Monday 27 February 2017

श्री बाण माताजी भजन

मैया नाम की धुन लगाते चलो....
प्रेम के आंसू बहाते चलो...
आन पड़े, जब कष्ट कभी....
मन में बाण मैया को बसाते चलो.....

नाम मैया का मंगलकारी जानत हैं जग सारा...
पाप कटेगा बायण नाम से जीने का हैं सहारा...
श्रद्धा प्रेम बढ़ाते चलो, गीत मैया के गाते चलो....
प्रेम के आंसू बहाते चलो.....!

डूब रहा जो बिच भंवर में उसकी बाण मैया हैं रखवाली....
भव सागर से जीवन नैय्या पार लगावन वाली.....
आशा दीप जलाते चलो...
प्रेम के आंसू बहाते चलो....!

बायण बिना जग में कोई न अपना झूंठी हैं जग माया...
सेवक बायण नाम सुमिर ले क्यों? जग में भरमाया...
ज्ञान की ज्योति जलाते चलो...
प्रेम के आंसू बहाते चलो......!

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

Saturday 25 February 2017

श्री बाणेश्वरी माता मंदिर सिलोइया जहाँ कुकर खांसी के ईलाज के लिए दूर-दूर से भक्त दर्शनार्थ आते हैं

चमत्कारी हैं सिलोईया की बाणेश्वरी माता का मंदिर

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  *छोटे बच्चे दूर-दूर से आते हैं खलखलिया ( कुकर खांसी) के अचूक ईलाज के लिए गुफा में से निकालने को रविवार या मंगलवार को ही बच्चों को गुफा में से निकाला जाता हैं |*


आधुनिक युग में माने या न माने लेकिन आज भी सचमुच चमत्कारी एवं जन - जन के आस्था का केन्द बना हुआ हैं जो सिरोही जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में डोडुआ के समीपवर्ती 18 कि मी दूर प्रकृति की गोद में बसा सिलोईया स्थित बाणेश्वरी माता का मंदिर हैं जहाँ पर चमत्कारी धाम हैं | यहाँ पर महिने की हर शुक्ल चौदहस को हजारों की तादाद में दूर- दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का मेला सा माहौल बना रहता हैं | पहाडी पर स्थित मंदिर की भव्यता व कलात्मक को देखकर मनमोहक हो जाता हैं |
      ज्ञातव्य रहे कि मंदिर के सामने ही गाँव से सटे पहाड़ी पर आरपार की चमत्कारी गुफा हैं जिसमें से होकर एक-एक व्यक्ति ही निकल सकता हैं | पहले बच्चों को चढाने के लिए परेशानी होती थी लेकिन वर्तमान में पहाड़ी पर चढ़ने व उतरने के लिए चार वर्ष पूर्व ही आस्तिक भक्तों ने चिढियां बनवाई हैं |
सिलोईया निवासी बुजुर्ग व्यक्ति शैतान सिंह देवड़ा से प्राप्त जानकारी के अनुसार ये धाम  करीब एक हजार वर्ष पुराना हैं | ये बताते हैं कि उस समय पाँच देवियां आबू से विभिन्न दिशाओं में निकली थी जिसमें मीरपुर में नोदवनी माता मामावली में पोमती माता सुन्धा में चामुण्ड़ा माता  जिसमें से एक देवी बाणेश्वरी माता सिलोईया में आई एवं पहाडी को फोड़ कर निकली जहाँ पर आज भी हजार वर्ष पूर्व से ही चमत्कारी गुफा विद्यामान हैं  व गुफा के सामने वाली पहाड़ी पर ही वर्तमान में विराजित हैं जहां भव्य कलात्मक मंदिर बना हुआ हैं |



देवड़ा ने बताया कि जिस गुफा से माता निकली उस गुफा का आज भी चमत्कार हैं  | यह पहले चमत्कार पाडिव के एक ब्राह्मण को दिया था जो कि कोढ़ से पीडित था लेकिन जैसे ही माता को धोक लगाने आया  तो तुरन्त ही माता के चमत्कार से बिल्कुल ठीक हुआ तब ब्राह्मण प्रसन्न होकर यहां पर एक वाव खुदाई जो आज भी विद्यमान हैं | ये बताते हैं कि सैंकड़ों पीढियों से आज भी यह हैं कि यदि छोटे बच्चों ( लड़का लड़की कोई भी )को खलखलिया ( कूकर खांसी ) हो जाए एवं उस बच्चे को रविवार या मंगलवार के दिन सूर्योदय की किरण निकले वक्त पर इस गुफा से प्रवेश करवाकर बाणेश्वरी माता के दर्शनार्थ ले जाया जाए एवं अपनी श्रद्धानुसार गुड़ का भोग लगाते हैं तो अति शीघ्र ठीक हो जाती हैं | वे यह भी बताते हैं कि जब भी किसी बच्चे को गुफा में से निकालते हैं तो पीछे देखना वर्जित हैं | खलखलिया ( कूकर खांसी ) ठीक कराने को लेकर विभिन्न क्षेत्रों के श्रद्धालु दूर - दराज से आने का तांता लगा रहता हैं एवं वो सचमुच बिल्कुल ठीक हो जाता हैं | देवड़ा ने यह भी बताया कि जब वे चार - पाँच वर्ष के थे तब उन्हें भी इस गुफा से निकाला था व खांसी ठीक हो गई थी | कुछ बड़े बुजुर्ग ये भी बता रहे हैं कि पुराने जमाने  में गेल गौत्र के देवासी को भी माता ने चमत्कार दिया था जो कालांतर में देवासी गुजरात  व नया सानवाड़ा ( सिरोही ) में  बसने लगे जिनके वंशज आज भी ब्याह शादी इत्यादि शुभ कार्य में समय - समय पर माता के चरणों में  धोक लगाने व दर्शन करने आते हैं |
      ये धाम बड़ा ही चमत्कारी हैं बाणेश्वरी माता का मंदिर पहाड़ी के ऊँचाई पर प्राकृतिक सौन्दर्य में बसने से हर किसी का मन प्रसन्न हो जाता हैं  | सिलोईया गाँव ग्राम पंचायत सरतरा के अधीन आता हैं | केवल पन्द्रह सौ लोगों की आबादी का ही छोटा सा गाँव हैं | पर हर घर वासी माता का परम भक्त व माँ के प्रति अटूट आस्था हैं |
   गौरतलब यह हैं कि इस मंदिर में बरसों से वराल के सोलंकी गौत्र  माली समाज ही पूजा अर्चना करते आ रहे हैं | वर्तमान में माता के मंदिर का पुजारी वराल के शंकर लाल माली हैं | पुजारी शंकर लाल माधु सिंह देवड़ा व कवि केसर सिंह गोहिल " अक्षर " ने बताया कि बाणेश्वरी माता का विशाल वार्षिक मेला प्रति वर्ष वैशाख सुद ७ ( सातम ) को लगता हैं | यहाँ पर विशाल हाट बाजार लगने से  मेले की शोभा दुगुनी कर देता हैं | मेले में आस-पास गाँवों के दूर - दूर से
हजारों की तादाद में भक्त- श्रद्धालुओं भाग लेते हैं |
महामाया बाणेश्वरी माता के बारे में जानकारी हेतुं श्री कुंदन सिंह जी देवड़ा का आभार 
जय बाणेश्वरी माता
जय सोनाणा खेतलाजी
 @[306557149512777:]
 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 

Friday 24 February 2017

श्री बाण माताजी श्लोक-16

नमोस्तुते महामाये चित्रदुर्ग वासिनी नमो नमः
नमोस्तुते जगदम्बिके बाणेश्वरी नमो नमः
सर्व सिद्धिदायिनी सर्व संकटनाशिनी
वांछितपुरणी नमो नमः
जगदम्बिके जगततारिणी जगतरक्षिके नमो नमः

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

Tuesday 21 February 2017

बाणासुर संहार का संपूर्ण व्रतांत दोहों में

बाणासुर संहार का संपूर्ण व्रतांत दोहों में....

द्वापरयुग रे माय, बाणासुर रागस भयों |
सोच तपस्या ताप, शिवजी रे सनमुख गयों ||
ध्यायों वो धूणी धणी, शिवजी प्रगट भया |
बोल्या मुख सु बोल, आज शिवजी प्रसन्न थया ||
माँगो मुख वर आज, जो मांगें वो देवसु |
आराधा री टेम, भेळो थारे रेवसुं ||
बोल्यों बाणासुर जाग, शिवजी म्हाने वर दिरावों |
मार सके न कोय, जग में अमर करावों ||
सुण सेवक म्हारी बात, आ हैं बात असम्भव |
इण संसारा आयने, मरणों हैं अटल थम्ब ||
तोहे वर में देवसुं, इच्छा पुरुला थारी |
इण धरती पर तुझ, मार सके केवल कन्या कुंवारी ||
वर दे भोलेनाथ, उठसु होया अलोप |
पापी अमरत्व समझ, कियो धरती पे कोप ||
साधू सन्त अर शूरमा, सब कोपण लागा |
देव डरे इक धाक, वे इंद्र लोक छोड़ भागा ||
छायों अंधियारों अजब, धरती डूबण लागि |
सूर्यवंशी क्षत्रियों रे, अब मन चिंता जागी ||
साधू-सन्त बुलाया, अब अब भेळा होया |
बाणासुर ने मारण खातिर, सब उपाय जोया ||
अटल बल अभिमानी रो, कुण कुंवारी हाथ गाले |
ज्यासु देव डरे इंदर धुजे, वो सर्प सु कम नही लागे ||
समझ न आई बात, क्षत्रिय एक सहारों पायों |
अम्ब भवानी जगदम्ब, कुलम्बा रो यज्ञ करायो ||
क्षत्री मिळ संसार रा, हवन माहि बैठा |
ध्यावे नित धणियाण, हठ पर होया ऐठा ||
आवों अम्बा आज, मैं बाळक थारा कहिजा |
बाणासुर अत्याचारी, दुःख सु मैं कळपिजा ||
माताय मनाई मैं सदा, संसार री तूँ जननी |
मैं कहिजा अंश थारा, तूँ सिर छतऱ धरणी ||
अब देवा थाने ओळबो, कईयाँ इति देर लगाई |
रोवे थारा बाळकां, किम आवाज नी सुणाई ||
सुण बाळो री करुण पुकार, अम्बा एड लगाई |
वा जगत जोगणी जगदम्बिका, यज्ञ कुंड प्रगटाई ||
आप लियो अवतार उमा, कन्या रे भेष में |
सुण सेवका पुकार, आई उणरे देश में ||
बोलो बाळक म्हारा, किम आवाज लगाई |
क्षत्री म्हारा लाल, इण रोवण ना सुहाई ||
धरती भार मैं सोपियों, थाने हैं मैं आय |
राजा-महाराजा बणाविया, लाल म्हारा कहाय ||
करुणा री हूँ सागर हूँ, सदा रहूँ सहाय |
वर माँगो जो देवसुं, सेवक मन म्हारे भाय ||
इतरों कहता शूरमा, मुखड़ो हैं खिलाय |
हे भवानी अम्बिका, मुक्ति बाणासुर सु दिलाय ||
इण पापी रो अंत करों, भूमि भार मिटाय |
सुर, संत सारा दुःखी, इण पापी रे आय ||
अम्बा मूळकी मावड़ी, रहो क्षत्रियों निश्चित |
इणने अब मैं मारस्यू, जासी भूमि भार मिट ||
इतरों कह उमा, कन्या रूप लीनो |
ब्राह्मण हो इक बांजियों, पालन-पोषण दीनों ||
ज्यूँ-ज्यूम दिन ढळता गया, राता बितण लागी |
अम्बा खेले आंगणे, शगति सुमत्त जागी ||
एक समय री वार्ता, सुणजो चित्त लगाय |
देवी होया अठार वर्ष, गाथा देवूं बतलाय ||
उमा अवतार ही अम्बिका, जग में ज्यारों चावों |
सुंदर मुख म्हारी मावड़ी रो, जग में छावों ||
एक दिन शिवजी आया, कहे सुणो देवी म्हारी बात |
आप अवत्र्या उमा अवतार, करस्या मैं विवाह थारे साथ ||
माता मन प्रसन्न थया, भरतार लेवण आयों |
आज्ञा सबा सु पायने, शिव-शक्ति ब्याव रचायों ||
मुहर्त ब्रह्मा जी देखने ने, बात बतळावण लागा |
सुणो शिवजी बात म्हारी, जोग जबर का जागा ||
शुभ नक्षत्र मायने, प्रभाता सु पेला |
शिव-शक्ति रो ब्याव रचाया, तोहिज सफल होवेला ||
इतरी सुणिया बात, मायड़ मंजूरी दिनी |
शिव-शक्ति रे ब्याव री, तैयारी अब कीनी ||
बिंद बणिया शिवजी, नांदिये चढ़ आया |
माता म्हारी अम्बिका रे, भरतार मन में भाया ||
नारद मन में सोचियों, ब्याव होवण लागा |
जो देवी नी चेतिया, जग जायेला अभागा ||
कुंकड बण करामत करि, बाराता बिच आय |
शिवजी अब हैं सोचियों, टेम चूकों जाय ||
शिवजी ले जान आपरी, पाछा कैलाश सिधाया |
माजी बांटा जोवता, शिवजी समय घणा लगाया ||
कोपी जग री जोगणी, वा प्रतिज्ञा एड़ी कीनी |
ब्रह्चारिणी रहूँ सदा, हाथ पाणी लिनी ||
देवी ले हिमाळया, तप करण लागा |
मुख मण्डल चमके जोर, ज्यूँ अम्बर री आभा ||
देवी रो सुण तेज, अधमी बाणासुर आयों |
जद देख्यों म्हारी मात ने, मन उणरो चकरायो ||
कह्यों बाणासुर सुण अम्बिका, ब्याव मा संग रचावो |
मैं स्वामी भू-लोक रो, पटराणी थाने बणावो ||
माजी कहे सुण मानवी, मैं हूँ ब्रह्मचारिणी |
नही करूँ किसी से ब्याव, आ प्रतिज्ञा हूँ तणी ||
मूरख बाणासुर मान्यो नही, करि अटल जिद्द |
देवी कहे जद परणस्यु, तूँ जीती जद द्वंद ||
राजी होय बाणासुर, देवी ने ललकारी |
जुध में हरा थने जोगमाया, पटराणी बनाऊँ म्हारी ||
माजी मन में सोचियों, मति मारी गई थारी |
टेम फोरो अब आवियों, संकट छायों भारी ||
फौजा सिणगारी शूरमे, आया जुध रे माय |
जाय ललकारी जुगत री, धणीयाणी धाय ||
मायड़ तो हाकल करि, सुणो आदेशों म्हारों |
रण चंडी रण आवजे, दुर्गा दैत्य संहारों ||
काळी खप्पर तूँ भरी, भैरव लाजे साथ |
खांडा खड़गावो खेत में, बाढ़ो इणरा माथ ||
जुध जोरको रण में भयो, फौजा भीड़गी सामी |
देवी तो सिंघड़े चढ्या, धर धूजण लागि ||
बाणासुर सामी आवियों, जाय बायण ललकारी |
ए कन्या तूँ युद्ध कर, हार होसी अब थारी ||
दोनु ही जुद्ध छेड़ीयो, रण भयंकर भारी |
तलवारा बिजळी टणके, माता धनुष-धारी ||
रण में देवी कोपिया, कियो बाणासुर संहार |
जय देवी जय देवी, भूमि तणो उतारियो भार ||
सुर-नर अर सन्त जन, फूल बरसावण लागा |
देवी आप देश पधारिया, भाग म्हारा जागा ||
पापी कपटी संहारियों, बाणासुर सो नाम |
तूँ बायण माँ कहावसी, कन्याकुमारी धाम ||
अलग-अलग समय रे मायने, देवी रूप अनेक धर्या |
भक्तों री भिड़ आय, बायण सेवका काम कर्या ||
माँ बायण री आराधना, देव असुर नर नारी |
जय जगदम्ब जय जग जननी, महिमा थारी भारी ||
माजी कह्यों मुख सूं, सुणो सेवका म्हारा |
जो नित नेम सु ध्यावसी, वे सब म्हाने प्यारा ||
आठम अर शुक्रवार ने, मैं लेस्यु नित धुप |
म्हारी सेवना नित करि, मेवाड़ी महाभूप ||
पैलो अवतरण ओ धर्यो, दूजो दुवाजुग माय |
पांडवो री आराधना, बणसू वरदायिनी माय ||
तीजो कळजुग रे मायने, गढ़ चित्तौड़ होसी धाम |
बण सिसोदिया री कुळ देवी, सारूँ सबरा काम ||
चार भुजाळी मैं हिज हूँ, हंसा री आरूढ़ |
सिंह भैंसों म्हारे सोवणो, चावों चारो खुट ||
चार भुजा धारण करि, हाथा धनुष-बाण |
जो कोई ध्यावे प्रेम सु, देवूं खुशियां खाण ||
अष्ट भुजा सिंघड़े चढू, भैंसे असवारी भुज बीस |
सेवक शरणे आविया,  नित नवावे सीस ||
एक अवतरण म्हारो और हैं, मार्या असुर हजार |
ब्रह्मा जी सु प्रगट भई, किया दैत्य संहार ||
इतरो कह अम्बिका, समदर जाय समाणी |
दक्षिण ज्यारों विराजणो, कान्या कुमारी केवाणी ||
इतरो कह्यों मातेशरी, जग सु होया अलोप |
दक्षिण जाय बिराजिया, दीनों खुटों रोप ||
दक्षिण कन्या कुमारी, गुजरात माताय ब्रह्माणी |
चित्तौड़ बायण केह रह्या, माता जग री धनियाणी ||
माँ बायण री महिमा रो, पायो कोनी पार |
नतमस्तक शरणे खड़ा, विनवो बारम्बार ||
अनु अरज आजै करि, सुण चित्तौड़ गढ़ राय |
चरणें राखों भक्ति आपो, विणती सुणो मम माय ||
हिये हमेशा रेवजो, अनु चरणा रो ध्यान धरे |
घट-घट अनु रे बिराजिया, देवी सबरो कल्याण करें ||
चित्तौड़गढ़ दुःख मेटणो, सदा ही बरसै सुख |
दिन उगता दर्शन करूँ, माँ बायण रो मुख ||

-------जय श्री बाण माताजी-------

विशेष नोट:- इन दोहों में किसी भी प्रकार की केकांट-चाँट न करें....
आज्ञा से :- श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर

श्री बायण माताजी मंदिर उजलिया

श्री ब्राह्मणी ( बाण, बायण ) माताजी मंदिर गुड़ा बालोतान

Sunday 12 February 2017

श्री बायण माताजी का श्रृंगार

श्री बायण माताजी श्रृंगार

दिव्य सिंहासन विराजित दिव्य मूर्ती बालिका |
दिव्य भूषण वसन सूंदर दिव्य ज्योति त्रिपालिका ||
दिव्य माणिक मुकुट जगमग दिव्य मणि ताटका हैं |
दिव्य नैन विशाल झलमल दिव्य भृकुटि वक्र हैं ||१||

दिव्य लाल ललाट सोहै दिव्य मुक्ता नासिका |
दिव्य हार सो हार हिरदे दिव्य ज्योति प्रकाशिका ||
दिव्य अंगद बाहु मडित दिव्य ककण कर लसै |
दिव्य सूंदर अत्र मुक्ता दिव्य किंकिन कटि लसै ||२||

दिव्य पैंजिन पाय घुंघरू दिव्य नूपुर अति बने |
दिव्य रूप श्रृंगार नख शिख दिव्य भूषण हैं घने ||
दिव्य बहु पनि पानि कंदुक लिलहो उर छा रही |
इमि लसत दिव्य स्वरुप देवी बायण कौन पसारही ||३||

🙏 @[306557149512777:]🙏
🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

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