Wednesday 14 June 2017

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमे धारण किए हुए आयुध

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमें धारण किए हुए आयुध :- 


सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं, इनकी महिमा अजब निराली हैं। मातेश्वरी के भक्त आप और हम महीने में एक बार या साल में दो बार मातेश्वरी के दर्शन हेतु जाते ही हैं, माजी के दर्शन कर मन को आनन्द मिलता हैं। चित्तौड़गढ़ में भगवती स्वयं साक्षात् विराजमान हैं, किसी भी देवता या देवी की महिमा उनकी भुजाएँ तथा उनमे धारण किए हुए आयुधों से जानी जा सकती हैं। चित्तौड़गढ़ में विराजमान बाणमाता ने चार भुजाएँ धारण कर, मातेश्वरी कमलासन पर विराजमान हैं। ऐसे तो लोगो को माताजी के बारें में केवल इतनी ही जानकारी हैं कि माताजी ने हाथों में धनुष-बाण धारण किए हुए हैं इसके अलावा कोई जानकारी नही, सही हैं जानकारी भी कैसे होगी? माताजी के इतिहास के बारें में तथा उनकी महिमा के बारें में कही पर भी कोई स्पष्ट जानकारी नही मिलती, आइये आज हम आपको इनके आयुधों के बारें में बताते हैं।


सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी का पाट स्थान चित्तौड़गढ़ में हैं,  मातेश्वरी कमलासन पर विराजित हैं, बाण माता चतुर्भुजा रूप हैं दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं जिनमे क्रमशः अंकुश तथा पाश हैं, दो हाथों में धनुष एवं बाण धारण किए हुए हैं जो घुटनो पर टिके हुए हैं। माताजी का यह चतुर्भुजा रूप अत्यंत मनमोहक एवम सुन्दर हैं, बैठकर शांतिपूर्वक दर्शन करने पर मन को अत्यंत शान्ति व ऊर्जा प्राप्त होती हैं जैसे मातेश्वरी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर रही हैं।
श्री बाण माताजी की यह नवीन प्रतिमा महाराणा शम्भू सिंह जी द्वारा स्थापित की गयी थी, इसी नवीन प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बप्पा रावल द्वारा स्थापित अल्लाउद्दीन ख़िलजी द्वारा खण्डित प्रतिमा को देखने पर भी यही प्रतीत होता हैं कि उस प्रतिमा ने भी समान आयुध तथा चार भुजाएँ धारण किए हुए हैं। पुराणी प्रतिमा नवीन प्रतिमा के पीछे होने के कारण उसे स्पष्ठ देखना मुश्किल हैं लेकिन ध्यान से देखने पर मातेश्वरी के मुख तथा एक हस्त के दर्शन होते हैं जिसमे अंकुश धारण हैं तथा खंडित हैं।
माताजी के आयुधों में पाश इच्छाशक्ति का प्रतिक हैं जैसे मनुष्य पाश में उलझ कर फसता ही चला जाता हैं वैसे ही इच्छाशक्ति के फंदे में पड़ कर वह उलझता जाता हैं और उसका संसार बढ़ता हैं ज्ञान तथा नियंत्रण का प्रतिक अंकुश हैं जो अविद्या अथवा भ्रम की ओर बढ़ते हुए मन मतंग को सचेत कर नियंत्रण करता हैं जिसे स्वयं गौरी नंदन गणेश भी धारण करते हैं, धनुष और बाण क्रियाशक्ति के नमूने हैं।



" इच्छाशक्तिमयं पाशं अंकुशं ज्ञानरूपिणम् |
क्रिया शक्तिमये बाणधनुषी दधदुज्जवलम् || "


दुर्गाशप्तशति में मातेश्वरी के कई रूपों का वर्णन किया गया हैं, श्री देव्यथर्वशीर्षम् में भगवती के बारें में कहाँ गया हैं:-




" एषाऽऽत्मशक्ति एषा विश्वमोहिनी |
पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा | एषां श्री महाविद्या | य एवं वेद स शोकं तरति ||१५||


ये परमात्मा की शक्ति हैं, ये विश्वमोहिनी हैं, पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करने वाली हैं। ये श्री महाविद्या हैं, जो ऐसा जानता हैं वह शोकको पार कर जाता हैं।

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

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