Wednesday 30 November 2016

श्री बाण माताजी श्लोक-07

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी, भुक्ति सूक्ति प्रदायिनी |
मंत्रपुते सदा देवी, बाणेश्वरी नमोस्तुते ||

Tuesday 29 November 2016

श्री बाण माताजी श्लोक-06


सर्वज्ञे सर्व वरदे, सर्वदुष्ट भयंकरी |
सर्व दुःख हरे बायणेश्वरी नमोस्तुते ||

श्री बाण माताजी श्लोक-05

नमस्ते हंसारुढ़े, बाणासुरभयंकरी |
सर्व पापहरे देवी, बाणेश्वरी नमोस्तुते ||

Monday 28 November 2016

श्री बाण माताजी मंदिर सरवानिया ( मध्यप्रदेश )

श्री बाण माताजी मंदिर सरवानिया महाराजा ( मध्यप्रदेश )

श्री बाण माताजी का यह मंदिर सरवानिया महाराजा गाँव में स्थित हैं , कुलस्वामिनी जगत जननी श्री बाण माताजी हमेशा अपने कुल की रक्षा हेतुं जानी जाती हैं मेवाड़ राजवंश सिसोदिया गहलोतं वंश के राजस्थान में जितने भी गढ़ या रावले हैं उन सब की रक्षा हेतुं वहां माँ बाणेश्वरी के छोटे-बड़े मंदिर या थान बने हुए हैं ।
ऐसे ही मध्यप्रदेश के सरवानिया महाराज ठिकाने के गढ़ में श्री बायण माताजी का यह मंदिर बना हुआ हैं , श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर की जानकारी के अनुसार लगभग 250-300 साल पूर्व यह गाँव बसाया गया था । उदयपुर से सुजानपुर एक परिवार आकार बसा , सुजानपुर से ही इनके एक भाई मोकम सिंह सरवानिया आए और इस गाँव को बसाया और एक श्रवण नामक भील के नाम पर इस गाँव का नाम सरवानिया महाराज रखा ।
इस गाँव को बसा यहां मोकम सिंह जी ने श्री बायण माताजी और प्रभु श्री राम का मंदिर बनवाया गया , धीरे-धीरे समयानुसार बायण माताजी का मंदिर खंडहर बनता गया , दो साल पूर्व मुंबई से मुर्तीकार को बुलाकर चित्तौड़ में विराजमान श्री बाण माताजी के समान मूर्ती बनाई गई ।
दो साल पूर्व इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कर श्री बायण माताजी की नवीन प्रतिमा की स्थापना की गयी ।
श्री बाण माताजी की महिमा अपरंपार हैं , अपने कुल का कल्याण हेतु देवी का ध्यान करें और इनकी पूजा और आराधना करें , माँ कल्याणकारी हैं और ममतामयी हैं जो इनकी शरण में आते हैं उनका कल्याण अवश्य करती हैं ।

गढ़ सरवानिया मायने , बैठी धनुष-बाण ले हाथ |
मोकम सिंह जी मंदिर बणायो , प्रभु श्रीराम रे साथ ||
सरवानिया में देवरों , बैठी मोटी मात |
रक्षा देवी राखजें , सुणजे मोरी बात ||
अरज करूँ माँ आपसे , सुनियो दया निधान |
मुझ चरण शरण देना , महामाया माँ बाण ||

जय माँ बायण
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श्री बाण माताजी श्लोक-04

नमस्ते स्तु महामाये, जगत भवानी पूजिते |
वैद बाण-धनुष हस्ते, श्री बाणेश्वरी माँ नमोस्तुते ||

Sunday 27 November 2016

श्री बायण माताजी स्तुति पार्ट-03

श्री बायण माताजी की स्तुति पार्ट-03

हे महामायास्वरूपे ! अपने विशाल हाथों में वेद, कमण्डल और धनुष-बाण धारण करने वाली, अपने भक्तों को अभयदान देने वाली माँ, मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायणेश्वरी ! आपका प्रभाव लोक प्रसिद्ध हैं, सदैव आपका प्रताप लोक रक्षा के लिए समय-समय पर विविध रूपों में प्रकट होता हैं । पश्चिम में आप बाण, बायण माता, ब्रह्माणी माता, वरदायिनी माता और दक्षिण में कुमारी अम्मा के नाम से विख्यात हो । आप पापियों के विनाश के लिए कालस्वरूपा हैं । हम जैसे मंदबुद्धि आपके गहन चरित्र के समझने में सर्वथा असमर्थ हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायण माता ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश, वायु, इंद्र, यम, वरुण, अग्नि तथा सूर्य, चंद्रादि सभी देवता, ऋषि-मुनि और वेद-शास्त्र आदि आपके प्रभाव को नही जान सकते । आपकी महिमा अनुपम और अवर्णनीय हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे ब्रह्माणी देवी ! आपकी महिमा का अंत वेदवेत्ता विद्वान् भी नही पा सके । यहां तक कि स्वयं वेद भगवान भी आपकी महिमा के अंत को पाने में असमर्थ हैं, इसी संदर्भ में ही आपकी महिमा को जानने के प्रयास में शास्त्रों का आविर्भाव हुआ हैं ।
हे बाण माता ! अन्य देवी-देवताओं को छोड़ कर एक मात्र आपकी शरण में आने वाले और आपका पूजन करने वाले सचमुच धन्य हैं । वस्तुतः आप जैसा अपने भक्तों के लिए ममतामयी स्वरुप और कोई भी देवी-देवता नही ।
हे माँ बायण माता ! आपने ही संसार के सभी पदार्थों की सृष्टि की हैं । और आप ही सभी पदार्थों की प्रभावमयी शक्ति हैं । वस्तुतः जिस प्रकार नट अपने बनाए नाटक में स्वच्छन्द विचरण करता हैं, उसी प्रकार आप इस संसार में लीला करती हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे बाणेश्वरी ! इस संसार को बड़े से बड़ा कोई बुद्धिमान आपके चरित्र को समग्रता से नही जान सकता । मुनिगण, नारद तथा सनकादि भी आपकी महिमा को जानने में असमर्थ हैं । वस्तुतः आप का चरित्र अनिवर्चनीय हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बाण मैया ! यह सारा संसार आपके गले में माला के समान विभूषित हो रहा हैं । संसार के आश्रयभूता और लज्जास्वरूपा आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।

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Friday 25 November 2016

श्री बाण माताजी श्लोक (03)

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे |
सर्वस्यार्तिहरे देवी बाणेश्वरी नमोस्तुते ||

Thursday 24 November 2016

श्री बायण माताजी स्तुति ( पार्ट 02 )

श्री बायण माताजी की स्तुति ( पार्ट 02 )

आदि प्रकृति, विधात्री, कल्याणस्वरूपा, सकल कामनाओं तथा सभी ऋद्धियों-सिद्धियों को प्रदान करने वाली हे बायणेश्वरी ! मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम।
हे माँ बाणेश्वरी ! मैंने इस तथ्य को जान लिया हैं कि जड़-चेतन संसार आप में ही समाया हुआ हैं और आपसे ही सृजन-प्रलय होते रहते हैं । इस संसार की सत्ता में आपकी ही शक्ति हैं और इस रूप में आप ही लोकमयी हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे जगत जननी बाण माता ! आप ही इस संसार का भरण-पोषण करती हैं । आप की शक्ति से ही सूर्य-चंद्रादि चमकते और संसार को प्रकाश-ऊष्मा प्रदान करते हैं । इन सबमें आप ही अदृश्य रूप में विराजमान हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायण माता ! मेरी आपसे यही विनती हैं कि मेरा मस्तक सदा आपके चरण कमलों में नत रहे । मेरा चित्त सदा आपके रूप-सौन्दर्य में आसक्त रहे, मेरे कानों में सदा आपके गुणों के उच्चारण की ध्वनि आती रहे और मेरे नेत्र आपके चरण कमलों के दर्शन करते रहे । हे माँ ! मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे चित्तौड़ स्वामिनी ! आपके बिना इस संसार की कोई सत्ता ही नही । आप ही इस समग्र जड़ चेतनमय संसार में व्याप्त हो रही हैं । जिस प्रकार शक्ति के अभाव में मनुष्य असमर्थ हैं-यही सभी ब्रह्मादि देवता, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि असमर्थ हैं । मेरा आपको कोट-कोटि प्रणाम ।
हे बाणासनवती ! बुद्धिमानों में बुद्धि और शक्तिमानों में शक्ति तथा कीर्ति, कांति, लक्ष्मी, विद्या, संतुष्टि, रति, विरति तथा मुक्ति आप ही हैं। आपकी ही विभूति का सर्वत्र साम्राज्य हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ ब्रह्माणी ! आप प्राणियों के मोक्ष-साधनरूपी कल्याण के लिए ही विश्व की सृष्टि करती हो, वस्तुतः जिस प्रकार समुद्र की अनन्त लहरें उसकी अनन्तता को ही प्रकट करती हैं, उसी प्रकार यह विविधरूपा सृष्टि भी आपकी शक्ति का अणु प्रदर्शन मात्र ही हैं । मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे वरदायिनी ! हे विद्यास्वरूपणी ! हे कल्याणकारिणी ! हे सकल अभीष्ट प्रदान करने वाली माँ ! मैं आपके चरणों में नतमस्तक होकर आपसे ज्ञान के प्रकाश की याचना करता हूँ ! बाण मैया, मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।

जय माँ बायण

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Tuesday 22 November 2016

श्री बायण माताजी की स्तुति ( पार्ट 01 )

श्री बायण माताजी की स्तुति :

विश्व की उतपत्ति करने वाली , महामायारूपिणी शुभस्वरूपा , गुणातीता , सर्वप्राणियों की स्वामिनी तथा चित्तौड़ गढ़ दुर्ग की स्वामिनी हे श्री बायण माता ! आपको मेरा नमस्कार ।
हे बाण माता ! आप ही वेदों की ऋचा हो , आप ही उन ऋचाओं द्वारा संस्तुति की जाने वाली आदिशक्ति हो । आप ही यज्ञ द्वारा हवन की जाने वाली दिव्य सत्ता हो । आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायणेश्वरी ! आपने ब्रह्मा , विष्णु , शिव , इंद्र , अग्नि , सूर्य आदि लोकपालों की रचना की हैं , इस संसार के सभी स्थावर-जंगम प्राणियों की स्रष्टा आप ही हो । अतः आपसे सर्जित कोई भी देवता आपसे बढ़कर अथवा आपके समान हो ही नही सकता । आप ही ज्येष्ठा-श्रेष्ठा एवं मुख्या हैं। आपको मेरा कोटि-कोटि नमस्कार ।
हे श्री ब्रह्माणी देवी ! जब आपकी इच्छा लीला करने की होती हैं तब आप ब्रह्मा , विष्णु तथा शिवादि को उत्पन्न करके उनके द्वारा अखिल भुवनों का सर्जन , पालन तथा संहार कराती हैं । आपके संकेत से ही यह सारा परिवर्तन होता हैं । आपको इस दास का कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे वरदायिनी माता ! सकल देवों के मध्य एक भी ऐसा देव नही , जो आपकी महिमा को समग्र रूप में जान-समझ सके । वेदवाक्य प्रमाण हैं कि आप ही अकेली इस संसार की सृष्टि , उत्पत्ति तथा संह्यति का मूल हैं-इसमें अविश्वास के लिए अवकाश कहाँ हैं? जननी ! आपको अनुराधा का कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बाणेश्वरी ! आपकी महिमा का वर्णन वेद-शास्त्र कर ही नही पाते । सत्य तो यह हैं कि आप स्वयं भी अपनी महिमा के सम्यक् रूप से परिचित नही । सकल संसार की रचना जिस निरीह भाव से आप करती हैं, उससे मनुष्य सचमुच ही विस्मय व्यथित हो उठता हैं । हे माँ बायण ! आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायण ! आप त्रिलोकी के निर्माण में चतुर , दया की सजीव प्रतिमा , सभी विद्याओं की आदि स्त्रोत , लोक का कल्याण करने वाली तथा पापों का नाश करने वाली हो , आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे बायण माता ! आप ही सब जीवों का आश्रय हैं और आप ही सब प्राणियों का प्राण , बुद्धि , शोभा , प्रभा , क्षमा , शान्ति , श्रद्धा , विद्या , धृति और स्मृति हैं अर्थात ये सारे गुण आपकी ही विभूति हैं-आपको अनु का कोटि-कोटि प्रणाम ।

जय माँ बायण

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Sunday 20 November 2016

श्री बाण माताजी श्लोक 02

श्री बायण माता ब्राह्मणी , श्री बायण पापनाशिनी |
खड्गहस्ते हंसचढे , श्री बायण माता नमोऽस्तु ते ||

श्री बाण माताजी श्लोक 01

ॐ श्री बायण माता , श्री बायण माता जगत्पते।
बाणेश्वरी माँ महामाया माँ बाणेश्वरी नमोऽस्तुते॥

Tuesday 15 November 2016

श्री ब्रह्माणी माताजी मंदिर मेड़ता रोड

श्री ब्रह्माणी माताजी मंदिर फलौदी का इतिहास :

राजस्थान की भूमि प्रारम्भ से ही वीरों , संतों , ऋषियों एवं चमत्कारों की भूमि रही हैं । इसी संदर्भ में नागौर जिले का गाँव मेड़ता रोड ( फलौदी ) भी माँ ब्रह्माणी के प्राचीन मंदिर की वजह से अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं ।
राजा नाहड़ राव परिहार द्वारा जिस समय पुष्कर राज में ब्रह्मा मंदिर की स्थापना की उसी समय उन्होंने मारवाड़ में 900 तालाब , बेरा , बावड़ी तथा छोटे-छोटे बहुत सारे मंदिर बनवाए थे । उस समय फलौदी गाँव ( मेड़ता रोड ) में भी ब्रह्माणी माता का एक कच्चा थान ( मंदिर ) बना हुआ मौजूद था । राजा ने उस कच्चे थान को एक छोटा मंदिर का रूप दे दिया , जिसके पास ही एक तालाब व एक बावड़ी भी खुदवाई , जो आज भी मौजूद हैं ।
वि. सं. 1013 में मंदिर बनवाने के पश्चात् शीघ्र ही उस मंदिर में ब्रह्माणी माताजी की प्रतिष्ठा वि. सं. 1013 में कराई , उस वक्त प्रतिष्ठा के लिए रत्नावली ( रुण ) नगरी से भोजक केशवदास जी के पुत्र लंकेसर जी को लेकर यहां आये और मंदिर की प्रतिष्ठा कराई तथा बाल भोग के लिए उस वक्त राजा नाहड़ राव ने 52 हजार बीघा जमीन माताजी के नाम अर्पण की , जिसका संपूर्ण अधिकार लकेसर जी को सौपा ।
जिस वक्त राजा ने मंदिर की प्रतिष्ठा कराई , उसी दौरान एक तोरणद्वार यादगार के रूप में मंदिर के बहार बनवाया , जो कि प्राचीन संस्कृति एवं कलात्मकता का एक अद्भुत नमूना था जो 9 चरणों में बँटा हुआ एक विशाल स्तम्भ दिखाई देता था । जिसकी ऊंचाई उस वक्त 85 फुट थी , बादमे इस तोरणद्वार का उपयोग विशाल द्वीप स्तम्भ के रूप में किया जाने लगा । आस-पास के इलाके के राजा-महाराजा अपने किलों की ऊपर खड़े होकर विशाल दूरबीनों की सहायता से नवरात्रि पर्व के समय माताजी की ज्योति के दर्शन करते थे , जो इस तोरण द्वार के सबसे ऊपरी हिस्से पर दर्शनार्थ हेतुं रखी जाती थी ।
ननवरात्रि पर्व के समय राजा-महाराजाओं द्वारा स्वर्ण एवं रत्न-जड़ित पौशाकें माताजी के श्रृंगार हेतुं भेजी जाती थी , जिससे यहां अत्यधिक मात्रा में धन-संपदा एकत्रित हो चुकी थी । मंदिर की प्रतिष्ठा होने के एक वर्ष बाद वि. सं. 1014 को भोजक केशवदास जी , किरतोजी , बलदेव जी , सुमेरजी आदि ने मिलकर वैशाख सुदी तीज सोमवार को कुलदेवी फलदायनी के नाम से फलौदी नाम का गाँव बसाया जो आज मेड़ता रोड कहलाता हैं ।
वि. सं. 1121 में शुभकरण जी ओसवाल द्वारा माताजी की जमीन पर पाशर्वनाथ जी का मंदिर बनवाया गया , जमीन के लिए पाशर्वनाथ मंदिर की तरफ से माताजी के मंदिर को किराया-भाड़ा दिया जाता था , उस वक्त राजा जीवराज जी परिहार थे । वि. सं. 1200 में श्रीमती ढंढमोत तिलोरा इजाहण साहब का पोता विमलशाह ने ब्रह्माणी माताजी की जमीन पर शांतिनाथ जी का मंदिर बनवाया , जिसकी प्रतिष्ठा करवा कर सेवा के लिए ब्रह्माणी माताजी के ही पुजारियों को नियुक्त किया था ।
वि. सं. 1351 में मुगलकाल में यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध व् सुदृढ़ स्थिति में था । इसी वजह से मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी ने यहाँ आक्रमण करके बहुत लूटपाट की जिसमे वो बहुत सारी रत्न जड़ित माताजी की पौशाकें व् आभूषण ले जाने में सफल रहां , उस समय जैसलमेर की चढ़ाई पर जा रहा था इस आक्रमण के दौरान लूटपाट के विरोध में पुजारी श्री धनजी जाँगला के पुत्र बनराज जी , विष्णु जी तथा दोपा जी लड़ते हुए शहीद हुए ।
वि. सं. 1633 में दिल्ली के बादशाह अकबर की फौज गुजरात पर चढ़ाई करने जा रही थी तो फलौदी ( मेड़ता रोड ) होकर गुजरी । इस फ़ौज का सूबेदार कालेखाँ था , जिसकी नजर दूर से ही मंदिर के पास बने कलात्मक व् ऊँचे भव्य तोरण पर पड़ी जो 85 फुट ऊंचा सीना ताने खड़ा था । कालेखाँ ने सबसे पहले इसे ही नष्ट करना शुरू करवाया । मुगल फ़ौज इसे बड़ी क्रूरता से तोड़ रही थी , इसी दौरान कालेखाँ स्वयं मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया तथा मंदिर जिन प्रमुख चार कलात्मक खंभो पर खड़ा था उनको तुड़वाना शुरू किया तीनो खंभे तोड़े जा चुके थे , तब कालेखाँ ने ब्रह्माणी माताजी की मूर्ती तोड़ने की नीयत से गृभगृह में प्रवेश करना चाहा तो उसी दौरान एक बहुत बड़ा चमत्कार हुआ ।
माँ भगवती जगत जननी स्वयं प्रकट होकर क्रोध से दहाड़ उठी और उनहोनर कालेखाँ को जहाँ खड़ा था वही उसके पाँवो को जमीन से चिपका दिया । काले खाँ अपनी पूरी ताकत लगाकर हार गया लेकिन अपने पाँवों को जमीन से नही छुड़ा पाया , तब उसने हारकर माँ ब्रह्माणी के चरणों में अपना शीश झुकाकर क्षमा मांगी और अपने पैर जमीन से छुड़ाने की प्रार्थना की । जगत जननी मैया बड़ी दयावान हैं और ब्रह्माणी माता ने उसे क्षमा कर दिया और कहाँ " अपने मुगल सैनिकों को मार-काट और लूटपाट करने से तुरंत रोक दे । " तब काले खाँ के आदेश से लूटपाट बन्द हुयी तब तक तोरण द्वार का मात्र एक हिस्सा ही बचा रह गया जो आज भी अपनी जगह विद्यमान हैं और इसी तरह मंदिर के अंदर भी एक स्तम्भ ही सुरक्षित रहा , जो आज भी स्थित हैं । इस तरह काले खाँ माँ ब्रह्माणी के क्रोध से मुक्त हुआ और उसने वचन दिया कि आज के बाद किसी भी मुगल शासक को यहां लूटपाट नही करने देगा , इस आक्रमण में 80 आदमी मारे गए थे ।
वि. सं. 2004 ( ई. सन 1947 ) में जब मेड़ता रोड़ से होकर रेल लाइन निकाली गई तो उस जमीन के एवज गे रेलवे द्वारा लाखों रुपये का मुआवजा मंदिर के नाम पास किया , क्योंकि जमीन 52 हजार बीघा थी । जिसमें न केवल रेलवे बल्कि आस-पास के छोटे-मोटे गाँव भी माताजी मंदिर के अधिकार क्षेत्र में आते थे , जिसका मुआवजा आज दिन तक का सरकार में जमा हैं ।

नवरात्रि पर्व की विशेषता :-

संपूर्ण भारत में फलौदी ब्राह्मणी माताजी का मंदिर अपना एक विशेष स्थान रखता हैं , कारण कि नवरात्रि पर्व के दौरान यहां एक अद्भुत एवं चमत्कारिक प्रथा प्रचलित हैं । जिसको स्थानीय भाषा में 'दुआ' शब्द के नाम से जाना जाता हैं जो कि पूरे भारत में होने वाले नवरात्रि पर्वों में सिर्फ यही पर प्रचलित हैं । इस मंदिर में नवरात्रि पर्व का एक विशिष्ट स्थान हैं , वर्ष में दो बार यहां नवरात्रि पर्व चैत्र वदी अमावस से प्रारम्भ होकर सप्तमी तक चलता हैं द्वितीय नवरात्रि पर्व आसोज वदी अमावस से लेकर सप्तमी तक चलता हैं । इस दौरान अमावस से लेकर छठ तक किसी भी प्रकार का भोग व प्रसाद माताजी को नही चढ़ता तथा सप्तमी के दिन ब्रह्माणी माताजी को भोग लगता हैं ।
नवरात्रि पर्व के समय जो भक्तगण ब्रह्माणी माताजी की उपासना एवं भक्ति करने की तमन्ना रखते हैं , उन्हें ब्रह्माणी माताजी की अदृश्य अनुमति से ही गृभगृह में प्रवेश मिलता हैं । गृभगृह में प्रवेश करने के बाद उन भक्तों को 7 दिन तक मात्र चरणामृत के सहारे ही भक्ति करनी पड़ती हैं , इस दौरान इन भक्तों को चरणामृत के अलावा किसी भी पदार्थ का सेवन करने की अनुमति नही  हैं , चाहे वो भक्त 8 का हो या 60 वर्ष का यही अपने आप में ही बहुत बड़ा चमत्कार हैं । पाँचम के दिन इस मंदिर में नवरात्रि पर्व अपने पूर्ण उफान पर होते हैं , इस दिन रात्रि 10 बजे ब्रह्माणी माताजी की आरती में जो दृश्य उत्पन्न होता हैं , उसकी झलक संपूर्ण भारत वर्ष में मात्र यही पर देखने को मिलती हैं ।
उस समय जो भक्त ब्रह्माणी माताजी की भक्ति में पिछले छह दिनों से निरंतर लीन रहते हैं , उन्हें आरती के समय गृभगृह में ब्रह्माणी माताजी की कृपा व आदेश से ही उनमें से किसी एक भक्त की अंतरात्मा से एक व्यक्ति का नाम बड़ी तेज आवाज के साथ उच्चारित होता हैं , जिसका अर्थ यह होता हैं कि ब्रह्माणी माताजी व् उनके भक्त जो पिछले 7 दिनों से मात्र चरणामृत ( जल ) के सहारे रहे हैं अब वो अमुक व्यक्ति के घर का प्रसाद ग्रहण करेंगे और वो व्यक्ति इन भक्तों को आदर सहित अपने घर ले जाकर उनको प्रसाद करवाता हैं और इस कार्य को श्री बाण माताजी की कृपा व आशीर्वाद समझकर अपने आपको भाग्यशाली महसूस करता हैं। इस प्रकार इस दुआ शब्द की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती हैं , इस मंदिर में भारत के कोने-कोने से यात्री व् भक्त आते हैं और माँ के दरबार में मन मांगी मुरादे पूरी पाते हैं ।

माँ ब्रह्माणी माताजी का चमत्कार :
श्री फलौदी ब्राह्मणी माताजी की महिमा-न्यारी हैं जैसा कि आप ब्रह्माणी माताजी के चित्र में देख रहे हैं कि पास-पास दो मूर्तियां हैं , एक मूर्ती तो सदियों पुरानी मुख्य मूर्ति हैं जो कभी कही से मामूली खंडित हो गयी थी । वर्षों पूर्व एक भक्त ने हूबहू प्रतिमा बनवाकर मूल प्रतिमा को गृभगृह में रखवा दिया और नई प्रतिमा स्थापित करवा दी , मावड़ी को यह बात रास नही आई , आखिर माताजी ने अपनी एक महिला भक्त श्रीमती शांतिदेवी धर्मपत्नी स्व. शंकरलाल जी ओझा को दर्शन देकर आदेश दिया कि मेरे स्थान पर जाओ , माताजी का आदेश शिरोधार्य कर वह भक्त शान्तिदेवीजी चैत्र मास की सप्तमी ( सन 1981 में ) को अपने पुत्रों को लेकर निम्बाहेड़ा से मेड़ता पहुँच कर जैसे ही माँ ब्रह्माणी के मंदिर परिसर में पहुँची त्यों ही उनके मुख से माँ ब्रह्माणी ने दहाड़ कर कहाँ ' कि मेरी मूर्ती को गृभगृह से निकाल कर मंदिर में पुनः उसी स्थान पर इसी समय स्थापित करों ' माँ का विकराल रूप देख उसी वक्त मंदिर के पुजारी जी को बुलाया गया और मूर्ती उसी वक्त गृभगृह से मुख्य मूर्ती निकाल कर मंदिर में नव स्थापित मूर्ती के पास उसी स्थान पर पुनः स्थापित की तब जाकर माँ ब्रह्माणी शांत हुई ।

ब्राह्मणी माताजी मंदिर मेड़ता रोड़ पहुँचने का मार्ग :
जोधपुर से मेड़ता रोड ( फलौदी ) : 105 कि. मी. रेल द्वारा
बीकानेर से मेड़ता रोड़ : 162 कि. मी.
अजमेर से मेड़ता रोड़ : 95 कि. मी. बस द्वारा

' बाण तूँ ही ब्राह्मणी , बायण सु विख्यात |
सुर सन्त सुमरे सदा , सिसोदिया कुल मात ||

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जय माँ ब्रह्माणी
जय सोनाणा खेतलाजी

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कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

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