बखाण , नमो बायणेश्वरी माता बाण ||

सेवकिया री आवों आराधा , भक्तों में प्यारी अनुराधा |
महेंद्र सिंह करें गुणगाण , नमो बाणेश्वरी माता बाण ||

🚩 आवों आह्वाण , मातेश्वरी बाण 🚩

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Friday 28 October 2016

जयति जयति श्री बाण ब्राह्मणी

जय जय श्री चित्तौड़ धणीयाणी , जयति जयति श्री बाण ब्राह्मणी |
जयति श्री बायण भव भयहारी , जयति मात बायण बलकारी |
जयति मात-बायण विख्याता , जयति सर्व श्री बायण सुखदाता |
बायण रूप कियो माँ धारण , भव के भार उतारण कारण |
बायण नाम सुनी हवै भय दुरी , सब विधि होय कामना पूरी |
ब्रह्मा विष्णु महेश गुण गायो , ब्रह्माणी माँ रूप धरायों |
मात ब्राह्मणी हंस विराजत , चार भुजा माँ के अति साजत |
पग पायल बायण रे बाजत , दर्शन कर सकल भय भाजत |
मात बायण बाणासुर मारियों , सब सुर संता रो काज सारियो |
राणा लक्ष्मण स्वप्न में काली , दीन्हों वर राख्यों माँ लाली |
धिन धिन बायण माँ भय भंजन , जय बाणेश्वरी खल दल भंजन |
कर में मात धनुष-बाण साजे , चित्तौड़गढ़ में बायण बिराजै |
जो बायण निर्भय गुण गावत , अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत |
रूप विकराळ कठिन दुःख मोचन , माँ ममता भरी दोनु लोचन |
भुत पिचाश दैत्य सब डोलत , नाम बायण सेवक मुख बोलत |
महामाया आप कन्याकुमारी , तीनूं लोक में महिमा थारी |
बायण माता आप ब्रह्माणी , वेदों में माँ बाण बखाणी |
अन्धकार में आप प्रकाशा , भरत सुभक्तन कह शुभ आशा |
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन , हंस चढ़ माँ करती आसन |
आप बप्पा री सहाय करि माँ , मन आस मात पूरी माँ |
जय हो मात ब्राह्मणी री जय , नाम लिया मिलती विजय |
वरदायिनी माता तेरी जय , चित्तौड़गढ़ धनियाणी तेरी जय |
चरणा में भैरव गुणगावत , चौसंठ योगनी संग नचावत |
करों कृपा जन पर महामाया , सेवकिया रे हेले आया |
देय मात बायण जब सोटा , नासै पाप मोटा से मोटा |
हमीर सिंह रा दुःख निवारियों , सदा कृपा करि काज संवारियों |
श्री बायण जी की जय मैं लिख्यों , सकल कामना पुरण देख्यों |

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय , सदा सेवक सहाय 🚩

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Wednesday 26 October 2016

Shree Ban Mataji Dohe 04

चार भुजा माँ शस्त्र धार , होती हंस सवार |
महामाया बाणेश्वरी , रखिये लाज हमार ||

धनुष-बाण ले हाथ में ,ज्योतिर्मय है रूप |
कृपा होय जो आपकी, मिले न दुःख की धूप ||

द्वार थारे खेतल बिराजै , करते दुष्ट विनाश |
चार भुजा मैया तेरी, देती सदा विश्वास ||

जननी तुम ब्रह्मांड की,अमृत कलश धर हाथ |
आठम चवदस आराधना , देत सदा माँ साथ ||

हंस सवारी होय ने , करती सदा कल्याण |
मात ब्राह्मणी रूप रो ,धरूँ सदा मैं ध्यान ||

बाणासुर संहार को , लियो आप अवतार |
चहु लोको  में हो रही , तेरी ही  जयकार ||

रूप भयंकर आपका , होती सिंह सवार |
भक्तों का दुःख हरती माँ,करती असुर संहार ||

रूप वरदायिनी आपका , माँ बायण कहलाय |
जो पूजा करे प्रेम से ,जनम सफल हो जाय ||

महामाया मातेश्वरी , दे सबको वरदान |
नाश दुखों का होय सब ,मिले अलौकिक ज्ञान ||

जय चित्तौड़राय
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Sunday 23 October 2016

Shree Ban MataJi Dohe 03

मात ब्राह्मणी चित्तौड़ री , नमन करों स्वीकार |
सहाय सेवक री हंसावाळी , उण पर होय सवार ||

जो माता म्हारी ब्राह्मणी , होवे हंस सवार |
सब दुःखड़ा दूर हुवे , खुशिया वे अपार ||

चित्तौड़गढ़ की धनियाणी , कर में धनुष-बाण होय |
माँ बायण चित्तौड़राय बिना , सब काम सुफल न होय ||

विणती म्हारी मानो मावड़ी , एकण घर म्हारे आवों |
माँ-बेटा रो रिश्तों ब्राह्मणी , हैं जुगत में चावों ||

माँ बायण री सेवना , करें सब सुर नर-नार |
चित्तौड़गढ़ में बैठी मावड़ी , करें सबरो उद्धार ||

माँ बायण ही ब्राह्मणी , माता आ कन्याकुमारी |
तीन लोग और चवदा भवन में , महिमा इणरी भारी ||

भव पर लिजाय जो , वा जहाज हो आप |
मैं जहाज रा यातरी , पार उतारों आप ||

महेंद्र सिंह माँ नमन करें , म्हारी कुल देवाय |
माँ बायण रे आशीष सु , ए दोहा लिखवाया ||

अनुराधा हैं लाडली , ज्यामें आप समरूप |
सुर नर करें सेवना , भूपन की तुम भूप ||

जय चित्तौड़राय

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Friday 21 October 2016

क्या रहस्य हैं श्री बाण माताजी के मंदिर के पास बने इस स्मारक का?

बाण माताजी मंदिर के पास ही मंदिर परिसर में राघवदेव का ऐतिहासिक स्मारक विद्यमान हैं। महाराणा हमीरसिंह के पुत्र क्षेम सिंह के महाराणा लाखा हुए इन्होंने सन 1383 से 1454 ई. तक राज्य किया । महाराणा लाखा के चूंडा एवं राघवदेव ज्येष्ठ एवं लघु पुत्र थे । चूंडा के सलूम्बर चले जाने के उपरान्त मारवाड़ के जोधा रणमल द्वारा धोखे से राघवदेव की यहां ह्त्या कर दी गई थी , परम्परा अनुसार राघवदेव कुलदेवी श्री बाण माताजी के दर्शनार्थ धोक देने बाण माता मंदिर गये । परम्परा अनुसार नवीन वस्त्र पहनकर कुलदेवी बायण माता के धोक लगाई जाती थी , धोखे से उनकी कमीज की बाहें आगे से सिलाई कर दी गई । ज्योहीं उन्होंने हाथ कमीज में डालें उन्हें धोखे से मार दिया गया । जिससे वही उनका स्मारक बनाया गया जो आज भी मौजूद हैं , मेवाड़ के प्रथम पितृ पुरुष के रूप में राघवदेव को ही पूजा जाता हैं ।

जय चित्तौड़राय , सदा सेवक सहाय
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Tuesday 18 October 2016

श्री बायण माताजी की आराधना

माँ से बढ़कर इस जगत में कोई नही है। माँ ही जगत की जननी है। माँ के बिना सारा जगत अधूरा है। धरती पर सबसे पहले माँ ही आई। माँ से ही पूरी सृष्टि का निर्माण हुआ व जगत का विस्तार हुआ। इसलिए माँ के बिना हम खुद की कल्पना भी नही कर सकते है। इनकी आराधना से ही हमारे काज सफल होंगे , इनकी आराधना , जप-तप से हम जीवन में उन्नत्ति कर पाएंगे । माँ बड़ी दयालु हैं इसकी महिमा वेदों में वर्णित हैं , जो इनकी शरण में आया हैं वो सब भय , रोगों से मुक्ति पाया हैं । जब-जब मनुष्यों , देवो पर घोर संकट आया हैं , तभी माँ जगदम्बा अपने भक्तों की सहायता हेतुं अवतार धरा हैं । हे माँ बायणेश्वरी हम आपके बालक हैं हमारी सहायता करों , हम तेरी शरण में आये हैं हमारे दुःख हरों । तुम ही
माता पार्वती , उमा , महेश्वरी, दुर्गा , कालिका, शिवा , महिसासुरमर्दिनी , सती , कात्यायनी, अम्बिका, भवानी, अम्बा , गौरी , कल्याणी, विंध्यवासिनी, चामुन्डी,
वाराही , भैरवी, काली, ज्वालामुखी, बगलामुखी, धूम्रेश्वरी, वैष्णोदेवी ,
जगधात्री, जगदम्बिके, श्री, जगन्मयी, परमेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी ,जगात्सारा, जगादान्द्कारिणी, जगाद्विघंदासिनी ,भावंता, साध्वी, दुख्दारिद्र्य्नाशिनी,
चतुर्वर्ग्प्रदा, विधात्री, पुर्णेँदुवदना, निलावाणी, पार्वती ,
सर्वमँगला,सर्वसम्पत्प्रदा,शिवपूज्या,शिवप्रिता, सर्वविध्यामयी,कोमलाँगी,विधात्री,नीलमेघवर्णा,विप्रचित्ता,मदोन्मत्ता,मातँगी
देवी खडगहस्ता, भयँकरी,पद्`मा, कालरात्रि, शिवरुपिणी, स्वधा, स्वाहा, शारदेन्दुसुमनप्रभा, शरद्`ज्योत्सना, मुक्त्केशी, नँदा, गायत्री , सावित्री,
लक्ष्मीअलँकार सँयुक्ता, व्याघ्रचर्मावृत्ता, मध्या, महापरा,
पवित्रा, परमा, महामाया, महोदया
इत्यादी हे माँ भगवती बायणेश्वरी आपके कई नाम हैँ।
हर प्राँत मेँ आपकी विविध स्वरुप की पूजा होती है और कई शहर आपके स्वरुप की आराधना के केन्द्र हैँ।
शाक्त पूजा की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी पूरे बँगाल की आराध्या
काली कलकत्ते वाली " काली " भी आप हों और गुजरात की अँबा माँ भी आप हों ,
पँजाब की जालन्धरी देवी भी आप हो
तो विन्ध्य गुफा की विन्ध्यवासिनी भी आप
माता रानी हैँ जो जम्मू मेँ वैष्णोदेवी कहलातीँ हैँ
और त्रिकुट पर्बत पर माँ का डेरा है ॥
आसाम मेँ ताँत्रिक पूजन मेँ कामाख्या मँदिर बेजोड है ॥
तो दक्षिण मेँ आप कामाक्षी के मँदिर मेँ विराजमान हो
और चामुण्डी पर्वत पर भी आप हो , शैलपुत्री के रुप मेँ
वे पर्वताधिराज हिमालय की पुत्री पार्वती भी आप ही कहलातीँ हों ।
तो भारत के शिखर से पग नखतक आकर,
कन्याकुमारी की कन्या के रुप मेँ भी आप ही पूजी जातीँ हो॥
महाराष्ट्र की गणपति की मैया गौरी भी आप ही हों
और गुजरात के गरबे और रास के नृत्य ९ दिवस और रात्रि को
माताम्बिके का आह्वान करते हैँ ..
शिवाजी की वीर भवानी रण मेँ युध्ध विजय दीलवाने वाली भी आप ही हों। बीकाजी को बीकानेर बसाने में सहायता करने वाली भी आप ही हों , राव धुहड़ के साथ कन्नौज से आने वाली चक्रेश्वरी भी आप ही हों , जोधपुर की रक्षा करने वाली आप ही हो , हे माँ भगवती जगदम्बा स्वरूपा माँ बायणेश्वरी में आपका ध्यान धरता हूँ , आप मेरी सहायता करों मुझे रूप दो , जय दो , यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करों ।
श्री बायण माता  ममतामयी हैं. वे अपने भक्तों पर सदा ही करुणा बरसाती हैं. जैसे माता अपने पुत्रों से हमेशा स्नेह रखती हैं, वैसे ही बाण मैया अपने शरण में आए हुए सदाचारी लोगों पर कृपा करती हैं.
वैसे तो बाण माताजी के बहुत-सारे चमत्कारों की महिमा प्रचलित हैं, पर एक स्तुति ऐसी है, जिसमें बेहद कम शब्दों में माँ बायण की महिमा का गुणगान किया गया है....

जय माँ बायण देवी नमो वरदे , जय पापविनाशिनि बहुफलदे |
जय बाणासुर दैत्य संहारिणी , प्रणमामि तू देवी नरार्तिहरे ||
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे , जय पावकभूषितवक्त्रवरे |
जय मधुकेटपमारण सहायकारिणी , जय लोकसमस्तकपापहरे ||
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे , जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे |
जय देवी समस्तशरीरधरे , जय नाकविदर्शिनी दुःखहरे ||
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करें , जय वांछितदायिनी सिद्धिवरे |
जय श्री बायण माँ नमो वरदे , जय पापविनाशिनि बहुफलदे ||

संपूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए कुलदेवी की आराधना करना अति आवश्यक हैं , इसकी कृपा प्राप्त करना और इसकी भक्तिं में चित्त लगाने और जीवन के उद्धार के लिए इनकी शरण में जाना चाहिए । खूब तत्परतासे नित्य वस्तुमें मन डुबाइये । नहीं तो, सच मानिये, इतना पश्‍चाताप हो सकता है कि उसकी कोई सीमा नहीं है ।
बिल्कुल गाँठ बाँधकर रख लें । श्री बाण माता के नाम, रूप, गुण, लीला आदिके सिवा यदि मन कुछ भी चिन्तन करता है तो समझ लें कि घाटेका कोई हिसाब ही नहीं है ।
अभी पता नहीं लगता, अभी चेष्‍टा नहीं होती, पर इन्द्रियाँ मरनेके समय इतनी व्याकुल हो जाती हैं कि बिना अभ्यास श्री बायण माता में मन स्थिर होना बड़ा ही कठिन होता है । अतः श्री बाण माताजी की भक्तिं करें और मैया का गुणगान कर इनकी कृपा प्राप्त करें ।

जय श्री बाण माताजी
जय श्री सोनाणा खेतलाजी
जय श्री एकलिंग नाथ जी

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Friday 14 October 2016

श्री बाण माताजी मंदिर दियोदर ( बनासकांठा , गुजरात )

भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली, उनके दुःखों को हरने वाली, उनकी समस्त समस्याओं को दूर करके उन्हें संसार की सभी खुशियां प्रदान करने वाली ' चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी का चित्तौड़गढ़ स्थित ( पाट स्थान ) मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी की महिमा अपरम्पार है। श्री बाण माताजी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अन्नपूर्णा व् अपने लाडले श्री खेत्रपाल के साथ में विराजमान हैं ।
‘आदिशक्ति’ श्री बाण  माता का मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं ।
कहते हैं किले में विराजमान मैया सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। श्री बाण माताजी ने समय -समय में अपने भक्त की सहायता और आह्वान पर माजी चित्तौड़गढ़ से उनकी रक्षार्थ पधारे हैं ऐसे ही गुजरात के बनासकांठा जिले के दियोदर गाँव में श्री बाण माताजी का भव्य मंदिर विद्यमान हैं लोकमान्यता के अनुसार एक समय में जोधपुर से नागोह देवासी समाज के कुछ परिवार जोधपुर से पलायन कर दियोदर गाँव में आकर बस गए थे ।दियोदर गाँव में एक देवल बा नाम की लड़की रहती थी , दियोदर गाँव की सीमा से कुछ दूरी पर गंगा कुआँ था , उस कुँए के पानी से ही सम्पूर्ण दियोदर गाँव के लोग पानी पीते थे ।
एक समय की बात हैं जब देवल बा घड़ा लेकर घर से पानी लेने निकली , तभी रास्ते में कुछ लोग नाटक दिखा रहे थे , नाटक देख देवल बाई वही पर रुक कर खेल देखने लग गयी और खेल देखते देखते कब शाम हुयी उन्हें पता ही नही चला ।
जल्दी से उठ कर देवल बाई दौड़ती-दौड़ती कुआँ पर पहुँची और पहुँच कर देखा तो कुँए में रस्सी ही नही थी
रस्सी न होने के कारण पानी भर पाना मुश्किल था , देवल बाई ने सोचा अगर घर जाकर रस्सी लाऊंगी तो रात हो जायेगी और अगर पानी नही लेकर गयी तो घर पर सभी लोग डांटेंगे , देवलबाई उदास होकर कुँए पर रोने लगी , रोते-रोते उनके आँखों में से आंसू की एक बूंद कुँए में जा गिरी , देवलबाई को दुःखी देख बाण माताजी से रहा नही गया और भक्त की रक्षा करने हेतु माँ ने चमत्कार दिखाया ।
थोड़ी ही देर में कुँए में पानी छलकने लगा और देखते ही देखते पानी कुँए की छोर तक आ गया और चारों और सन्नाटा छा गया , सन्नाटे और संध्या के समय में देवी के हंसने की आवाज आई तभी देवल बाई ने चारों ओर देखा लेकिन वहां कोई नही था ।
देवल बाई ने घबरा कर आवाज लगाई , कौन हैं??
तभी देवी बोली ' हे देवल मैं दियोदरी बाण माता हूँ और इस कुँए में मेरा वास हैं ।
माँ के दर्शन कर देवल बाई की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा और वह माँ के चरणों में जा गिरी ।
बाण माताजी बोले ' हे भक्त इस कुँए से अपने घड़े में पानी भरलो और इसमें से एक सोने की ईट निकलेगी , उस ईट को ले जाकर दियोदर के सभी लोगो को मुझसे अवगत कराओ और इस सोने की ईट पर मेरी स्थापना करों ।

दियोदर में बाई देवल ने , पर्चों दियो बाण दियोदरी |
खाली कुओं गाँव रों , मात बाण माँ तूँ भरी ||
सोना री ईट साथ में , दिनी जळ रे माय |
कह्यों मात करों थरपना , हूँ चित्तौड़ी राय ||

अगर गाँव वाले न माने तो उन्हें कुँए पर लेकर आओ और मैं स्वयं उन्हें फिर से कुँए का पानी छलकता हुआ दिखाउंगी । देवल बाई ने बाण माताजी को प्रणाम कर गाँव में जाकर सभी को सारा वृतांत बताया , लोगो ने बाण माता को आजमाने के लिए कुँए पर आये और वहाँ जो देखा उन्होंने वे बाण माताजी के दीवाने हो गए और माँ की महिमा गाने लगे ।
सोने की ईट पर श्री बाण माताजी की मूर्ती की स्थापना कर गुजरात के रबारी समाज ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया ।

दियोदर रे मायने , बायण रो मंदिर बणियो जोर |
कोयलिया टंहुका करें , जठे मीठा बोले मोर ||
धुप दिप करें आरती , होवे हैं आठूं पोर |
नर नारी दरश ने आवता , थारे जयकारा रो सोर ||

आज दियोदर मंदिर रबारी समाज और बनासकांठा के लोगो की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं हजारों भक्त मातेश्वरी दर्शन हेतुं यहां आते हैं और अपने दुःखों का निवारण कर माँ की महिमा गाते हैं ।

मैं दीवानों मात रो , आवे दियोदर दाय |
प्यारी मूरत बाण री , भक्ता रे मन भाय ||

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Thursday 13 October 2016

श्री बाण माताजी मंदिर खेमे का कुआँ

श्री बाण माताजी मंदिर खेमे का कुआँ ( जोधपुर )

श्री बाण माताजी का 250 साल पुराणा मंदिर जोधपुर में हैं चित्तौड़गढ़ धनियाणी के साथ मेहरान गढ़ धनियाणी श्री चामुंडा माता भी विराजमान हैं ।
माताजी भूतकाल में एक चबूतरे पर विराजमान थे लेकिन 2011 में माली समाज विशाल मंदिर बनाकर माताजी की मंदिर में स्थापना की ।
यह मंदिर माताजी मंदिर के नाम से जोधपुर में जाना जाता हैं ।

करो किरपा करतार थे , बायण पकड़ो बाय |
संकट में माँ सहाय करों , बायण बेगि आय ||

नवरात्रा में विशेष अनुष्ठान करने अमरसिंह पहुँचे उदयपुर , लगाया मेवाड़ की आराध्य देवी बायण माता को धोक

उदयपुर : समाजवादी पार्टी के महासचिव अमरसिंह ने मंगलवार 04-10-2016 को  जिले के सराड़ा तहसील के थाणा गावं स्थित थाणा रावला में विराजित माँ बायण की शरण में पहुँच कर शीश नवाया और पूजा अर्चना की।

उन्होंने दैवीय अनुष्ठान में भाग लिया और आहुतियां दी इससे पूर्व देश भर के 21 विशेष पंडितों के अगुवाई में ज्योतिष आचार्य मनोहर सिंह कृष्णावत ने संपूर्ण पूजा अर्चना सम्पन करवाई। अनुष्ठान के बारें में जानकारी देते हुए तनवीर सिंह कृष्णावत ने बताया कि बायण माता प्रमुख शक्तिपीठों में एक हैं । बुधवार को अमरसिंह शांति यज्ञ में भाग लेंगे।  उनके साथ ब्रिटेन की पूर्व मंत्री सैंडी वर्मा भी मौजूद रहेगी।

माँ शक्ति देती है : अमरसिंह

नवरात्रि में माँ बायण के शीश नवाने पहुंचे अमर सिंह ने कहाँ की माँ की आराधना शक्ति देती है और नव ऊर्जा का संचार करती है मेवाड़ के इस कुलदेवी में ही एसा चमत्कामर है कि वह स्वयं उन्हें बुलाती है। यहां आकर उन्हें आनन्द और शांति की अनुभूति होती है। उन्होंने देश में खुशहाली और शांति के लिए माँ से वरदान माँगा।

श्री बायण माताजी घाटड़ा

श्री बायण माताजी मंदिर घाटड़ा ( डूंगरपुर , राजस्थान )

उदयपुर जिले के घाटड़ा गाँव में स्थित श्री बायण माताजी का मंदिर , मंदिर कई साल पुराना हैं अभी नये मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा हैं ।

माँ बायण री चाकरी , करस्या मैं दिन रात |
जग छोड़े माँ नही छोड़े , निभावे हम साथ ||

Friday 7 October 2016

श्री बाण माताजी मंदिर मगरिवाड़ा

मगरीवाड़ा से सटी पहाड़ी पर स्थित बाण माता के चमत्कार आज भी सुनने को मिलते है। भैरूगढ़ (वणजारी) से आकर रावल ब्राह्मण परिवारों ने बसाया था मगरीवाड़ा। करीब 580 साल पूर्व स्थापित माता के मंदिर को लेकर आज भी लोगों में अटूट आस्था है। यही कारण है कि एक हजार बीघा में पहाड़ी के चहुंओर बसे ओरण से पेड़ की एक टहनी भी काटनी तथा घर ले जाना खतरे से खाली नहीं है। हर माह शुक्ल पक्ष की चौदस को मेला भरता है तथा नवरात्र में विशेष पूजन होता है। पहाड़ी स्थित मंदिर का रास्ता दुर्गम होने तथा बुजुर्गों के लिए परेशानी होने से गांव के मध्य ही एक बाण माता का मंदिर बना दिया गया।  किवदंती के अनुसार इसी स्थान पर राक्षस बाणासुर का वध जोगमाया ने तीक्ष्ण बाणों से करने से बाणमाता हो गया। व्याख्याता व रावल ब्राह्मण समाज के छगनलाल रावल ने बताया कि गांव को रावल ब्राह्मणों ने भैरूगढ (वणजारी) के पास स्थित गेढवणा खेड़ा से आकर बसाया था। जिसे उन्हें गोमण की उपाधी मिली थी। गोठवणा खेड़ा में रावल जाति के गोपालक रहते थे। जहां हर रोज एक शेर आकर गायों को मार कर चला जाता, जिससे वे परेशान थे। एक बार एक परिवार के बुजुर्ग को माता का सपना आया। जावल के पास स्थित पहाड़ी की जगह चिह्नित कर बताया कि पहाड़ी में एक पाट मिलेगा वहां जाकर एक लकड़ी का पाट रखकर उजयाली चौदस व नवरात्र में नौ दिन दीपक करना। सपने के अनुसार पहाड़ी (वर्तमान मगरीवाड़ा स्थित बाणमाता) पर दीपक करते ही शेर का आना बंद हो गया। रावल ब्राह्मण जाति के लोग आते-जाते रहे। इस दौरान गुजरात के ठाकरड़ा जाति के लोग चोरी करने आते थे। जिससे वे भी परेशान थे। रावलों ने पहाड़ी की तलहटी पर ही तोरण बांध कर गांव बसा लिया। वहां भी चोरों का भय होने से हरणी अमरापुरा से छोटी पांति के राजपूत परिवार को लाया गया था। पुराने मगरीवाला से अपभं्रश होकर बने मगरीवाड़ा में आज भी पुरानी वाव, मकानों के खंडहर व बागी खुशालसिंह की गुफाएं है। वाव के पानी में प्रचंड तेज होने से मां के प्रताप से पानी पिने वाला शूरवीर होता था। विक्रम संवत 2042 में शिवगिरी महाराज ने पहाड़ी पर मंदिर बना कर जीर्णाद्धार करवाया था।

ओरण से नहीं काटते लकड़ी 

पहाड़ी के चहुंओर लगभग एक हजार बीघा का ओरण है। मां का चमत्कार व भय होने से आज भी पेड़ की छोटी टहनी काटने से कतराते है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में मौत होने पर केवल दाह संस्कार के लिए ओरण से लकड़ी लाई जाती है। अगर कोई भूल से भी सुखी या डाली लेकर घर आता है तो उसे चमत्कार मिल जाता है। मंदिर परिसर में आज भी परम्परागत गरबे होते है। जहां ग्रामीण ही गरबा गाते है।

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कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

सोनाणा खेतलाजी का सक्षिप्त इतिहास- भक्तों चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि हैं वैसे तो पुरे भारत वर्ष में आज से नवरात्रि शुरू होंगे लेकिन ...