Tuesday 8 August 2017

श्री बाण माताजी श्लोक-24

नमात्यंह बाणमाता नमाम्यहम् सुरेश्वरि |
नमात्यंह महामाय नमाम्यंह बाणेश्वरी ||


🌷 श्री बाण भगवत्यै नमः 🌷

जागो जगदम्ब

जागिये जगदम्बा माय मुख देखूं थारो,
मुख देखूं थारो माँजी कटे संकट म्हारो |
जागिये जगदम्ब माय मुख देखूं थारो ||
झनन-झनन झालर बाजै घुरत हैं नगारा |
ताल तो मृदंग बाजे सेवग आया सारा ||
सूरज तो सतेज उग्यो भयो हैं उजारो |
सेवग आप सरण आया दया दात विचारो ||
अंतर तो अबीर चढ़े भोग लागे मेवा |
बिन्दका सतेज सोहे तेज अम्बा थारो ||
कर जोड़े ईश्वरदास ध्यावे खानाजाद थारो |
अब की वेर उबारो मात आवागमन टारो ||



देखो सूरज की किरणें बिखरने लगी, रंग भरने लगी...
जागो-जागो भवानी सुबह हो गयी...
सुप्रभात मैया 🌄🌄🌴🌿

🌷 श्री बाण भगवत्यै नमः 🌷

Thursday 29 June 2017

श्री बाण माताजी आरती



*★ आरती ★*

ॐ जय बाणेश्वरी माता, हाथ जोड़ हम तेरे द्वार खड़े |
धूप दीप भोग लेकर हम, माँ बाणेश्वरी की भेंट धरे ||
कुलदेवी गुहिल क्षत्रियन की, हो खुश हम पर कृपा करें |
माँ बाणेश्वरी को नमन हमारा, कष्ट हमारे मात दूर करें ||१||
तज पाटण आप मेवाड़ पधारी, धन्य हुए हम सब सूत तेरे |
कुल कल्याण करने को, माँ तुमने ही विविध रूप धरे ||
कृपा वृष्टि करो हम पर माँ, तव कृपा से वंश बेल फरे |
दोष न देख अपना लेना, अच्छे-बुरे पूत हम तव रे ||२||
बुद्धि विधाता तुम कुलमाता, हम सब का उद्धार करे |
तेरे चरणों का लिया आसरा, तेरी कृपा से सब काज सरे ||
बाँह पकड़कर आप उठाओं, हम तेरी शरण आन पड़े |
जब भीड़ पड़े भक्तों पर, तब मात निज हाथ माथ धरे ||३||
माँ बाणेश्वरी की आरती जो गावे, माता उसके घर भण्डार भरे |
दर्शन तांहि जो कोई आवे, माता उसकी मंशा पूर्ण करे ||
कुलदेवी को जो कोई ध्यावे, माँ उसके कुल में वृद्धि करे |
कलि में कष्ट मिटेंगे सारे, माँ की जो जय-जयकार करे ||४||
ॐ जय बाणेश्वरी माता, हाथ जोड़ हम तेरे द्वार खड़े |
धूप दीप भोग लेकर हम, माँ बाणेश्वरी की भेंट धरे ||

🚩 *चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय*
🚩 @[559359007529650:]

Wednesday 28 June 2017

श्री बाण माताजी चालीसा


◆ ॐ कुलमाताय नमः ◆
◆ ॐ श्री बाण माताय नमः ◆

👉 श्री बाण माताजी चालीस 👈
● दोहा :- 
श्री गुरु चरण नमन कर, लेखिनी निज कर धारी |
बायण मात गुण वरणो, जो दायक फल चारि ||
मंदमति मैं सुत तेरो, अपनाओ माँ मोहि |
सुख शान्ति देऊँ सदा, मैं वन्दन करूँ तोहि ||

★ चौपाई ★
सूर्य वंश क्षत्रिय जग जाना |
गुहिल खाँप तहँ मेरु समाना ||१||
भूप गुहदत्त भये विख्याता |
बाणेश्वरी ताही कुलमाता ||२||
आठवाँ वंशज रावल बप्पा |
मेवाड़ आन शासन थापा ||३||
ताके वंशज लक्ष्मण राणा |
ले लश्कर द्वारिका प्रस्थाना ||४||
पाटण नगर मग मँह आया |
तँह कुमारी सों ब्याह रचाया ||५||
बायण माँ मन्दिर तँह सुहाना |
जोड़ायत संग आया राणा ||६||
वर-वधु ने शीश झुकाया |
बायण माँ ने पुष्प बक्षाया ||७||
सुखद नींद सोया था राणा |
सुखद सपना आया सुहाना ||८||
माता बायण ने फरमाया |
मेवाड़ धाम मो मन भाया ||९||
मोहि ले चलो अपने साथा |
अब पाटण मोहि न सुहाता ||१०||
कर नमन राणा बोला धीमा |
माँ! तेरी पूजा कठिन कामा ||११||
कर न सकूँ मैं पूना तोरी |
यही दुविधा हैं मात मोरी ||१२||
स्वीकार हैं पूजा साधारण |
मेवाड़ मोहि ले चल लक्ष्मण ||१३||
जब जाग्रत भया लक्ष्मण राणा |
निज राणी सों सपन बखाणा ||१४||
बनकर बालिका मात आयी |
मात बाणेश्वरी झलक दिखायी ||१५||
अब मेवाड़ पधारो माता |
भूप ने कहाँ हिया हुलसाता ||१६||
मात प्रतिमा ले भूप आया |
कर दरशण कुल जन हरषाया ||१७||
शिशोदा गाँव महल सुहाना |
तँह मन्दिर बनवाया राणा ||१८||
गढ़ चित्तौड़ महिमा भारी |
जिसकी छटा सबसे न्यारी ||१९||
लक्ष्मण पौत्र हमीर कहाया |
बायण मातहिं भक्त सवाया ||२०||
दुर्ग मँह मात मन्दिर सुहाना |
जिसे बनाया हम्मीर राणा ||२१||
दरशन तांहि लोग नित आवे |
चढ़ा प्रसाद भोग लगावे ||२२||
माँ! क्षत्रियों के कष्ट मिटाओ |
विपदा में भी आन बचाओ ||२३||
जिसके हिये में भली भावना |
उसकी पुरे मात कामना ||२४||
वर-वधु माँ को ढोक लगावे |
माँ! वह जोड़ी सुखी बनावे ||२५||
कर मुंडन शिशु शीश झुकावे |
माँ उसे सदा स्वस्थ बनावे ||२६||
शुद्ध भाव से जो गुण गावे |
दुःख दरिद्र पास नही आवे ||२७||
भोर भए जो पढ़े चालीसा |
उसके घर में रहे न कलेशा ||२८||
शत्रुंहि नाशो बायण माता |
तुम हो तीन लोक सुखदाता ||२९ ||
अमित अपार आपकी महिमा |
हो अनुभव जब आवे सीमा ||३०||
बायण मात नाम जो जापे |
तां सो भूत प्रेत सब कांपे ||३१||
कुलदेवी को कंठ में धारे |
बिगड़े काज सकल सुधारे ||३२||
जा पर कृपा मात की होई |
सकल पदार्थ करतल होई ||३३||
धन्य हुआ जो दर्शन पाया |
मंशा पूरी जिन शीश नवाया ||३४||
माँ की महिमा कही न जाई |
अंधा को सब कुछ दर्शाई ||३५||
निर्धन को धन देती माता |
पुत्र हीन सुंदर सुत पाता ||३६||
तिथि अष्टम चौदस शुक्ल पक्षा |
अवस उपासना करें मात समक्षा ||३७||
जय हो तेरी बायण माता |
पूजा अर्चन मुझे न आता ||३८||
भूल-चूक क्षमा करना माता |
माँ-बेटे का अटूट नाता ||३९||
माँ की चरण शरण सुखदायी |
बड़भागी जन दर्शन पायी ||४०||

★ || दोहा || ★
सम्बत दो हजार सत्तर, नव रात्रि मधुमास |
बायण मात चालीसा, रचा 'अल्पज्ञ' तव दास ||
भूल-चूक कर माफ़, भाव सुमन लें मात |
पूत-कपूत हो जात हैं, मात न होत कुमात ||

🚩 @[306557149512777:]
🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

Wednesday 14 June 2017

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमे धारण किए हुए आयुध

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमें धारण किए हुए आयुध :- 


सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं, इनकी महिमा अजब निराली हैं। मातेश्वरी के भक्त आप और हम महीने में एक बार या साल में दो बार मातेश्वरी के दर्शन हेतु जाते ही हैं, माजी के दर्शन कर मन को आनन्द मिलता हैं। चित्तौड़गढ़ में भगवती स्वयं साक्षात् विराजमान हैं, किसी भी देवता या देवी की महिमा उनकी भुजाएँ तथा उनमे धारण किए हुए आयुधों से जानी जा सकती हैं। चित्तौड़गढ़ में विराजमान बाणमाता ने चार भुजाएँ धारण कर, मातेश्वरी कमलासन पर विराजमान हैं। ऐसे तो लोगो को माताजी के बारें में केवल इतनी ही जानकारी हैं कि माताजी ने हाथों में धनुष-बाण धारण किए हुए हैं इसके अलावा कोई जानकारी नही, सही हैं जानकारी भी कैसे होगी? माताजी के इतिहास के बारें में तथा उनकी महिमा के बारें में कही पर भी कोई स्पष्ट जानकारी नही मिलती, आइये आज हम आपको इनके आयुधों के बारें में बताते हैं।


सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी का पाट स्थान चित्तौड़गढ़ में हैं,  मातेश्वरी कमलासन पर विराजित हैं, बाण माता चतुर्भुजा रूप हैं दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं जिनमे क्रमशः अंकुश तथा पाश हैं, दो हाथों में धनुष एवं बाण धारण किए हुए हैं जो घुटनो पर टिके हुए हैं। माताजी का यह चतुर्भुजा रूप अत्यंत मनमोहक एवम सुन्दर हैं, बैठकर शांतिपूर्वक दर्शन करने पर मन को अत्यंत शान्ति व ऊर्जा प्राप्त होती हैं जैसे मातेश्वरी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर रही हैं।
श्री बाण माताजी की यह नवीन प्रतिमा महाराणा शम्भू सिंह जी द्वारा स्थापित की गयी थी, इसी नवीन प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बप्पा रावल द्वारा स्थापित अल्लाउद्दीन ख़िलजी द्वारा खण्डित प्रतिमा को देखने पर भी यही प्रतीत होता हैं कि उस प्रतिमा ने भी समान आयुध तथा चार भुजाएँ धारण किए हुए हैं। पुराणी प्रतिमा नवीन प्रतिमा के पीछे होने के कारण उसे स्पष्ठ देखना मुश्किल हैं लेकिन ध्यान से देखने पर मातेश्वरी के मुख तथा एक हस्त के दर्शन होते हैं जिसमे अंकुश धारण हैं तथा खंडित हैं।
माताजी के आयुधों में पाश इच्छाशक्ति का प्रतिक हैं जैसे मनुष्य पाश में उलझ कर फसता ही चला जाता हैं वैसे ही इच्छाशक्ति के फंदे में पड़ कर वह उलझता जाता हैं और उसका संसार बढ़ता हैं ज्ञान तथा नियंत्रण का प्रतिक अंकुश हैं जो अविद्या अथवा भ्रम की ओर बढ़ते हुए मन मतंग को सचेत कर नियंत्रण करता हैं जिसे स्वयं गौरी नंदन गणेश भी धारण करते हैं, धनुष और बाण क्रियाशक्ति के नमूने हैं।



" इच्छाशक्तिमयं पाशं अंकुशं ज्ञानरूपिणम् |
क्रिया शक्तिमये बाणधनुषी दधदुज्जवलम् || "


दुर्गाशप्तशति में मातेश्वरी के कई रूपों का वर्णन किया गया हैं, श्री देव्यथर्वशीर्षम् में भगवती के बारें में कहाँ गया हैं:-




" एषाऽऽत्मशक्ति एषा विश्वमोहिनी |
पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा | एषां श्री महाविद्या | य एवं वेद स शोकं तरति ||१५||


ये परमात्मा की शक्ति हैं, ये विश्वमोहिनी हैं, पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करने वाली हैं। ये श्री महाविद्या हैं, जो ऐसा जानता हैं वह शोकको पार कर जाता हैं।

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

तूँ ब्रह्माणी तूँ धनियाणी

जय भवानी बाणमाता, तू ही चित्तौड़गढ़ धणियाणी |
तूँ ही बायण तूँ ब्रह्माणी, तूँ ही सेवक सहाय सर्वाणि ||
तूँ ही ब्रह्मा शिव विष्णु हैं, जग जिव जुगत तू ही उपजाणि |
काळा-गोरा लांगड़ आगे, तूँ ही डमडमाट कर डमकाणी ||
बाणासुर री बायाँ भांजी, चमचमाट कर चमकाणी |
सिंह सवारी हंसला री हाकणार, दानव दल पर मलफाणी ||
लहू लाल रागस भर खप्पर, तू गट गटाक कर गटकाणी |
लक्ष्मण सिंह जी ने वचन दीनो, बणगी माँ तूँ ब्रह्माणी ||
हँसले चढ़ बायण तूँ आज्यै, संग सातू बेहना लाणी |
अनु आराधा आप पधारी, जय जय मात ब्रमांड रचाणि ||
भव सागर भयहीन करि, इण सागर तूँ तिरवाणी |
किरपा कर महेंद्र पर माड़ी, भगता ने भक्ति बगसाणी ||

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय


Thursday 8 June 2017

श्री बाण माताजी मन्दिर कुम्भलगढ़

श्री बाण माताजी मन्दिर कुम्भलगढ़ ( दुर्ग )


सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी श्री बाणमाता जी का यह मन्दिर महाराणा कुम्भकरण सिंह ( राणा कुम्भा ) ने 14 वीं सदी में कुम्भलगढ़ दुर्ग के निर्माण के समय बनाया था,  मातेश्वरी का यह मन्दिर कुम्भलगढ़ दुर्ग में ही विद्यमान हैं।
राणा कुम्भा ने दुर्ग की रक्षा का भार भगवती को सौपा था, जिस अजेय गढ़ की रक्षा अपने पाट स्थान की भाँती आज तक बाणमाता करती आ रही।


कुम्भलगढ़ किले में बैठी, जग री पालनहार |
कुम्भकरण सिंह सोपियो, किले वाळो भार ||
माताजी मेवाड़ रा, आप हो रण री देवी |
विपदा में हैं सुमरिया, माँ सहाय करो सेवी ||
आजै सदा उतावळी, भीड़ मतवाळी भड़ |
कुंभों केवे मावड़ी, दरशन दो सिंह चढ़ ||


🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

श्री बाण माताजी दोहा ०७

⚜ *दोहा :-*
कर (पाद) कमल-नयणी, कमलासन सुर जननी |
माया मया माँ ब्राह्मणी, देवी विमल वर सयणी ||

⚜ *अनुवाद :-*
कमल पुष्प के समान सुंदर सुकोमल हाथ, पाँव और नेत्रो वाली, कमल पद पर आरूढ़, देवताओं को जन्म देने वाली, हे ब्रह्मा की अलौकिक शक्ति ब्राह्मी! कृपा करके हमको मंगलमय पवित्र वर ( आशीर्वाद ) दो ।

🚩 *चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय*


Tuesday 6 June 2017

श्री ब्रह्माणी माता गायत्री मंत्र

श्री ब्रह्माणी माता गायत्री मंत्र




ओम् ब्रह्मण्ये विद्मिहे महाशक्त्ये धीमहि |
तन्नो: देवी प्रचोदयात ||

🔱 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

Monday 22 May 2017

श्री बाण माताजी को तिलक किसका लगाए?

श्री बाण माताजी के तिलक किसका लगाए?




अक्सर मैंने कई लोगो को श्री बाण माताजी के कुमकुम या केशर का तिलक लगाते हुए देखा हैं, पूर्ण जानकारी के अभाव में ही यह सब हो रहा हैं।
सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी को चन्दन का तिलक लगाने का विधान हैं, माताजी को चन्दन अर्पण करने का भाव यह हैं कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करें।



पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः|
 सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः||
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका |
 द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम् ||

चंदन हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, सिंधु नदी के तट का, चिंटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का चंदन ही उत्तम चंदन है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी से बना हो तो उत्तम होता हैं।
लेकिन बाणमाता को प्रसन्न करने हेतु उन्हें केवल चन्दन का ही तिलक लगाए। किसी की बातो में न आए एवम् यह अमूल्य जानकारी सभी भक्तों तक पहुँचाने में हमारा योगदान करें शेयर करें!

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

Wednesday 17 May 2017

श्री बाण माताजी मन्दिर चित्तौड़गढ़ के भेरू जी

श्री बाण माताजी के द्वारपाल व लाडले बेटे श्री खेतलाजी महाराज


सारंगवास ( नविधाम ) में विराजमान श्री सोनाणा खेतलाजी



श्री बाण माताजी मन्दिर के पूर्व दिशा के मुख्य द्वार पर बटुक भैरव विराजमान हैं मुख पर बालभाव चारभुजा धारण किए खड्ग, त्रिशूल और दंड धारण किए हुए श्वान असवारी हैं। इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
माँ भगवती के सिपाहसलार भैरव ही हैं। शिव का अवतार होने के कारण मां दुर्गा के अत्यंत प्रिय, आदि शक्ति महादेवी दुर्गा, चंडिका, काली गढ़देवी, त्रिपुर सुंदरी, ब्रह्माणी व अम्बा का मंदिर जहां भी होगा वहीं भैरव भी उन्हीं के साथ होते हैं। मान्यता है कि मां की पूजा-अर्चना के उपरांत अगर भैरव की पूजा न की जाए तो मां से भी ये नाराज हो जाते हैं कि आपने अपने भक्त को मेरे बारे में क्यों नहीं बतलाया। जब आदि शक्ति को शिव ने शिव शक्ति से समाहित किया तो उन्होंने ही भैरव को मां के साथ रहने का आदेश दिया इसीलिए  भैरव सदा मां के ही साथ रहते हैं। इनके दर्शन करने से ही मां की पूजा-अर्चना सफल मानी जाती है।
इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है।  रक्तप्रिय दुष्टों का नाश करने के लिए ये युद्धभूमि में सदा उपस्थित रहते हैं। इनको दूध या हलवा अत्यंत प्रिय है इसीलिए भक्तजन इन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं।
इन्हें उग्र देवता माना जाता है मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं। जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हैं। इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं।
भगवान भोलेनाथ ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया है तथा काल भैरव जी अदृश्य रूप में ही पृथ्वी पर काशी नगरी में निवास करते हैं।


बाणमाता मन्दिर में विराजमान भेरू जी 


आप चित्तौड़गढ़ मातेश्वरी श्री बाण माताजी के दर्शनार्थ जब भी पधारे तो खेतलाजी के दर्शन अवश्य पधारे एवम् माजी के जब नारियल/प्रसाद चढ़ाएँ तो एक नारियल/प्रसाद खेतलाजी को भी जरूर चढ़ाए। अगर सुविधा हो तो माँ के दर्शन के पश्चात श्री सोनाणा खेतलाजी ( सारंगवास ) के दर्शनार्थ अवश्य जाना चाहिए।
भेरूजी को तेल-सिंदूर एवम् माळीपना/वागा का श्रृंगार होता है, भेरूजी की राजस्थान में सबसे बड़ी गादी मण्डोर ( जोधपुर ) में हैं उसके पश्चात सोनाणा ( देसूरी ) में हैं।




 पावा घमके घुँघरा, पलके तेल शरीर |
दुःखिया ने सुखिया करें, रंग हो भैरव वीर ||
सोनाणा माहि बिराजिया, मात ब्राह्मणी रा लाल |
भिड़ भगत रे आवजो, रक्षा राखो रखवाल || 

श्री बाण माताजी दोहा-०६

दोहा :-

नमो देवी बाणेशरी सुरभि श्री चित्रकूट राय |
बाणमाता जगतां मातर्षर्मरक्षा परायणे ||



अनुवाद :-

हे देवी! हे बाणेश्वरी माँ! हे सुरभि! हे चित्तौड़गढ़ दुर्ग की स्वामिनी! हे जगत की माता! हे धर्मरक्षा करने वाली बाणमाता हम तुझे नमस्कार करते हैं।

श्री बाण माताजी का प्राचीन कुण्ड

श्री बाण माताजी की बावड़ी....



बावड़ी का निर्माण 7 वीं सदी में बप्पा रावल द्वारा कराया गया था, जब बप्पा रावल को बाणमाता ने स्वप्न में दर्शन देकर बाण फैकने हेतुं आदेश दिया था, वह बाण यही पर आकर गिरा था।
बाण गिरने से इस जगह पर छेद हो गया था एवम् जलधारा प्रवाहित हो चुकी थी, चित्तौड़ विजय के बाद बप्पा ने इस बावड़ी का निर्माण कराया एवम् बाणमाता की पूजा की इस बावड़ी के ठीक सामने भगवती बाण माता का मन्दिर बनाया गया, मान्यता हैं कि मन्दिर में भोग लगाने पर स्वत: ही इस बावड़ी में भोग लगता था। अब यह बावड़ी घरों के बनने पर मन्दिर से स्पष्ट नही दिखती हैं, बावड़ी में भगवान् शिव जी और हनुमान जी का मन्दिर बना हुआ हैं। शिवजी के लिंग के पास ही नन्दी विराजमान् हैं एवम् एक नन्दी मन्दिर के बाहर विराजमान हैं जो खण्डित हैं।
एक किवदन्ती यह भी हैं कि बाणमाता के निज मन्दिर के निचे से एक जलधारा प्रवाहित होती हैं जो सीधा बावड़ी में जाती हैं।
इस बावड़ी का पानी यहां के आस-पास के मन्दिर में सप्लाई होता है।बावड़ी की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी लेकिन चित्तौड़गढ़ बाण माता मन्दिर पुजारी जी के कहने पर अब इसकी सफाई का काम चल रहा हैं एवम् जल्द ही इस बावड़ी का शुद्ध जल मन्दिर के आस-पास के सभी घरों में सप्लाई किया जाएगा।

Tuesday 16 May 2017

श्री बाण माताजी स्तुति दोहा

स्तुति दोहा 






बायण बैठी गढ़ रे माय, धनुष-बाण धारिणी |
प्रतीत प्रित रीत जीत, विघ्नैन विदारिणी ||
मैं मन्द बूंदी मावड़ी, शगति तूँ सुधारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
देवी बड़ी दातार, दोष ने निवारिणी |
बायण ब्रह्मांडा बसै, खासजै उदारिणी ||
बप्पा आई बेल, काज उणरा तूँ सारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
सुर-असुर सेवी सदा, दैत्य कुळ खपाविणि |
कन्यारूप कुमारी, दक्षिण में विराजीणी ||
वर दीजै वरदान, विख्याता वरदायिनी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
यज्ञ कुण्ड प्रगट, बाणासुर दैत्य मारिणी |
घणी खम्मा कुलमात, चार भुजा धारिणी ||
सदा ने संता रामनि, हिंडोल तूँ हजारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

Monday 8 May 2017

इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का इतिहास

महाराणाओं की इष्टदेवी अन्नपूर्णा माता :- 




सामन्य अर्थों में कुलदेवी और इष्टदेवी की पूजा अर्चना अलग-अलग रूपों में की जाती हैं। हमारा समाज परम्परावादी हैं, कुल परम्परा को प्रायः समाज के हर वर्ग का हर परिवार मानता हैं, मानता ही नही वरन् परम्परा पर आचरण भी करता हैं। इसीलिए कुलदेवी और इष्टदेवी प्रायः वही होती हैं जिनकी आराधना कुल परम्परा से चलती आ रही हैं, परंतु कभी-कभी ये भिन्न हो जाती हैं, जो अपवाद स्वरुप मानी जाती हैं। जैसे राठौड़ो की परम्परागत कुलदेवी नागणेच्या माताजी हैं परंतु इष्टदेवी के रूप में चामुंडा माताजी को माना जाता हैं, इस बारे में विद्वानों ने कई प्रकार के विश्लेषण किये हैं।
वस्तुतः ये हैं तो देवी के अलग-अलग रूप परंतु परिवार के किसी सदस्य को परिस्थितिवश या घटनावश देवी के कोई रूप विशेस की आराधना करके आशीर्वाद या फल प्राप्ति अथवा कोई विशेष सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं तो देवी के उस रूप के प्रति उसकी विशेष श्रद्धा तथा विशेष विश्वास में दृढ़ता आ जाती हैं और वह उसकी इष्टदेवी हो जाती हैं।
इष्ट तथा अभीष्ट का अर्थ हैं चाहा हुआ मिलना, अतः मनवांछित फल की प्राप्ति जिस देवी की आराधना से होती हैं वही इष्ट देवी हो जाती है।
महाराणाओं की इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का मन्दिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी  मंदिर के समीप बना हुआ हैं। यह मन्दिर महाराणा हमीर सिंह ने 13 वीं शताब्दी में बनवाया था । कमलदल पर विराजित महालक्ष्मी 'गजलक्ष्मी' की यह सुन्दर एवम् विशाल प्रतिमा गुप्तकालिनी स्थापत्य कला की सुंदर धरोहर विरासत धार्मिक आस्था एवम् मान्यता का अनुपम व दर्शनीय स्थल हैं। पूर्वकाल में में इस मन्दिर का नाम महालक्ष्मी मन्दिर था, महाराणा हमीर ने 1326 ईस्वी में इसका जीर्णोद्धार करवाकर अपनी इष्टदेवी के नाम से इसका नामकरण अन्नपूर्णा किया।
राणा हमीरसिंह की अल्लाउद्दीन ख़िलजी के विरुद्ध युद्ध में सहायता करने पर इस मन्दिर का निर्माण करवाया एवम् अपनी इष्टदेवी के रूप में भगवती की आराधना पूजा अर्चना की।



"हमीर सिंह री वार भवानी, आकर हुई तैयार।
मुगलों की सेना को मैया, तूने दिलाई हार ||"


मातेश्वरी कमल के पुष्प पर विराजमान हैं, कमल सरोवर में हैं, चार हाथी हैं जो घड़ो में जल भर का देवी स्नान करवा रहे हैं। दो गण निचे बैठे हैं, एक के पास अक्षय निधि पात्र हैं जो भरा हुआ हैं, दूसरे गण द्वारा निधि उड़ेली जा रही हैं। माताजी के दो हाथ हैं, एक में कमल पुष्प हैं दूसरे में अक्षय निधि, माताजी अन्न-धन्न व् भण्डार भरने वाली महालक्ष्मी स्वरूपा हैं।


जय माँ बायण
जय माँ अन्नपूर्णा

Friday 5 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०५

दोहा :- 

सु प्रसन्न मात बाणेशरी, अविरल आपो उगत्ति |

मया करो महामाय, सानिध करों सगत्ति ||




अनुवाद :- हे माँ बाणेश्वरी! प्रसन्न होकर मुझको भाव व्यक्त करने अथवा चमत्कार पूर्ण अभिव्यक्ति की अटूट शक्ति प्रदान करो, हे महामाय! हे दुर्गा! मुझ पर कृपा करो, मेरी सहायता के लिए सदैव मेरा साथ दो।

🚩  || चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय || 🚩



Wednesday 3 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०४

दोहा :- 

कमलाकरि चढ़ती कला, बायण दो मुझ रिद्ध |

आपो वर मो ईश्वरी, सगती सिद्ध वसु वृद्ध ||


🌹 अनुवाद :-  हे लक्ष्मी! हे गौरी! हे बाणमाता! मुझको धन और ऐश्वर्य दो, हे ईश्वरी! मुझको शक्ति, सिद्धि, धन और उन्नति का वर प्रदान करो|





Monday 1 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०३

दोहा :- 

सिरि सुर राय सुरिंदा, चतुरंगी चारु गुण चंदा |
बाणासुर संहारिणी, आई वर देऊ वर मुदा ||




अनुवाद :- हे देवी दुर्गा! हे पार्वती! हे तीक्ष्ण बुद्धि सम्पन्न स्वरूपवाली, चंद्रमा के समान उज्ज्वल गुणों वाली, बाणासुर को मारने वाली, हे बाण माता! प्रसन्न होकर मुझको वर दो।

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩


Sunday 30 April 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०२

दोहा :- 

इच्छित पूरण अंबिका, देवी तूँ दातार |
त्राता दाता मात तुहिं, बायण तूँ किरतार ||



अनुवाद :- हे कामनाओं की पूर्ती करने वाली माँ अंबिका! हे देवी! आप उदार हृदय से वरदान देने वाली माँ हो! आप ही रक्षक और दाता हो, हे माँ बाणेश्वरी! आप संसार की रचियता एवम् विघातृ शक्ति हो। 

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩


श्री बाण माताजी दोहा ०१

दोहा :-

बायण माता बालिका, बांह धरे बोलाय |
आई अंगज आपरो, धरि गोदे धवराय ||


अनुवाद :- हे बालिका रूप बायण माता! आप मेरी रक्षक हैं, मुझको बुलाकर अपने अंक में लेलो। हे माँ! मैं आपका ही पुत्र हूँ, मुझको गोद में लेकर पय:पान ( स्तनपान ) से तृप्त करें।

🚩 *चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय* 🚩


Saturday 29 April 2017

श्री बाण माताजी स्तुति

श्री बाण माताजी स्तुति

लावन्याम्बुधिसम्भवे दुवदनां, विद्याधरी वन्दिताम् |
भाले चंदनमण्डिताम् श्रुतियुगे गांगेयमुक्तांविताम् ||
नासामोक्तिकशोभितां हैंमी दधानां पटीम् |
रत्नशोभितकंचुकीमनुपमाम् , श्रीबाणेश्वरीश्रेयः ||


 *अनुवाद* :-  सौंदर्य समुन्द्र से उत्पन्न चंद्रमा की तरह मुखवाली, विद्याधरों से नमस्कृत, चंदन से अर्जित ललाट से शोभित, अपने दोनों कानों में मोतियों की लड़ियाँ धारण किए हुए, नाक के अग्रभाग में मोती की लटकन से युक्त, सुवर्णमय वस्त्रों से अलंकृत रत्नमय कंचुकी ( कांचळी ) को धारण किए हुए अनुपम रूपवाली देवी बाणेश्वरी के आश्रय का मैं सदा प्रार्थी हूँ।

चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

Wednesday 12 April 2017

श्री बाण माताजी मंदिर घाणेराव

श्री बाण माताजी मंदिर घाणेराव

" बाण तूँ ही ब्राह्मणी, बायण सूं विख्यात |
सुर सन्त सुमरे सदा, सिसोदिया कुलमात ||

Tuesday 11 April 2017

चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी प्रथम सेवा कार्यक्रम

*चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी प्रथम सेवा कार्यक्रम* मातेश्वरी और सोनाणा खेतलाजी की कृपा से निर्विघ्न सम्पन्न हुआ, इसके लिए हम माँ बायण माता, सोनाणा खेतलाजी, अन्नपूर्णा माताजी एवम बाबा रामदेव जी के आभारी हैं।
इस प्रथम सेवा कार्यक्रम ने सभी दर्शनार्थियों का मनमोह लिया...
कार्यक्रम में हमारा मार्गदर्शन करने में माताजी अनुराधा जी गहलोत, सरवानिया ठाकुर साहब राजेंद्र सिंह जी राणावत, ठकुरानी साहिबा, श्रीपाल सिंह जी शक्तावत एवम सोहनलाल जी पीपाड़ा का पूर्ण सहयोग रहा।
कार्यक्रम जिनकी वजह से सफलता की चोटी पर पहुँचा उनमे माजी और खेतलाजी के बाद सर्व प्रथम सम्पूर्ण योगदान गोविन्द सिंह जी गहलोत एवम भवानी सिंह जी का रहा, आपका आभार। हिमांशु जी गहलोत एवम हड़मत जी माली का भी खूब-खूब आभार जो रात-दिन हमारे साथ रह कर सेवा की।
कार्यक्रताओं में मुख्य नागेंद्र सिंह जी सिसोदिया, राजेंद्र जी सिसोदिया, श्याम सिंह जी सिसोदिया, दशरथ सिंह जी सिसोदिया, गणेश जी मोरखा, सवाई सिंह जी राठौर और पुरण जी लोहार का खूब-खूब आभार जो इस कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान दिया।
प्रथम सेवा कार्यक्रम की पूर्ण सफलता के बाद अब जल्द ही श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल द्वारा *चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी द्वितीय सेवा कार्यक्रम* की शुरुआत की जायेगी।
प्रथम सेवा कार्यक्रम में भक्तों की सेवा के पश्चात् मातेश्वरी एवं सोनाणा खेतलाजी के विशेष श्रृंगार दर्शन का भी सभी कार्यक्रताओं को लाभ मिला, कार्यक्रम के अंतिम दिन भक्तों द्वारा मातेश्वरी के मंदिर शिखर पर ध्वजा चढ़ाई गयी।
श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेवा कार्यक्रम के अंतिम चरण में मुख्य मातृभक्तों का सम्मान किया गया।
इस कार्यक्रम में जिन-जिन भक्तों ने किसी भी रूप में भाग लिया हो तन-मन-धन से उन सभी भक्तों का हार्दिक आभार एवम अभिनन्दन, हमेशा हमारा सहयोग करते रहे एवम मातेश्वरी की ध्वजा को सम्पूर्ण भारत में लहराने में सहयोग करते रहे ।
जय श्री बाण माताजी...

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩
👉 विशेष नोट:- जो भक्त श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ना चाहते हैं वे संपर्क करें 8107023716

🚩 श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर - राज.

Featured post

कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

सोनाणा खेतलाजी का सक्षिप्त इतिहास- भक्तों चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि हैं वैसे तो पुरे भारत वर्ष में आज से नवरात्रि शुरू होंगे लेकिन ...