Sunday 30 April 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०२

दोहा :- 

इच्छित पूरण अंबिका, देवी तूँ दातार |
त्राता दाता मात तुहिं, बायण तूँ किरतार ||



अनुवाद :- हे कामनाओं की पूर्ती करने वाली माँ अंबिका! हे देवी! आप उदार हृदय से वरदान देने वाली माँ हो! आप ही रक्षक और दाता हो, हे माँ बाणेश्वरी! आप संसार की रचियता एवम् विघातृ शक्ति हो। 

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩


श्री बाण माताजी दोहा ०१

दोहा :-

बायण माता बालिका, बांह धरे बोलाय |
आई अंगज आपरो, धरि गोदे धवराय ||


अनुवाद :- हे बालिका रूप बायण माता! आप मेरी रक्षक हैं, मुझको बुलाकर अपने अंक में लेलो। हे माँ! मैं आपका ही पुत्र हूँ, मुझको गोद में लेकर पय:पान ( स्तनपान ) से तृप्त करें।

🚩 *चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय* 🚩


Saturday 29 April 2017

श्री बाण माताजी स्तुति

श्री बाण माताजी स्तुति

लावन्याम्बुधिसम्भवे दुवदनां, विद्याधरी वन्दिताम् |
भाले चंदनमण्डिताम् श्रुतियुगे गांगेयमुक्तांविताम् ||
नासामोक्तिकशोभितां हैंमी दधानां पटीम् |
रत्नशोभितकंचुकीमनुपमाम् , श्रीबाणेश्वरीश्रेयः ||


 *अनुवाद* :-  सौंदर्य समुन्द्र से उत्पन्न चंद्रमा की तरह मुखवाली, विद्याधरों से नमस्कृत, चंदन से अर्जित ललाट से शोभित, अपने दोनों कानों में मोतियों की लड़ियाँ धारण किए हुए, नाक के अग्रभाग में मोती की लटकन से युक्त, सुवर्णमय वस्त्रों से अलंकृत रत्नमय कंचुकी ( कांचळी ) को धारण किए हुए अनुपम रूपवाली देवी बाणेश्वरी के आश्रय का मैं सदा प्रार्थी हूँ।

चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

Wednesday 12 April 2017

श्री बाण माताजी मंदिर घाणेराव

श्री बाण माताजी मंदिर घाणेराव

" बाण तूँ ही ब्राह्मणी, बायण सूं विख्यात |
सुर सन्त सुमरे सदा, सिसोदिया कुलमात ||

Tuesday 11 April 2017

चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी प्रथम सेवा कार्यक्रम

*चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी प्रथम सेवा कार्यक्रम* मातेश्वरी और सोनाणा खेतलाजी की कृपा से निर्विघ्न सम्पन्न हुआ, इसके लिए हम माँ बायण माता, सोनाणा खेतलाजी, अन्नपूर्णा माताजी एवम बाबा रामदेव जी के आभारी हैं।
इस प्रथम सेवा कार्यक्रम ने सभी दर्शनार्थियों का मनमोह लिया...
कार्यक्रम में हमारा मार्गदर्शन करने में माताजी अनुराधा जी गहलोत, सरवानिया ठाकुर साहब राजेंद्र सिंह जी राणावत, ठकुरानी साहिबा, श्रीपाल सिंह जी शक्तावत एवम सोहनलाल जी पीपाड़ा का पूर्ण सहयोग रहा।
कार्यक्रम जिनकी वजह से सफलता की चोटी पर पहुँचा उनमे माजी और खेतलाजी के बाद सर्व प्रथम सम्पूर्ण योगदान गोविन्द सिंह जी गहलोत एवम भवानी सिंह जी का रहा, आपका आभार। हिमांशु जी गहलोत एवम हड़मत जी माली का भी खूब-खूब आभार जो रात-दिन हमारे साथ रह कर सेवा की।
कार्यक्रताओं में मुख्य नागेंद्र सिंह जी सिसोदिया, राजेंद्र जी सिसोदिया, श्याम सिंह जी सिसोदिया, दशरथ सिंह जी सिसोदिया, गणेश जी मोरखा, सवाई सिंह जी राठौर और पुरण जी लोहार का खूब-खूब आभार जो इस कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान दिया।
प्रथम सेवा कार्यक्रम की पूर्ण सफलता के बाद अब जल्द ही श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल द्वारा *चित्तौड़गढ़ राय श्री बाण माताजी द्वितीय सेवा कार्यक्रम* की शुरुआत की जायेगी।
प्रथम सेवा कार्यक्रम में भक्तों की सेवा के पश्चात् मातेश्वरी एवं सोनाणा खेतलाजी के विशेष श्रृंगार दर्शन का भी सभी कार्यक्रताओं को लाभ मिला, कार्यक्रम के अंतिम दिन भक्तों द्वारा मातेश्वरी के मंदिर शिखर पर ध्वजा चढ़ाई गयी।
श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेवा कार्यक्रम के अंतिम चरण में मुख्य मातृभक्तों का सम्मान किया गया।
इस कार्यक्रम में जिन-जिन भक्तों ने किसी भी रूप में भाग लिया हो तन-मन-धन से उन सभी भक्तों का हार्दिक आभार एवम अभिनन्दन, हमेशा हमारा सहयोग करते रहे एवम मातेश्वरी की ध्वजा को सम्पूर्ण भारत में लहराने में सहयोग करते रहे ।
जय श्री बाण माताजी...

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩
👉 विशेष नोट:- जो भक्त श्री बाण माताजी सोशल भक्त मण्डल के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ना चाहते हैं वे संपर्क करें 8107023716

🚩 श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर - राज.

Saturday 1 April 2017

श्री बाण माताजी की घोड़े की असवारी वाला मंदिर प्रतापगढ़

श्री बाण माताजी मंदिर प्रतापगढ़

आपने शेर पर सवार मां दुर्गा के दर्शन तो किए ही हैं। लेकिन आज हम मां के ऐसे स्वरूप के दर्शन कराते हैं। जिसमें मां एक अश्व पर सवार हैं। मां के इस रूप को देखकर लगता है। जैसे वह किसी युद्ध के मैदान में शत्रुओं का नाश करने जा रही हो घोड़े पर सवार यह मां अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर करती हैं। मां की ऐसी अद्वितीय मूर्ति प्रतापगढ के प्राचीन किला परिसर में बाणमाता मंदिर में स्थापित है यहां मां एक घोडे पर सवार है। माता के एक हाथ में तलवार है। दूसरे में ढाल है। एक में धनुष है। एक में बाण है। एक में राक्षस की मुंड है और एक हाथ से घोड़े की बाग को संभाले है। इसलिए बाणमाता या बाणेश्वरी देवी नाम से प्रसिद्ध है।
बाणमाता चित्तौडगढ के इतिहास को गौरवान्वित करने वाले महाप्रतापी महाराणा प्रताप, सांगा, कुम्भा की कुलदेवी है। सांगा के समय उनके परिवार के कुछ लोग प्रतापगढ आ गए। प्रतापगढ की राजधानी देवगढ में आकर अपनी रियासत कायम की उसी रियासत से बाघ सिंह भी हुए हैं। उन्होंने पाटन पोल पर अपनी कुर्बानी देकर चित्तौड को बचाने का प्रयत्न किया था। कहा जाता है कि सिसोदिया वंश पर जब विपदा आईए तो मां घोडे पर सवार होकर प्रकट हुई और उनकी मदद की। तब से मां के इस स्वरूप को यहां स्थापित किया गया है।
तब से यहां बाणमाता की पूजा होती आ रही है। मुगल काल में राजस्थान की लगभग सभी रियासतों ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी लेकिन चितौडग़ढ़ ही ऐसी रियासत थी जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की पुरे देश को गौरवान्वित करने वाले इन्हीं महान महाप्रतापी राजाओं की कुलदेवी बाणेश्वरी शक्ति की प्रतीक हैं। जब भी महाराणा प्रताप, सांगा, कुम्भा जैसे प्रतापी शासक मुगलों से युद्ध के लिए जाते थे तो पहले अपनी इस कुलदेवी की पूजा अर्चना करते थे। बाणेश्वरी की उपासना के बाद ही रण भूमि पर जाते थे इस विश्वास के साथ कि मां भगवती युद्ध में उनके साथ रहेगी और विजय प्रदान करेगी बाणमाता या बाणेश्वरी मंदिर की यह मान्यता है कि जो भी जिस भाव के साथ मां की शरण में आता है उसकी इच्छा पूरी होती है। नवरात्रि के अवसर पर रोजाना महामाया बाणमाता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। महाआरती की जाती है जिसमे रोजाना भारी तादात में श्रद्धालु मां के दर्शन करने पहुच रहे है।

धिन धरती मेवाड़ री, धिन-धिन प्रतापगढ़ देश | बायण आप पधारिया, जबर घोड़ा पर बेस ||

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩

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