Monday 26 September 2016

श्री बाण माताजी मंदिर कुंठवा

श्री बायण माताजी मंदिर कुंठवा ( नाथद्वारा , राजस्थान )

मंदिर थारे मैं आयों ,माँगण भक्ति दान ।
सेवा चरणा री सौप दो ,मांगू ओ वरदान ।।

Shree Ban Mataji Bhakt Mandal Jodhpur
( +918107023716 )

Sunday 25 September 2016

श्री बाण माताजी की अलग-अलग असवारी देख न होवे भ्रमित

श्री बाण माताजी की असवारी हंस , सिंह , घोड़ा , भैंसा और हाथी
सिसोदिया गहलोत वंश की कुलस्वामिनी चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी की महिमा ही निराली हैं , इनकी महिमा का वर्णन करने के लिए लेखनी की स्याही कम पड़ जाती हैं । दुर्गा सप्तशती में माता लक्ष्मी , माता , सरस्वती और माता महाकाली के बराबर माता ब्रह्माणी को माना गया हैं , माता पार्वती का ही स्वरूप होने के बावजूद भी बाण माता पूर्ण सात्विक व् पवित्र देवी हैं ।
इनके चमत्कारों व् भक्तों की अथाह भक्ति व् मात्र प्रेम के कारण मैया के संपूर्ण भारत से दर्शन हेतु भक्त  चित्तौड़ आते हैं ।
इन्हें बाण माता , बायण माता , ब्राह्मणी माता , बाणेश्वरी माता , वरदायिनी माता और कन्याकुमारी माताजी के नाम से भक्त पुकारते हैं ।
जैसे इनके भिन्न-भिन्न नाम हैं वैसे ही इन्होंने भिन्न-भिन्न असवारी धारण की हैं , जब अलग-अलग मंदिरों में भक्त बाण माता की अलग-अलग असवारी को देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं और उनके मन में शंका उत्तपन्न हो जाती हैं कि यह बाण माता हैं या नही?
मित्रों श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर ने हमेशा आपको श्री बाण माताजी के बारे में माजी के शुभाशीष से सही एवं स्पष्ट जानकारी दी हैं और हमेशा देते आएंगे ।
चित्तौड़गढ़ स्तिथ मंदिर में विराजमान श्री बाण माताजी और अधिकतर मंदिरों में तथा वेदों आदि में श्री बाण माताजी को हंस की असवारी बताई गयी हैं ।
हंस एक पक्षी है , भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक ( जल और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है , जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है। पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती  , गायत्री माता , बाण माताजी एवं मेहर माता का  वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे। यह पक्षी दांपत्य जीवन के लिए आदर्श है , इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती है। हिंदू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
कोई भी भक्त अनुमान नही लगा सकता कि एक देवी इतनी सवारी धारण कर सकती हैं!
चित्तौड़ गढ़ ( पाट स्थान ) ,  राजस्थान और गुजरात  के कई छोटे बड़े मंदिरों में श्री बाण माताजी की हंस ही असवारी हैं ।

अष्ट पहर चौसठ घड़ी ,में सिंवरूँ देवी तोय ।
हंस सवारी होय ने , बायण दर्शन दीजौ मोय ।।

घोड़े की असवारी :
घोड़े की असवारी वाला मुख्य मंदिर केलवाड़ा ( कुम्भलगढ़ ) का हैं जिसका निर्माण महाराणा हमीर सिंह ने कराया था , इसके अलावा प्रतापगढ़ में भी श्री बाणेश्वरी माँ का प्राचीन घोड़े की असवारी वाला मंदिर विद्यमान है।
पंचकुंडी ( राजस्थान ) और जंबूसर ( दधिमता ) , गुजरात स्थित मंदिर में श्री बाण माताजी ने षष्ट भुजा धारण कर घोड़े पर विराजमान हुए हैं । दौलपुरा ( प्रतापगढ़ ) स्थित मंदिर रविकुल भूषण एकलिंग दीवान श्री महाराणा महेंद्र सिंह जी के कर कमलों से इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुयी हैं इस मंदिर में श्री बाण माताजी ने घोड़े पर सवारी की हैं ।

हायल सुण हय असवार हुयी , जगदम्बिका स्वरुप ।
ब्रह्मा , विष्णु , महेश मनावे , मनावे माँ महाभूप ।।
षष्ट भुजाळी भगवती , आजै सदा सहाय ।
तुरंग तेज दौड़ावजे , सेवक संभळीयों न जाय ।।

भैंसे की असवारी वाले मंदिर : देचू स्थित 300 साल पूर्व निर्मित मंदिर में  श्री बाण माताजी भैंसे पर सवार होकर बिस भुजा धारण किए हुए हैं । देचू रामदेवरा जाते समय बिच रास्ते में आता हैं ।

भैंसों माँ रे सोवतों , सोवे सोळह शिणगार ।
देचू माहि आप बिराजो , गळ फुला रो हार ।।
आस काई उणरी करूँ , हैं जिणरै दो हाथ ।
मो लिनी शरण जिणरी , वा बीस भुजाळी मात।।

सिंह सवारी :
श्री बाण माताजी के सिंह सवारी वाले कई मंदिर आपको राजस्थान में देखने को मिलेंगे , राजसथान में स्थित आज से 1300 साल पूर्व का मंदिर सालोड़ी , 250 साल पूर्व निर्मित उजलिया मंदिर , सलूम्बर राजमहल , मालानी क्षेत्र में सड़ा आदि गांवों में स्थित मंदिरों में श्री बाण माताजी ने सिंह की सवारी धारण कर भक्तों का उद्धार किया ।
इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि युद्धों में राजा-महाराजाओं की सहायतार्थ हेतु मैया ने सिंह की सवारी की होगी ।

वनराज गाजै घणो , जद हुवे मात सवार ।
सुर संत अर शूरमा , करें  मात  जुवार ।।
चढ़े सिंघ विचरती , जपूं में आठों पहर ।
हे रणदेवी ब्राह्मणी , करजे मोपे महर ।।

हाथी की सवारी वाला मंदिर :
देव नगरी सिरोही को धरती पर वैसे तो श्री बाण माताजी के कई विशाल मंदिर बने हुए हैं लेकिन प्रकति की छटा में छुपा सिलोइया स्थित मंदिर की महिमा ही निराली हैं यहां पर मानो स्वयं इन्दर देव की अपार कृपा हो जिससे यह जगह हर समय हरीभरी रहती हैं ।
यहां पर चित्तौड़गढ़ राय ने हाथी पर असवारी कर मातेश्वरी का कृष्ण रंग भक्तों के मन भाता हैं व् भक्तों के कष्ट हरता हैं ।

मदकल पर मेवाड़ी माय , हुयी अरि ले असवार।
कष्ट निवारे ब्राह्मणी , म्हाने एक थारों आधार ।।

जिस प्रकार असुरों का विनाश करने हेतु माँ जगदम्बा ने अलग-अलग रूप धारण किए , उसी तरह चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी ने समय-समय में अपने भक्तों की सहायता एवं रक्षार्थ हेतुं अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर अपने भक्तों की रक्षा कर माँ की ममता का एक अनूठा उदाहरण दिया , चित्तौड़गढ़ राय का अपनों भक्तों के प्रति अथाह प्रेम एवं ममता हर देवी-देवता से कई गुना ज्यादा हैं ।
इनकी भिन्न-भिन्न असवारी देख कर आचर्यचकित न होवे  इसकी लीला केवल यही जानती हैं अगर आप हंस के सिवाय श्री बाण माताजी की घोड़ा , हाथी , सिंह और भैंसे की असवारी वाला मंदिर दिखे तो भ्रमित न होवे ।

हाथी बैठ हाजर खड़ी , घोटक पर माँ ध्यान धरे ।
कलकंठ पर कल्याण करें , भैंसा पर माँ भय हरे ।।

राजस्थान में ऐसे कई मंदिर हैं जिनकी जानकारी अभी तक लोगो को पता नही हैं , आप सभी पेज और ब्लॉग से जुड़े सभी भक्तों से निवेदन हैं कि आपके गाँव या आपकी जानकारी में श्री बाण/बायण/ब्राह्मणी/बाणेश्वरी माताजी का कोई भी मंदिर हो तो हमसे संपर्क करें और हमारे व्हाट्सएप्प पर भेजे ।
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श्री बाण माताजी मंदिर परिहारों की ढाणी

श्री बाण माताजी मंदिर परिहारों की ढाणी ( लुणावास खारा , जोधपुर )

मंदिर का निर्माण देचू से पलायन कर यहां ( लुणावास खारा ) में बसे आसावत राजपूतों ने कराया हैं ।
देचू मंदिर का इतिहास आप इस ब्लॉग पर देख सकते हैं ।

' सेव्य सदा सिसोदिया ,माहि बंधियों माण ।
धनुष-बाण धारण करी , बण तूँ माता बाण ।।
माँ जगदम्बा अवतरी , राखण सुरपत शान ।
होय आरूढा हंस पर , कर लीना धनुष-बाण ।।

श्री बाण माताजी मंदिर जंबूसर ( दधलिया )

श्री बाण माताजी मंदिर जंबूसर ( दधलिया ) , ( मोडासा , अरवल्ली , गुजरात )

मन्दिर प्रागण में विराजमान श्री बाण माताजी की सूंदर प्रतिमा केलवाड़ा , प्रतापगढ़ की तरह ही यहां पर भी मातेश्वरी घोड़े पर असवार हैं ।

' घोड़लों मोड़ दे बायण माँ थारा भक्तां की और...
टाबरिया बुलावे माजी आवों म्हारी और....

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Wednesday 21 September 2016

श्री बायण माताजी मंदिर चित्तौड़गढ़ ( पाट स्थान की महिमा )

परम सिद्ध मन्दिर जहाँ दुर्भाग्य की मार से तड़पते भक्त के सभी दुखों को भस्म करने के लिए चरम सत्ता ईश्वर साक्षात निवास करते है  ।

भक्त दुःख से छटपटायेगा, तो चित्तौड़ वाली माँ बेचैन हो उठेगी

ममता की सागर माँ दुर्गा जहाँ प्रत्यक्ष रूप से वास करती हैं उस पवित्र धाम का नाम है चित्तौड़ धाम ! पूरे भारत से देवी के भक्त यहाँ पर अपनी बिगड़ी बनाने के लिए हजारों की संख्या में रोज पहुचते हैं और नवरात्रि में तो पुरे दुर्ग का कोना कोना देवी के हजारों भक्तों की जयकारों से भरी गर्जना से उद्घोषित हो उठता है !
उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह
अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव, राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल ह्मवेल आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त इसका दुर्ग लगभग ३ मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसे इस किले में श्री बाण माताजी के दर्शन करने जाते हैं।
महावीर बप्पा रावल , रावल खुमाण , राणा लक्ष्मण सिंह , राणा हमीर सिंह और महाराणा प्रताप को वरदान देने वाली देवी का यह मंदिर बहुत जागृत और चमत्कारिक माना जाता है , कहते हैं आरती के समय इस मंदिर में यहां लगे त्रिशूलों अपने आप हिलने लगते है  ।
बाण माताजी का मतलब आज से 1300 साल पूर्व बप्पा रावल के बाण पर बैठ कर माताजी ने वर देकर बप्पा रावल को चित्तौड़ का राज दिया था , बाण माताजी के आदेशानुसार बाण फेका गया , बाण जहाँ गिरा वहां आज मंदिर बना हुआ हैं , बाण फेकने से बाण माताजी ( बाणेश्वरी माँ ) कहलाए । इन्हें बाण , बायण , ब्रह्माणी माताजी भी कहते हैं इस संदर्भ में एक दोहा प्रचलित हैं :-
बाण तूं ही ब्राह्मणी , बायण सु विख्यात ।
सुर संत सुमरे सदा , सिसोदिया कुलमात ।।

चित्तौड़गढ़ जंक्शन से करीब 2 मिल की दुरी पर त्रिकुट पहाड़ी पर बने दुर्ग में श्री बाण माताजी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही श्री बाण माताजी का बप्पा रावल द्वारा निर्मित मंदिर है |

बप्पा रावल ने माँ की भक्ति कर प्रसन्न किया था , प्रकट होकर माँ ने बप्पा रावल को आशीर्वाद दे व् हमेशा गुहिलोत वंश की रक्षा का वचन दिया था , मेवाड़ के राजा भले ही एकलिंग जी प्रभु हैं लेकिन किले की धनियाणी तो  बाण माताजी ही हैं आज भी यहां के स्थानीय लोग इन्हें ' चित्तौड़ री देवी या किले री देवी ' के नाम से जानते हैं ।
श्री बाण माताजी की सूंदर प्रतिमा चित्तौड़ दुर्ग में विराजमान हैं मावड़ी ने चार भुजा और हंस की असवारी धारण किए हुए हैं ।
बाणमाता पूर्ण सात्विक और पवित्र देवी हैं जो तामसिक और कामसिक सभी तत्वों से दूर हैं। माँ पार्वती जी का ही अवतार होने के बावजूद बाण माता अविवाहित देवी हैं। तथापरा-शक्ति देवी माँ दुर्गा का अंश एक योगिनी अवतारी देवी होने के बावजूत भी बायण माता तामसिक तत्वों से भी दूर हैं अर्थात इनके काली-चामुंडा माता की तरह बलिदान भी नहीं चढ़ता हैं ।
श्री बाण माताजी ने अलग अलग समय में अनेकों चमत्कार भक्तों को दिए हैं और आज चित्तौड़ में बैठी किले की धनियाणी के हजारों भक्त दूर-दूर से दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं , अपनी शरण में आये की मातेश्वरी हमेशा सहायता करती हैं कष्ट हरती हैं ।

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चित्तौड़ री देवी तेरी सदा ही जय

Monday 19 September 2016

नवरात्रि में कैसे करें श्री बाण माताजी को स्थापना

शक्ति के लिए श्री बाण माताजी आराधना की सुगमता का कारण मां की करुणा, दया, स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने बच्चे (भक्त) को किसी भी तरह से अक्षम या दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है। सिसोदिया गहलोत वंश की कुलस्वामिनी श्री बाण माताजी की इस शारदीय नवरात्रि में पूजा कर मनवांछित फल प्राप्त कर परिवार की खुशहाली के लिए श्री बाण माताजी से कामना करें ।
नवरात्र में श्री बाण माताजी की पूजा व् नवरात्र व्रत  की शुरूआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है। नवरात्र के नौ दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय माँ भगवती की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर बाण मैया को प्रसन्न करना चाहिए।
इस बार शारदीय नवरात्र 01 अक्टूबर 2016 से शुरु होंगे। नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 01 अक्टूबर को सुबह 06:17 मिनट से लेकर 07:29 तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ है। नवरात्र व्रत की शुरुआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है।
नवरात्र में  कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। नारदपुराण के अनुसार कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। साथ ही नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों व रंग का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। नवरात्र में "श्री दुर्गा सप्तशती" का पाठ करने का प्रयास करना चाहिए।

श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार नवरात्र पूजा  से जुड़ी कुछ विशेष बातें निम्न हैं:
* यदि श्रद्धालु नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सके तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा कर वह सभी फल प्राप्त कर सकता है।
* अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है। कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य है।
* नवरात्र व्रत देवी पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।

सिसोदिया गहलोत वंश के भक्तों के लिए आदिशक्ति बाण माताजी  की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। आश्विन शुक्लपक्ष प्रथमा को कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का प्रमुख त्यौहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है। नवरात्र में इनकी पूजा के विशेष फल बताए गए हैं।

कैसे करें श्री बाण माताजी और श्री सोनाणा खेतलाजी की इस नवरात्रि में पूजा :-

नवरात्र की पूजा नौ दिनों तक चलती हैं।  नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को कलश या घट की स्थापना की जाती है। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है। हिन्दू धर्म में हर पूजा से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है इसलिए नवरात्र की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में गणेश को स्थापित किया जाता है।

कलश स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं
· मिट्टी का पात्र और जौ
· शुद्ध साफ की हुई मिट्टी
· शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश
· मोली (लाल सूत्र)
· साबुत सुपारी
· कलश में रखने के लिए सिक्के
· अशोक या आम के 5 पत्ते
· कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
· साबुत चावल
· एक पानी वाला नारियल
· लाल कपड़ा या चुनरी
· फूल से बनी हुई माला

नवरात्र कलश स्थापना की विधि :
भविष्य पुराण के अनुसार कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लेना चाहिए। एक लकड़ी का फट्टा रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए। इस कपड़े पर थोड़ा- थोड़ा चावल रखना चाहिए। चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करना चाहिए। एक मिट्टी के पात्र (छोटा समतल गमला) में जौ बोना चाहिए। इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करना चाहिए। कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊं बनाना चाहिए।
कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए। कलश के मुख को ढक्कन से ढंक देना चाहिए। ढक्कन पर चावल भर देना चाहिए। एक नारियल ले उस पर चुनरी लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन पर रखते हुए सभी देवताओं का आवाहन करना चाहिए। लकड़ी के फट्टा पर श्री बाण माताजी और श्री सोनाणा खेतलाजी की तस्वीर को विराजमान करें और अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करनी चाहिए , दीपक बाण माताजी को घी का और खेतलाजी को तीली के तेल का दीपक करें । कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ाना चाहिए।

नवरात्र कलश स्थापना मुहूर्त :

नवरात्र के प्रथम दिन यानि 08 अप्रैल 2016 को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11:57 मिनट से लेकर 12:48 मिनट तक का है।
नोटः नवरात्र में देवी पूजा के लिए जो कलश स्थापित किया जाता है वह सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का ही होना चाहिए। लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर द्वारा आप सभी बाण मैया के लाड़ले भक्तों को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें , माँ जगदंबा सबके जीवन मे सुख, समृद्धि और शांति का वरदान दे।

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Saturday 17 September 2016

श्री बाण माताजी को न चढ़ाए बलि

श्री बाण माताजी को नही चढ़ाई जाती बलि

महा-मायादेवी माँ दुर्गा की असंख्य योगिनियाँ हैं और सबकी भिन्न भिन्न निशानिय और स्वरुप होते हैं। जिनमे बायणमाता पूर्ण सात्विक और पवित्र देवी हैं जो तामसिक और कामसिक सभी तत्वों से दूर हैं। माँ पार्वती जी का ही अवतार होने के बावजूद बायण माता अविवाहित देवी हैं। तथापरा-शक्ति देवी माँ दुर्गा का अंश एक योगिनी अवतारी देवी होने के बावजूत भी बायण माता तामसिक तत्वों से भी दूर हैं अर्थात इनके काली-चामुंडा माता की तरह बलिदान भी नहीं चढ़ता है गलती से भी यह भूल न करें , क्योंकि बायण माता ब्रह्चारिणी अर्थात ब्रह्माणी का स्वरूप हैं । जो लोग घर पर श्री बाण माताजी की पूजा अर्चना करते हैं वे अपने घर में मांस-मदिरा का सेवन भी न करें । इसका उदाहरण आप मारवाड़ में देख सकते हैं यहां के कुछ सिसोदिया गहलोत राजपूत अपनी कुलदेवी श्री बाण माताजी को न मानकर श्री चामुंडा माताजी को मानते हैं , उनसे पूछने पर बताया कि पूर्व में श्री बाण माताजी की आराधना करना शुरू किया लेकिन हमने मांस-मदिरा का सेवन जारी रखा , जिससे माँ हमसे रुष्ट हो गयी और हमारे परिवार में तकलीफे आने लगी जिससे हमने इनकी जगह चामुंडा माता को अपनी कुलदेवी मान कर आराधना की ।
आज वे लोग जागृत होने के बावजूद भी मांस-मदिरा के लिए अपनी जननी का त्याग कर रहें हैं , मावड़ी से निवेदन हैं कि सद्बुद्धि प्रदान करें और अपनी शरण में बुलाए ।

' मांस-मदिरा त्यागों भाई , करों बायण री भक्तिं |
गलती बगसावे मावड़ी , इण सु बड़ी नही शक्ति ||

कुछ लोगो का यह भी कहना हैं कि मेवाड़ एवम् राजपूतों के बड़े बड़े रावलों में बलि चढ़ती हैं तो उनकी जानकारी के लिए बता दे कि बलि श्री बायण माताजी को न चढ़ भेरूजी को बलि चढ़ाई जाती हैं ।

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कुलदेवी-कुलदेवता की स्थापना अति आवश्यक हैं

*सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी*
               【 @[306557149512777:] 】

कुलदेवी और कुलदेवता का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता हैं , इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही हैं , इनके शुभ आशीर्वाद से कोई भी शुभ कार्य का शुभारम्भ नही होता हैं । कुलदेवी और कुलदेवता कुल रक्षा हेतु हमेशा सुरक्षा घेरा बनाए रखते हैं , आपके द्वारा किए गए पूजा-पाठ , व्रत कथा या जो भी आप धार्मिक कार्य करते हो उन्हें आपके इष्ट तक पहुँचाते हैं। कुलदेवी की कृपा से ही वंश में प्रगति होती हैं , लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को यह नही पता कि हमारे कुलदेवी या कुलदेवता कौन हैं? जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं , पता ही नही चल रहा कि इतनी मुसीबतें कहाँ से आ रही हैं , बहुत से लोगो ऐसे भी हैं जो पूजा-पाठ , ध्यान , हवन करने के बाद भी परेशानियों से घिरे रहते हैं , परिवार में सुख-शान्ति नही होती , बहुत अच्छी पढ़ाई करने के बाद भी बेटे की नोकरी नही लगती , पिता-पुत्र में झगड़ा , बेटी की शादी नही होती और शादी हो तो संतान नही होती , ये सब संकेत हैं कि आपके कुलदेवी कुलदेवता आपसे रुष्ट हैं । आपके ऊपर जो कुलदेवी का सुरक्षा चक्र हैं वह हट चुका हैं , जिसके कारण नकारात्मक शक्तिया आप पर हावी होती हैं , फिर चाहे कितने भी पूजा पाठ , हवन करवालों कोई हल नही निकलता कोई लाभ नही होता ,  लेकिन आधुनिक लोग इन बातों को नही मानेंगे ।
आँखे बन्द करने से रात नही हो जाती , सत्य सत्य ही रहेगा इसीलिए आपसे निवेदन हैं कि आपकी कुलदेवी की शरण में जाए , वही आपके कष्टों का निवारण करेगी , आपकी गलती को माफ़ करेगी , आपके दुखों का हरण करेगी ।
25 वर्ष पूर्व सिसोदिया गहलोत वंश अपनी कुलदेवी के प्रति उजागर नही था , इन विगत वर्षों में अपनी कुलदेवी के प्रति अथाह श्रद्धा अपने मन में प्रकट हुयी हैं , वे जागृत हुए और कुलदेवी के शरण में गए माँ ने उनको क्षमा कर उद्धार किया ऐसी वरदायिनी , चित्तौड़ गढ़ राय , करुणामयी , ममतामयी , तारणहार ,  भक्त उद्धारक , पुत्र दायिनी , वैभव दायिनी , धन दायिनी महामाय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी की सदा ही जय ।
माँ की महिमा ही निराली हैं जिस जिस ने कुलदेवी श्री बाण माताजी और कुलदेवता श्री बाण माताजी के लाड़ले प्यारे पुत्र श्री सोनाणा खेतलाजी की घर में स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू की हैं उनसे दुःख-दर्द व् हर तरह की नकारात्मक शक्ति कोसो दूर रहने लगी हैं । उनके घर में हजारों खुशिया आई हैं , माँ साथ में लक्ष्मी व् कुबेर का खजाना लाइ हैं ।
आज देश के प्रधानमन्त्री भी श्री बाण माताजी के कुल के ही हैं ।
सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी ने हमेशा से ही अपने कुल की रक्षा करती आई हैं और अपने वंश का पालन-पोषण करती आ रही हैं।
अतः जो भक्त इस पथ से भटके हुए हैं उनसे निवेदन हैं कि अपने घर में कुलदेवी श्री बाण माताजी और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी की स्थापना कर मनवांछित फल प्राप्त करें ।

करो आराधना कुलमात री , भरसी अन्न धन रा भण्डार ।
करो घर मन्दिर में स्थापना  , संग ले सोनाणा सरकार ।।
भूप दिप करो आरती , गावो मंगला सार ।
ढोल थाळी ती माँ-बेटा ने बदावो , होसी दूर अंधार
खेतल अगवाणी माँ बाण रे , होय श्वान असवारी ।
बायण बेठा मुळक रह्या , मूरत लागे प्यारी ।।

श्री बाण माताजी जिन गोत्रों की कुलदेवी हैं , उनकी सूचि
सुर , संत , शूरवीरों की धरती राजस्थान में देवियों की पूजा का विशेष महत्व हैं । कुल की रक्षा एवम् पालन पोषण करने वाली देवी कुलदेवी कहलाती हैं , हर गोत्र की एक अलग कुलदेवी और कुलदेवता होते हैं , इसी तरह जिन कुलों की कुलदेवी श्री बाण , बायण , ब्राह्मणी माताजी हैं , वे गोत्र हम आपको निचे बता रहे हैं ।

सिसोदिया गहलोत राजपूत जिन खांप की कुलदेवी श्री बाण माताजी वे निचे दिए गए हैं , वैसे तो सिसोदिया या गहलोत कहने पर पता चल जाता है कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी है लेकिन कोई समझने में कठिनाई ना हो इसीलिए मैं आपको सिसोदिया वंश की 24 शाखा और गहलोत वंश की 25 शाखा से अवगत कराता हूँ जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं ।

सीसोदियोँ की 24 खांप है
1 चन्द्रावत
2 लूणावत
3 भाखरोत
4 भंवरोत
5 भूचरोत
6 सलखावत
7 सखरावत
8 चूंडावत
9 मौजावत
10 सारंगदेवोत
11 डूलावत
12 भीमावत
13 भांडावत
14 रुदावत
15 खीँवावत
16 कीतावत
17 सूवावत
18 कुंभावत
19 राणावत
20 शक्तावत
21 कानावत
22 सगरावत मालवा
23 अगरावत
24 पूरावत

24 शाखा गहलोत शिशोद वंश
रावल बापा जी के 25 कुंवर हुए तथा 25 शाखा गहलोत
शिशोद वंश कहलाये !
1. आहाड़ा
2. कुचेरा ( कुछ कुचेरा गहलोत राजपूत स्वयं की कुलदेवी श्री अम्बा भावज मोरप्पा माताजी को बताते है , लेकिन लेकिन उनकी भी कुलदेवी श्री बाण माताजी ही हैं ।
3.  हुल
4. केलवा
5.पिपाडा
6. भीमल
7.  भटेवरा
8.  अजबरिया
9. मंगरोप
10.  आसावत
11.  बिलिया
12. कडेचा
13. मांगलिया
14. ओजाकरा
15. तिकमायत / तबडकिया
16. बेस
17. धुरनिया
18. मुन्दावत
19. डालिया
20.  गोदा
21.  दसाइत
22. तलादरा
23. भूसालिया
24.  जरफा
25. टवाणा

अन्य गोत्र जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी है

अणदा - ब्राह्मणी माताजी - सोनाणा , सारंगवास
आगलुड़ - बाण माताजी - सोनाणा खेतलाजी
अकलेचा - बाण माताजी - सोनाणा खेतलाजी
आडवानी - ब्राह्मणी माताजी
आँजणा - ब्राह्मणी माताजी
उदेश - ब्राह्मणी माताजी
उंटवाड़ - ब्राह्मणी माताजी
ओड़ाणी - ब्राह्मणी माताजी
कलसोणिया - ब्राह्मणी माताजी
करोलीवाल - ब्राह्मणी माताजी
करड़ - ब्राह्मणी माताजी
काबरा - बाण माताजी
कांदलि - ब्राह्मणी माताजी
काला - ब्राह्मणी माताजी
कुण्डल बार - ब्राह्मणी माताजी
केलवा - बाण माताजी
खाटणा - ब्राह्मणी माताजी
गर्ग - ब्राह्मणी माताजी
गदेचा - बाण माताजी
गगराणि - बाण माताजी
गठाणी - बाण माताजी
गहाणि - बाण माताजी
गगलोत भाटी - बाण माताजी
गिलड़ा - बाण माताजी
गोराणा - बाण माताजी
गोदारा - बाण माताजी
गोघात - बाण माताजी
गोसलिया - ब्राह्मणी माताजी ( डीडवाना बामणी )
गोलिया - ब्राह्मणी माताजी
गौतम - बाण माताजी
घोड़ेला - ब्राह्मणी माताजी
चांदेरा - ब्राह्मणी माताजी
चिंचट - ब्राह्मणी माताजी
चित्तौड़ा - बाण माताजी
चेलाणा - ब्राह्मणी माताजी
चोहणिया - ब्राह्मणी माताजी
जाड़ोति - ब्राह्मणी माताजी
जांगला सेवग - ब्राह्मणी माताजी
जागरवाल - ब्राह्मणी माताजी
जोण - ब्राह्मणी माताजी
झुटाणा - बामणी माताजी
टांक - ब्राह्मणी माताजी
डांगी - ब्राह्मणी माताजी
डाबी - ब्राह्मणी माताजी
तरपासा - ब्राह्मणी माताजी
दगड़ावत - ब्राह्मणी माताजी
दधिवाड़िया - ब्राह्मणी माताजी
धनदे - ब्राह्मणी माताजी
नागी - ब्राह्मणी माताजी
नागरिया - ब्राह्मणी माताजी
निवेल - ब्राह्मणी माताजी
परवतीया - ब्राह्मणी माताजी
पलासिया - ब्राह्मणी माताजी
पन्नू - ब्राह्मणी माताजी
पराडिया - ब्राह्मणी माताजी
पालड़ीवाल - ब्राह्मणी माताजी
पाचल - ब्राह्मणी माताजी
पालाच - ब्राह्मणी माताजी
पाटासर - ब्राह्मणी माताजी
पाराशर - ब्राह्मणी माताजी
पेगड़ - ब्राह्मणी माताजी
पोण - ब्राह्मणी माताजी
पोठल्या - बाण माताजी
फोदर - ब्राह्मणी माताजी
बरबड़ - ब्राह्मणी माताजी
बजोच - ब्राह्मणी माताजी
बागाणा - ब्राह्मणी माताजी
बाणिया - ब्राह्मणी माताजी
बामणिया - ब्राह्मणी माताजी
बांकलिया - ब्राह्मणी माताजी
बांभरेचा - ब्राह्मणी माताजी
बारड़ - ब्राह्मणी माताजी
बाबरिया - ब्राह्मणी माताजी
बारड़ा - ब्राह्मणी माताजी
बीजल - ब्राह्मणी माताजी
बोड़ा - ब्राह्मणी माताजी
बोसेता - ब्राह्मणी माताजी
भवरा - बाण माताजी
भायलोत - बाण माताजी
भांड - ब्राह्मणी माताजी
भारद्वाज - ब्राह्मणी माताजी
भिलात - बाण माताजी
भूक - ब्राह्मणी माताजी
भुमलिया - ब्राह्मणी माताजी
भोंडक - बाण माताजी
मंडोवरा - ब्राह्मणी माताजी
मालवी - बाण माताजी
मारोटिया - ब्राह्मणी माताजी
मगड़दिया - बाण माताजी
मारवणिया - ब्राह्मणी माताजी
मांगलिक - बाण माताजी
मिंडा - ब्राह्मणी माताजी
मेरणिया - ब्राह्मणी माताजी
मोचाला - ब्राह्मणी माताजी
राकदी - ब्राह्मणी माताजी
राणे - बाण माताजी
रालड़िया - ब्राह्मणी माताजी
रोहोटिया - ब्राह्मणी माताजी
लवत - ब्राह्मणी माताजी
लायचा - ब्राह्मणी माताजी
लाताड़ - ब्राह्मणी माताजी
लिबड़िया - ब्राह्मणी माताजी
लोलग - ब्राह्मणी माताजी
वड़किया - ब्राह्मणी माताजी
वशिष्ठ - ब्राह्मणी माताजी
विनपाल - ब्राह्मणी माताजी
सखा - ब्राह्मणी माताजी
सवार - बाण माताजी
सकुत - बाण माताजी
सरादरो - ब्राह्मणी माताजी
सेऊआ - ब्राह्मणी माताजी
आडवाणी - ब्राह्मणी माता
ओडाणी - ब्राह्मणी माता
करड़ - ब्राह्मणी माता
करोलीवाल - ब्राह्मणी माता
कलसोणिया - ब्राह्मणी माता
कांदलि - ब्राह्मणी माता
गुर्जरगोता - ब्राह्मणी माता
गेवाल - ब्राह्मणी माता
नागरिक - ब्राह्मणी माता
बैंगाणी - ब्राह्मणी माता
लूणिया - ब्राह्मणी माता
एणिया - बाण माता
कपोल - बाण माता
काकोल - बाण माता
काजोत - बाण माता
केलवा - बाण माता
खेतसि - बाण माता
निसर - बाण माता
गुगलिया - बाण माता
गेलतर - बाण माता
गोराणा - बाण माता
निसक - बाण माता
आसावत - बाण माता

विशेष सुचना - मित्रों वैसे तो बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी एक ही हैं बस भक्त मातेश्वरी को प्रेम से कभी बाण , बायण तो कभी बामणी , ब्राह्मणी तो कभी बाणेश्वरी माताजी कहते हैं ।
ऊपर दी गयी पोस्ट में आपको हर गौत्र में माँ के दो अलग अलग नामों का प्रयोग किया गया हैं ' बाण माताजी और ब्राह्मणी माताजी '
दिए गए गोत्रों में जिन गोत्रों के पीछे ' बाण माताजी ' लिखा है उनकी कुलदेवी निसंदेह: बाण माताजी चित्तौड़ गढ़ में विराजमान है और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी हैं ।
उन गोत्रों की कुलदेवी का पाट स्थान चित्तौड़ गढ़ और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी ही होंगे ।

जिन गोत्रों के पीछे ब्राह्मणी माताजी लिखा हुआ हैं , उनकी कुलदेवी का पाट स्थान वही होगा जो आपके पूर्वज जिस स्थान पर जाकर उपासना या पूजा किया करते थे या जहाँ से आप पहली बार ज्योत लाए हो ।
उदाहरण के तौर पर सिंगानिया गोत्र की कुलदेवी ब्राह्मणी , बाण माताजी ही हैं और यह गोत्र माताजी के पल्लू धाम से एक बार ज्योत लायी है या इनके पूर्वज इनको आराध्य या कुलदेवी मान कर पल्लू में विराजमान रूप की पूजा करते थे तो आपकी कुलदेवी का पाट स्थान पल्लू ही होगा ।
और अगर दी गयी गोत्रों में अगर उन्हें आज तक पता न लगा हो कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी  हैं ।
अगर इस पोस्ट के माध्यम से पहली बार आपको पता चले कि आपकी कुलदेवी ब्राह्मणी माताजी या बाण माताजी है तो आप मातेश्वरी की ज्योत चित्तौड़ से ला सकते हैं श्री बाण माताजी आपकी अपने कुल का ही मानेगी ।

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