Saturday 4 March 2017

कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

सोनाणा खेतलाजी का सक्षिप्त इतिहास-

भक्तों चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि हैं वैसे तो पुरे भारत वर्ष में आज से नवरात्रि शुरू होंगे लेकिन इसी के साथ आज माँ ब्राह्मणी ( बाण , बायण ) के लाड़ले और जन जन के आस्था के प्रतिक श्री सोनाणा खेतलाजी का जन्म दिवस हैं , श्री बाण माताजी भक्त मंडल जोधपुर की और से आप सभी भक्तों को श्री सोनाणा खेतलाजी के जन्म दिवस पर हार्दिक  शुभकामनाएं , खेतलाजी की कृपा आप और आपके परिवार पर सदा बनी रहे साथ ही नवरात्रि एवम् हिन्दू नव वंश की हार्दिक शुभकामनाएं माँ भगवती श्री बाण माताजी की कृपा सदा आप पर बनी रहे । श्री सोनाणा खेतलाजी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर पाट स्थान सोनाणा एवम् सारंगवास में आज के दिन भव्य लकी मेले का आयोजन किया गया ।
श्री सोनाणा खेतलाजी ( गोरा भेरूजी ) और श्री काला भेरूजी का निकास काशी से हैं , काशी से बापजी मंडोर ( जोधपुर ) पधारे यहा पर काला गोरा माँ ब्राह्मणी , माँ नागणेच्या और गणेश जी के साथ विराजमान है , मंडोर से तिकी पहाड़ी आना पधारे और यहा से सोनाणा ( जूनी धाम ) और सोनाणा से सारंगवास ( नवी धाम )  आएं ।

राजस्थान प्रांत के पाली जिले में देसुरी गाँव के पास “श्री सोनाणा खेत्लाजी” का प्रसिद्ध मंदिर है| राजस्थान में भैरूजी के दो रूप बताए गए है, जो काला व् गोरा भैरूजी कहलाते है| चामुंडा माताजी को इनकी माताजी माना जाता है| गोरा भैरूजी को क्षेत्र्पाल्जी भी कहा जाता है| खेत्र को खेत्र भी कहते है| अत: इन्हें खेत्रपाल भी कहा जाता है| यह शब्द अपभ्रंश से खेत्लाजी हो गया| यह गाँव (क्षेत्र) और कुल के रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध है|
अरावली की पर्वत श्रुंकला में छोटी-छोटी २ पाहाडियां है| सोनाणा खेत्लाजी का मंदिर पहाड़ी की पूर्व दिशा में है|
सारंगवास में विराजमान मंदिर परिसर में श्री सोनाणा खेतलाजी , माँ चामुंडा , काला भेरू जी और गणेश जी की मूर्तियां स्वत्: ही विराजमान हुयी है ।
सारंगवास (नवी धाम)
देसुरी से ७ किमी ओर सादडी से १८ किमी फालना से ४० किमी
बहुत बडा विशाल स्थान है यहा प्याऊ धर्मशालाय गेस्ट हाऊस भोजन शाला सभी सुविधाएै उपलब्ध हैं।
खेतलाजी सारंगवास जिस गोत्र के कुल देवता है उसे विवाह की जात लगानी पडती है बाद मे बालक होने पर बाबरी (जरोलिया) की जात लगानी पडती है
नोट- जात भुखे पेट लगती है
जात पुरी विधी  से लगानी पडती है
जिसके कुल देवता है वो पेरो मे घुंघर
काले कपडे  पहना वर्जित है
यहा पुजा पाठ सेकडो वर्षो से केदारिया राजपुरोहित परिवार द्वारा बारी-बारी से शान्तिपुरवक की जाती है।
   महाराणा राजमल जी ने  1447 में  ताम्र पात्र पर लिखित आजिवन पुजा अर्चना की जिम्मेदारी केदारिया राजपुरोहित परिवार को सौपी थी ।
राजस्थान में भैरूजी के दो रूप बताए गए है, जो काला व् गोरा भैरूजी कहलाते है| गोरा भैरूजी को क्षेत्र्पाल्जी भी कहा जाता है , खेत्र को खेत्र भी कहते है ,अत: इन्हें खेत्रपाल भी कहा जाता है| यह शब्द अपभ्रंश से खेत्लाजी हो गया| यह गाँव (क्षेत्र) और कुल के रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध है|
अरावली की पर्वत श्रृंखला में छोटी-छोटी २ पाहाडियां है| सोनाणा खेत्लाजी का मंदिर पहाड़ी की पूर्व दिशा में है|  राजस्थान के पाली जिले के देसूरी तहसील में श्री सोनाणा खेतलाजी का प्रसिद्ध मंदिर सारंगवास (नवी धाम)
देसुरी से ७ किमी ओर सादडी से १८ किमी फालना से ४० किमी
बहुत बडा विशाल जग प्रसिद्ध मंदिर है।  संवत् १००० के आसपास नाडोल पर चौहानों राजपूतों का राज था| अल्हन व् कल्हन दो भाई थे| नाडोल अधिपति ने अपने छोटे भाई को नडूलाई(नारलाई), देव्सुरी(देसुरी), मोरखरा(मोरखा), काणासुत(काणा), सुमेल(सुमेर) सोनाणा सहित बारह गाँव जागीर में दिए| छोटे भाई ने फिर जालोर पर चढ़ाई की व सिवाना को विजय किया| जालोर की पाहाडी का नाम सोनगढ़ दिया गया| वहां से सोनीगरा चौहान कहलाए और नाडोल वाले नाडोल चौहान कहलाए|   सोनाणा को तीन भागों में विभाजित कर दिया गया- शौभावास, सारंगवास और सोनाणा|
सोनाणा के क्षेत्रपाल का मंदिर सारंगवास में ही रहा|  कुछ लोगो की धारणा के अनुसार, सर्प के रूप में भी पूजा होती है , इसलिए सारंगवास का नाम दिया गया “सारंग” जो मोर और सर्प को भी कहते है|
आना गाँव पंद्रहवी शताब्दी तक सोलंकियो के   पास अधीन रहा| १८वि सदी के अंत में सरदार सनन्द बाँध बनना शुरू हुआ तब भिथंडा महंतजी की जमीन बांध के लिए आने से उसके एवज में मारवाड़ नरेश ने उन्हें आना गाँव दिया|अर्थात सोनाणा गाँव जो बहुत बड़ा था, उसमे चार गाँव-सोनाणा, सारंगवास, शौभावास और आना कर दिया गए| परन्तु क्षेत्रपालजी मंदिर के लिए चारो गांवो का सामान अधिकार रहा एवं चारों गाँवों की सरहद की क्षेत्रपालजी की सरहद के रूप में मान्यता रही और सभी उन्हें पूजते रहे| ग्राम पंचायत के रूप में भी यह चार गाँव की पंचायत रही, जिसकी देखरेख में मंदिर के संपूर्ण कार्य की व्यवस्था rही| सन १९७८ में ट्रस्ट की स्थापना की गई, जिसका पूरा कार्य मंदिर के विकास को देखने का रहा और वे देखते आ रहे है|ज्यो-ज्यो कार्य बढ़ता गया त्यों-त्यों इन्ही कार्यक्रताओ की सलाह पर बाहर के समाजसेवियों को शामिल करते हुए विस्तार किया गया, जो आज सशक्त रूप में कार्य कर रहे है| जोधपुर से ट्रस्ट का रजीस्ट्रशन हो गे है| ऐसी मान्यता है की खेतलाजी की सरहद में जो कुआंरी कन्या आती है उसे विवाह उपसन्न (उपलक्ष) वर-वधु जुहार(जान) देना पड़ता है| पुत्र रत्न प्राप्ति हेतु भी मनौती करते है औए श्रद्धा रखने पर पुत्र रत्ना प्राप्ति के बाद जात और बच्चे को जडोले देने पड़ते है|
सन १९८२ से चैत्र सुदी १ को ट्रस्ट के निर्णयनुसार, महान भक्तराज शान्तिलालजी एवं शिवराजजी ने खेतलाजी महाराज के हुकुम से, हर वर्ष मेले का आयोजन करने का निश्चय किया, जो दिनोदिन विशाल रूप धारण करता जा रहा है|
तीर्थ का विकास इतनी तेज गति से होता आ रहा है की उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती| इसका सार श्री भक्तराज शांतिलालजी एवं ट्रस्ट को जाता है| खेतलबाबा के चमत्कार से आज तक यहाँ इतने बड़े जनसमुदाय (सभी धर्म वर्ग के) के आते रहने के बावजूद एक ही परिवार जैसा माहौल बना रहता है|
इसी क्रम में निर्माण एवं यात्रियों की व्यवस्था का कार्य सुचारू रूप से चला आ रहा है| ऐसा भी माना जाता है की ब्रह्माजी ने भैरूजी को श्राप रुपी वरदान दिया था, जिससे घर-घर स्थापना की जाती है और जुहार(जात) मांग कर लेते है| ऐसा भी माना जाता है की मृत्युलोक में राक्षसों का नाश करके मानव की सृष्टि में भैरूजी का पूर्ण सहयोग रहा है| एक हजार नाम है| क्षेत्र और कूल की रक्षा करने वाले कुलदेव भैरूजी है, जो अपनी माता चामुंडाजी कुलदेवीजी के साथ में कुल में विराजमान रहते है| भैरूजी,खेतलाजी,क्षेत्रपालजी व् खेतपालजी सभी एक ही माया है|
काशी से जब क्षेत्रपाल आए तब सबसे पहले मंडोर में विराजमान हुए, जो आज बड़ी गाडी मानी जाती है| फिर सोनाणाजी के पास तारीकी पहाड़ की गुफाओं में पधारे, वहा के थाजुर को चमत्कार दिखाने पर वे केदारिया पुरोहितजी के आग्रह पर सोनाणा पधारे और पहाड़ी की गुफा में धुनी जगाई| मगर मेवाड़ का राज्य मारवाड़ में चले जाने के कारण चारणों के हस्तक आ गया और चारणों-पुरोहितो के आपसी झगड़े के कारण विनंती पर खेतलाजी सारंगवास की पाहाडी गुफा में आकर माँ ब्राह्मणी के पास विराजमान हुए| जो आज महा चमत्कारी कुलदेवता के रूप में पूजे जाते है|

No comments:

Post a Comment

Featured post

कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

सोनाणा खेतलाजी का सक्षिप्त इतिहास- भक्तों चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि हैं वैसे तो पुरे भारत वर्ष में आज से नवरात्रि शुरू होंगे लेकिन ...