Sunday 27 December 2015

श्री ब्राह्मणी माताजी और श्री कालिका माताजी ( भवाल माताजी )

मित्रों हम आपको माँ के इस @[306557149512777:] पेज के माध्यम से बाण माताजी के विभिन्न मंदिरों की जानकारी देते एवं माँ बायण का इतिहास बताते आ रहे है , आज हम आपको भवाल माताजी के नाम से विख्यात श्री ब्राह्मणी ( बाण , बायण ) माताजी और श्री कालिका माताजी के इस मंदिर के बारें में बताएँगे । इस मंदिर में कालिका माताजी के सन्मुख ही श्री बाण माताजी विराजमान है ।
भँवाल माँ का इतिहास
यु तो इतिहास बनाने वाली का इतिहास कोई नहीं बता सकता परन्तु कथा साहित्य लिखने से मनुष्य अपनी जानकारी बढ़ा सकता है और इसी सन्दर्भ में हम माँ के भँवाल धाम पर अवतारित होने की गाथा को लिख रहे है !
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जय भंवाल माँ
माँ भवानी की कथा
दन्त कथा के अनुसार सत-युग में भक्त की करुण पुकार सुन माँ भंवाल ने , जो की उस समय काठियावाड़ के भंवाल गढ़ गांव (तत्कालीन जिला नागौर, राजस्थान ) में एक खेजड़े के निचे से धरा फाड़ के मूर्ति रूप में प्रकट हुई और आकाशवाणी करके बतलाया के हम दो बहने कालका व् ब्राह्मणी के रूप में आई है और ये मूर्ति हमारी निशानी रहेगी !! जब जब भक्त (सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी ) यहाँ आके सच्चे मन से हमें पुकारेंगे हम अवश्य ही उनकी  मनसा पूर्ण करेंगी !!
शिलालेख और जैसे हमारे बड़ो ने बताया ......
विक्रम संवत - १०५० के आस - पास एक डाकुओं की बड़ी टुकड़ी को उस समय के राजा की सेना ने घेर लिया था !! वह डाकू माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे और मृत्यु निकट दिख रही थी !! तभी उन्हें सामने माँ कालका - ब्राह्मणी की मूर्ति का साक्षात्कार हुआ !
होरम पल्ला पसार के माँ के सामने नतमस्तक हो कहा " हे माँ अब हमारे प्राण तुम्हारे हाथ है, अगर हमे आपकी दया प्राप्त हुई और हमारे प्राण आपने बचा लिए तो माँ जो कुछ हमारे समक्ष है सब कुछ आपको समर्पित कर देंगे !! और जैसे ब्रह्मा जी कहते है " यम यम चिन्तयते कामम् तम तम प्राप्नितो निश्चितं " अर्थात जिस जिस काम की प्राणी तू कामना करेगा माँ उसे अवश्य की सिद्ध कर देंगी सो माँ ने सभी डाकुओं को भेड बकरी में बदल दिया और सामने होते हुए भी भर जोर कोशिश के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा !!
अब वचन अनुसार जो भी कुछ डाकुओं के पास था माँ को समर्पित किया! परन्तु प्रसाद चढाने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण बहुत निराश हो रहे थे! तभी मन में विचार आया के माँ तो प्रेम भावना से प्रसन होती है ये मदिरा को हम अगर प्रेम भावना से चढ़ाएंगे तो क्या माँ ग्रहण करेंगी ?
झिज्ञासा और वात्सल्य से प्रेरित हो माँ को एक प्याला मदिरा का ज्यों ही चढाने के लिए बढ़ाया तो आश्चर्य चकित होगये के प्याला स्वयं ही खाली हो गया, उत्सुकता वष दूसरा प्याला बढ़ाया और वो भी खाली परन्तु जैसे ही तीसरा प्याला आगे बढ़ाया तो आधा ही खाली हुआ !! तो डाकू सोच में पड़ गए के आखिर क्या गलती रह गयी जो माँ ने तीसरा प्याला नहीं पीया !! तब माँ ने दर्शाया के तुम्हारे प्रेम का प्रसाद है इसलिए जो भी तुम ने दिया मैंने ग्रहण किया अब बचा हुआ आधा प्याला भैरों को चढ़ा दो और आज से ये प्रसाद(तामसिक*) मुझे (अर्थात कालका माँ ) चढ़ेगा !! और माँ ब्राह्मणी के आदेशानुसार उन्हें फल फूल मिठाइयां चढ़ाई जाती है !!
* इसी लिए पहले के समय मदिरा के अलावा रक्त का प्रसाद भी चढ़ता था !!
धन्य है वो डाकू जो माँ को इतने सच्चे मन से पुकारा की उन्हें दर्शन दे दिया !!
और इसी चमत्कार को नमस्कार करते हुए डाकुओं ने दृढ़ संकलप लिया के वे यहाँ माँ के भव्य मंदिर का निर्माण करेंगे और ६० वर्षों तक भक्ति में लीन हो कर उन्हों ने माँ का अद्भुत मंदिर खड़ा किया !! और विक्रम संवत १११९ में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ !! माँ की भक्ति की शक्ति ही प्राप्त थी उन्हें इसी लिए बिना किसी औजार व् वाहन के साधन के भी पांच पांच हज़ार किलो तक के पत्थर को बिना चुना और सीमेंट के जोड़ दिया !! और बेजोड़ नकाशी का कार्य जो आज हम बिना आधुनिक उपकरण के हम सोच भी नहीं सकते उन्होंने साकार कर दिया !! माँ के पुण्य प्रताप से उन्होंने अपने छुपने के लिए माँ के पास ही रहना सबसे उत्तम समझा इसीलिए माँ के निज आले के ऊपर ही एक गुफा बनायीं जो की आज भी विधमान है !!
इसके पश्च्यात मंदिर में कई बदलाव भक्तो द्वारा समय समय पे किये गए !
माँ आज भी अपने बच्चों से प्रसन होकर तामसिक भोग लगाती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है !!
यह हमारे पूर्व जनम के संस्कार ही है के हमें माँ के चरणो में ठिकाना मिला और माँ ने हमे (राजपूत/ बैंगाणी/ अन्य ओसवाल /झांझरा......)को अपने कुल में पैदा किया !! ऐसी कुल धिराणी पा के हम तो धन्य हो गए !! माँ यो ही हम पर मेहर बरसाती रहे और हम यु ही माँ की भक्ति में दुबे रहे ...इसी के साथ

" काळी कल्याणी मावड़ी , लेह ढ़ाई प्याला रो भोग ।
ब्राह्मणी बेठी साथ में , भजिया मिटे सब रोग ।। "

जय श्री बाण माताजी
जय श्री कालिका माताजी
जय श्री सोनाणा खेतलाजी
जय श्री एकलिंग नाथ जी

Saturday 26 December 2015

माँ ब्राह्मणी मंदिर - राजा सुरथ से जुड़े इतिहास

मां ब्राह्मणी मंदिर : राजा सूरथ से जुड़े हैं इतिहास
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जय माँ बाण/बायण/ब्राह्मणी माताजी
हनुमानगंज (बलिया) : जिला मुख्यालय से पांच किमी उत्तर बलिया-सिकंदरपुर मुख्य मार्ग पर ब्रह्माइन गांव स्थित मां ब्राह्मणी देवी का प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के बीच आस्था का केंद्र ¨बदु बना हुआ है। मान्यता है कि सच्चे मन से जिस किसी ने कुछ मांगा, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। नवरात्र में ही नहीं बल्कि अन्य अवसरों पर भी दर्शन-पूजन को दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। दुर्गा सप्तशती व मारकंडेय पुराण में वर्णित है कि भवन के राजाओं से हार कर राजा सूरथ कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने के बहाने निकल गए। आज जहां ब्रह्माइन गांव स्थित है कालांतर में वहां जंगल था। वहीं रुके और सैनिकों से पानी लाने को कहे। सैनिकों को कुछ दूर चलने पर एक सरोवर दिखाई दिया। वहां से पानी लाकर उन्होंने राजा को दिया। राजा युद्ध में घायल हो गए थे और शरीर के कई जगह से मवाद निकल रहा था। राजा ने जब उस पानी का स्पर्श किया तो वहां का कटा व मवाद युक्त घाव ठीक हो गया। इस घटना से चकित राजा ने सैनिकों को उस स्थान पर ले चलने को कहा जहां से वे जल लाए थे। वहां पहुंचने के बाद राजा ने उस सरोवर में छलांग लगा दी जिससे उनका पूरा शरीर सोवरन हो गया वहां पर राजा ने विचार किया कि निश्चय ही ये स्थान कोई पवित्र जगह है। सैनिकों को भेजकर राजा अकेले ही विचरण करने लगे वहीं पर उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया वह आश्रम महर्षि मेधा का था। महर्षि से उचित सत्कार पाकर राजा उनके आश्रम में विचरण करने लगे। कुछ दिनों बाद वहां पर एक समाधि नाम का वैश्य आया जिसे उसके परिजनों ने धन के लोभ में घर से निकाल दिया था। राजा सूरथ व समाधि ने ऋषि मेधा से शांति पाने का उपाय पूछा। ऋषि ने आदि शक्ति की उपासना को कहा। वहीं पर राजा सूरथ व समाधि ने तीन वर्षों तक मां ब्रह्माणी की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ब्रह्माणी देवी अवतरित हुई दोनों को मनोवांछित फल देकर अभिलाशित किया। राजा सूरथ की तपोस्थली सुरहा के नाम से विख्यात हुई और उससे निकलने वाला एक मात्र नाला जिसके जल से राजा का कोढ़ जैसा शरीर सुंदर हो गया, वह कटहल नाले के नाम से विख्यात हुआ।

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