Wednesday 28 December 2016

श्री बाण माताजी मंदिर सड़ा ( मालानी, बाड़मेर )

श्री बाण माताजी की अखण्ड ज्योत कब और किसने प्रारम्भ करवाई

श्री बाण माताजी की अखण्ड ज्योत एवं नवरात्रि हवन

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श्री बाण माताजी मंदिर चित्तौड़गढ़ ( पाट स्थान ) में जग रही अखण्ड ज्योत 2004 में सरवानिया महाराज ( एम्. पी. ) ठिकाने के ठाकुर साहब राजेंद्र सिंह राणावत ने प्रारम्भ करवाई थी, तब से आज तक यह अखण्ड ज्योत भक्तों द्वारा निरंतर चलती आ रही हैं ।
चित्तौड़गढ़ श्री बाण माताजी के मंदिर में चैत्र एवं आसोज नवरात्रि में हवन नारेला ठाकुर साहब स्व: श्री हरि सिंह जी करवाते थे , कई वर्षों तक कुलदेवी का हवन ठाकुर साहब नवरात्रि में करवाते रहे , उनके स्वर्गवास के पूर्व उन्होंने इस जिम्मेदारी को सरवानिया महाराज ठाकुर साहब श्री राजेंद्र सिंह को सौपा , जो आज आप द्वारा निरन्तर हवन एवं मातेश्वरी की पूजा का दायित्व निभाते आ रहे हैं ।

उदयपुर से ठाकुर राजबहादुर सिंह जी राणावत भी हर वर्ष शारदीय नवरात्रि में चित्तौड़गढ़ विराजमान श्री बाण माताजी के हवन अष्टमी को हवन करके शक्ति के प्रति अपनी पूरी श्रद्धा के साथ राजसी परम्परा निभाते आ रहे हैं।

जग-मग दिवला जागता, म्हारी बाण माता रे धाम |
जो कोई साँचा मन सु सिंवरे, बाण माता सारों भक्तो रा काम ||

🙏 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🙏

Tuesday 27 December 2016

किस तरह होती है श्री बाण माताजी की उदयपुर सिटी पैलेस में महाराणा द्वारा पूजा

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यह तो सर्वविदित है कि मेवाड़ के राजकुल एवं इस कुल से पृथक हुई सभी शाखाओं की कुलदेवी बायण माता है अतः मेवाड़ में इसकी प्रतिष्ठा एवं महत्त्व स्वाभाविक है ।

राजकुल की कुलदेवी बायणमाता सिद्धपुर के नागर ब्राह्मण विजयादित्य के वंशजों के पास धरोहर के रूप में सुरक्षित रही है । जब-जब मेवाड़ की राजधानी कुछ समय के लिए स्थानान्तरित हुई वहीं यह परिवार कुलदेवी के साथ महाराणा की सेवा में उपस्थित रहा । नागदा, आहाड़, चित्तौड़ एवं उदयपुर इनमे मुख्य है ।

चैती एवं आसोजी नवरात्री में भट्ट जी के यहाँ से कुलदेवी को महलों में ले जाया जाता है । उस वक्त लवाजमें में ढ़ोल, म्यानों बिछात अबोगत (नई) जवान 10, हिन्दू हलालदार 4, छड़ीदार 1, चपरासी 1 रहता है ।

महलों में अमर महल (रंगभवन का भण्डार) की चौपड में जिसका आँगन मिट्टी का लिपा हुआ कच्चा है, स्थापना की जाती है । इस अवधि में कालिका, गणेश, भैरव भी साथ विराजते हैं । जवारों के बिच बायण माता के रजत विग्रह को रखा जाता है । इनमें सभी प्रकार के पारम्परिक लवाजमें में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र शस्त्र एवं मुख्य चिन्न यहाँ रखे जाते है । अखण्ड ज्योति जलती है । विधि विधान से पूजा पाठ होते हैं । बाहर के दालान में पण्डित दुर्गासप्तशती के पाठ करते हैं । महाराणा इस अवधि में तीन-चार बार दर्शन हेतु पधारते थे । अष्टमी के दिन दशांश हवन संपन्न होता है । पूर्व में इसी दिन चौक में बकरे की बलि (कालिका के लिए) एवं बाहर जनानी ड्यौढ़ी के दरवाजे में महिष की बलि दी जाती थी , जो अब बंद हो गयी है ,उसके बदले में श्रीफल से बलि कार्य संपन्न किया जाता है । अष्टमी के दिन हवन की पूर्णाहुति के समय महाराणा उपस्थित रहते थे । तीन तोपों की सलामी दी जाती थी । नवमी के दिन उसी लवाजमें के साथ बायण माता भट्ट परिवार के निवास स्थान पर पहुँचा दी जाती ।

सेव्य सदा सिसोदिया, माहि बंधियों मान |
धनुष-बाण धारण करि, बण तूँ माता बाण ||

🙏 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🙏

Sunday 25 December 2016

श्री बाण माताजी के श्रीचरणों में रह कर भक्ति करने हेतुं एक छोटी सी माजी से अरदास

🙏� श्री बाण माताजी के श्रीचरणों में रह कर भक्ति करने हेतुं एक छोटी सी माजी से अरदास

चित्तौड़गढ़ की धनियाणी श्री बाण माताजी की ऐसी महिमा हैं कि यदि इस मानव शरीर में चित्तौड़ स्वामिनी श्री बाण माताजी के चरणारविन्दों की धूलि लिपटी हो तो इसमें अगरू, चंदन या अन्य कोई सुगन्ध लगाने की जरूरत नही, श्री बायण माताजी के भक्तों की कीर्तिरूपी सुगंध तो स्वयं ही सर्वत्र फ़ैल जाती हैं।

हे बाणासनवती! श्री बाणेश्वरी माता! हे हंसवाहिनी! श्री ब्रह्माणी माता! मेरे जीवन की आधार, मैं आपके श्रीचरणों की वंदना करता हूँ, मेरे मन की प्रीति सदैव आपके ही श्रीचरणों में लगी रहे, मेरी हर साँस में माँ बायण बस आपका ही सुमिरन हो, मेरे जीवन के अंतिम क्षणों में बस आपका ही ध्यान रहे, ऐसी कृपा करो मेरी बाण मैया। आपके श्रीचरणों में अखिल ब्रह्मांड समाया हैं, आपके श्रीचरण आपके भक्त सदैव अपने हृदय ने धारण करते हैं  । मेरी एक विनती सुनों मैया आपने इन्ही श्रीचरणों से चित्तौड़गढ़ की धरती धन्य हुयी, हे अम्ब! ऐसी कोई कृपा करो हम पर कि आपके श्रीचरणों में ही हमारा ध्यान लगा रहे , हम आपके भक्त आपसे करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि आपके श्रीचरण ही हमारे त्रिविध तापों, पापों को दूर करें ।

लग्न ऐसी मोहि लागि रहे , करूँ थारे चरणों री सेवा |
तूँ जगदम्बा जुगत री , धुप दीप अगरबत्ती खेवा ||
विणती वरणा थारी चरण , सुणजे ए धनियाणी |
मन मायड़ में लागो रहे, और कुछ नही माँगा माड़ी ||

🙏�  चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🙏

Saturday 24 December 2016

श्री बाण माताजी ( मोरपा माताजी ) पालड़ी जोधा ( नागौर )

श्री बाण माताजी मंदिर पालड़ी जोधा ( नागौर )

श्री बाण माताजी का यह भव्य मंदिर नागौर जिले के पालड़ी जोधा गाँव में स्थित हैं, मंदिर में विराजमान श्री बाण माताजी को मोरप्पा माताजी भी कहाँ जाता हैं। यह मंदिर कई वर्षों पुराणा हैं, कुचेरा के ठाकुर गुहिलोत की सहायता पर यहाँ माताजी का स्थान बनाया गया व् उनके नाम से कई एकड़ जमीन छोड़ दी गयी । मंदिर विशाल तालाब के किनारे बना हुआ हैं।
लोग इन्हें मोरप्पा माताजी के नाम से जानते हैं जिससे कुछ लोग बाण माता और मोरप्पा माता को अलग-अलग देवी बताते हैं लेकिन दोनों एक ही हैं, इस मंदिर में श्री बाण माताजी ने सिंह की सवारी की हैं, यहां माँ की शरण में आए भक्तों का उद्धार मातेश्वरी अवश्य करती हैं।

( मंदिर का संपूर्ण इतिहास जल्द ही आप सब तक साझा किया जाएगा )

🙏 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🙏

श्री बाण माताजी मंदिर गोगुन्दा

Friday 23 December 2016

श्री बाण माताजी मंदिर मोरखा ( देसूरी, पाली )

श्री बाण माताजी स्तुति पार्ट-05

श्री बाण माताजी स्तुति पार्ट-05

हे कूटस्थ चैतन्यस्वरूपा, वेदशास्त्रादि द्वारा ज्ञेया बाणेश्वरी जगदम्बे! आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ बायण! यह सारा त्रिलोक आपके द्वारा ही विरचित हैं। आपकी आज्ञा से ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आपके द्वारा निर्धारित कार्य में प्रवृत्त होते हैं। वे स्वत्रन्त्र न होकर आपके ही वशवर्ती हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भ्रूभंग तक भी नही कर सकता। संपूर्ण लोक आपके अधीन और आज्ञाकारी हैं, आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
हे बाण माता! इस संसाररुपी सागर को पार करने के लिए आपके चरण रुपी पोत का आश्रय लेने वाले लोग सचमुच ही धन्य हैं। योगी, वीतराग माहात्मा, निर्विकार भक्त और मोक्षार्थी ज्ञानी सभी उच्च कोटि से तत्वदृष्टा आपका ही भजन करते हैं। आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे माँ ब्रह्माणी! इस चराचर विश्व में आप ही मेधा, कांति, शान्ति तथा तत्वार्थबोधिनी विद्या हैं। आप ही अपनी कृपा से अपनी विभूतियों में दिव्यता का प्रवेश कर उन्हें अनुपम एवं विलक्षण रूप प्रदान करती हैं। आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम ।
हे जगदम्बे! तीनों वेदों के निष्णात भजनशील पंडित यज्ञ के साथ वेदमन्त्रों से आहुतियाँ देते हुए आपका ही स्मरण करते हैं। आप ही स्वाहा और स्वधा के रूप में दी गई आहुतियों से क्रमशः देवों तथा पितरों का पोषण करती हैं। आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
हे माँ बायणेश्वरी! अल्पबुद्धि हम आपका किस प्रकार पूजन करें और आपको क्या अर्पण करें। फल-पुष्पादि सकल पदार्थों की स्रष्टा तो आप ही हैं। आपकी वस्तु आपको समर्पित करने में हमारा योगदान हुआ? हे देवी! हम आपके श्री चरणों में नतमस्तक होने के रूप में ही अपनी भावना प्रकट करते हैं और बारम्बार यही कहते हैं कि आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
हे माँ वरदायिनी! आपने ही यह लोकमर्यादा स्थिर की कि माँ अपने बच्चों द्वारा घोर अपराधों के किए जाने पर भी उन्हें क्षमा कर देती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। हमारे विचार में हम तो सर्वथा निरपराध हैं, फिर आप हमारी रक्षा क्यों नही करती?😢 हे बायण माँ! हम आपके शरणागत हैं, आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
हे चित्तौड़गढ़राय! हे बाण माता! हे अनन्त कोटि-कोटि ब्रह्मांड की संचालिके भगवती! आप प्रसन्न होइये। मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम ।

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🙏 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🙏

श्री बाण माताजी मंदिर सुमेरपुर ( पाली )

Thursday 22 December 2016

श्री बायण माताजी मंदिर गाँव-भवानी री भागल

श्री बायण माताजी मंदिर गाँव-भवानी री भागल ( राजसमन्द )

मंदिर का निर्माण लगभग 1000 साल पूर्व मेवाड़ के महाराणा द्वारा किया गया था, मंदिर का निर्माण हूबहू चित्तौड़गढ़ में स्थित पाट स्थान की तरह ही बनाया गया हैं।

जल्द ही विस्तृत जानकारी आप सभी तक पहुँचा दी जायेगी 🙏

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