Wednesday 28 June 2017

श्री बाण माताजी चालीसा


◆ ॐ कुलमाताय नमः ◆
◆ ॐ श्री बाण माताय नमः ◆

👉 श्री बाण माताजी चालीस 👈
● दोहा :- 
श्री गुरु चरण नमन कर, लेखिनी निज कर धारी |
बायण मात गुण वरणो, जो दायक फल चारि ||
मंदमति मैं सुत तेरो, अपनाओ माँ मोहि |
सुख शान्ति देऊँ सदा, मैं वन्दन करूँ तोहि ||

★ चौपाई ★
सूर्य वंश क्षत्रिय जग जाना |
गुहिल खाँप तहँ मेरु समाना ||१||
भूप गुहदत्त भये विख्याता |
बाणेश्वरी ताही कुलमाता ||२||
आठवाँ वंशज रावल बप्पा |
मेवाड़ आन शासन थापा ||३||
ताके वंशज लक्ष्मण राणा |
ले लश्कर द्वारिका प्रस्थाना ||४||
पाटण नगर मग मँह आया |
तँह कुमारी सों ब्याह रचाया ||५||
बायण माँ मन्दिर तँह सुहाना |
जोड़ायत संग आया राणा ||६||
वर-वधु ने शीश झुकाया |
बायण माँ ने पुष्प बक्षाया ||७||
सुखद नींद सोया था राणा |
सुखद सपना आया सुहाना ||८||
माता बायण ने फरमाया |
मेवाड़ धाम मो मन भाया ||९||
मोहि ले चलो अपने साथा |
अब पाटण मोहि न सुहाता ||१०||
कर नमन राणा बोला धीमा |
माँ! तेरी पूजा कठिन कामा ||११||
कर न सकूँ मैं पूना तोरी |
यही दुविधा हैं मात मोरी ||१२||
स्वीकार हैं पूजा साधारण |
मेवाड़ मोहि ले चल लक्ष्मण ||१३||
जब जाग्रत भया लक्ष्मण राणा |
निज राणी सों सपन बखाणा ||१४||
बनकर बालिका मात आयी |
मात बाणेश्वरी झलक दिखायी ||१५||
अब मेवाड़ पधारो माता |
भूप ने कहाँ हिया हुलसाता ||१६||
मात प्रतिमा ले भूप आया |
कर दरशण कुल जन हरषाया ||१७||
शिशोदा गाँव महल सुहाना |
तँह मन्दिर बनवाया राणा ||१८||
गढ़ चित्तौड़ महिमा भारी |
जिसकी छटा सबसे न्यारी ||१९||
लक्ष्मण पौत्र हमीर कहाया |
बायण मातहिं भक्त सवाया ||२०||
दुर्ग मँह मात मन्दिर सुहाना |
जिसे बनाया हम्मीर राणा ||२१||
दरशन तांहि लोग नित आवे |
चढ़ा प्रसाद भोग लगावे ||२२||
माँ! क्षत्रियों के कष्ट मिटाओ |
विपदा में भी आन बचाओ ||२३||
जिसके हिये में भली भावना |
उसकी पुरे मात कामना ||२४||
वर-वधु माँ को ढोक लगावे |
माँ! वह जोड़ी सुखी बनावे ||२५||
कर मुंडन शिशु शीश झुकावे |
माँ उसे सदा स्वस्थ बनावे ||२६||
शुद्ध भाव से जो गुण गावे |
दुःख दरिद्र पास नही आवे ||२७||
भोर भए जो पढ़े चालीसा |
उसके घर में रहे न कलेशा ||२८||
शत्रुंहि नाशो बायण माता |
तुम हो तीन लोक सुखदाता ||२९ ||
अमित अपार आपकी महिमा |
हो अनुभव जब आवे सीमा ||३०||
बायण मात नाम जो जापे |
तां सो भूत प्रेत सब कांपे ||३१||
कुलदेवी को कंठ में धारे |
बिगड़े काज सकल सुधारे ||३२||
जा पर कृपा मात की होई |
सकल पदार्थ करतल होई ||३३||
धन्य हुआ जो दर्शन पाया |
मंशा पूरी जिन शीश नवाया ||३४||
माँ की महिमा कही न जाई |
अंधा को सब कुछ दर्शाई ||३५||
निर्धन को धन देती माता |
पुत्र हीन सुंदर सुत पाता ||३६||
तिथि अष्टम चौदस शुक्ल पक्षा |
अवस उपासना करें मात समक्षा ||३७||
जय हो तेरी बायण माता |
पूजा अर्चन मुझे न आता ||३८||
भूल-चूक क्षमा करना माता |
माँ-बेटे का अटूट नाता ||३९||
माँ की चरण शरण सुखदायी |
बड़भागी जन दर्शन पायी ||४०||

★ || दोहा || ★
सम्बत दो हजार सत्तर, नव रात्रि मधुमास |
बायण मात चालीसा, रचा 'अल्पज्ञ' तव दास ||
भूल-चूक कर माफ़, भाव सुमन लें मात |
पूत-कपूत हो जात हैं, मात न होत कुमात ||

🚩 @[306557149512777:]
🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

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