Monday 22 May 2017

श्री बाण माताजी को तिलक किसका लगाए?

श्री बाण माताजी के तिलक किसका लगाए?




अक्सर मैंने कई लोगो को श्री बाण माताजी के कुमकुम या केशर का तिलक लगाते हुए देखा हैं, पूर्ण जानकारी के अभाव में ही यह सब हो रहा हैं।
सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी को चन्दन का तिलक लगाने का विधान हैं, माताजी को चन्दन अर्पण करने का भाव यह हैं कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करें।



पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः|
 सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः||
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका |
 द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम् ||

चंदन हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, सिंधु नदी के तट का, चिंटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का चंदन ही उत्तम चंदन है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी से बना हो तो उत्तम होता हैं।
लेकिन बाणमाता को प्रसन्न करने हेतु उन्हें केवल चन्दन का ही तिलक लगाए। किसी की बातो में न आए एवम् यह अमूल्य जानकारी सभी भक्तों तक पहुँचाने में हमारा योगदान करें शेयर करें!

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Wednesday 17 May 2017

श्री बाण माताजी मन्दिर चित्तौड़गढ़ के भेरू जी

श्री बाण माताजी के द्वारपाल व लाडले बेटे श्री खेतलाजी महाराज


सारंगवास ( नविधाम ) में विराजमान श्री सोनाणा खेतलाजी



श्री बाण माताजी मन्दिर के पूर्व दिशा के मुख्य द्वार पर बटुक भैरव विराजमान हैं मुख पर बालभाव चारभुजा धारण किए खड्ग, त्रिशूल और दंड धारण किए हुए श्वान असवारी हैं। इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
माँ भगवती के सिपाहसलार भैरव ही हैं। शिव का अवतार होने के कारण मां दुर्गा के अत्यंत प्रिय, आदि शक्ति महादेवी दुर्गा, चंडिका, काली गढ़देवी, त्रिपुर सुंदरी, ब्रह्माणी व अम्बा का मंदिर जहां भी होगा वहीं भैरव भी उन्हीं के साथ होते हैं। मान्यता है कि मां की पूजा-अर्चना के उपरांत अगर भैरव की पूजा न की जाए तो मां से भी ये नाराज हो जाते हैं कि आपने अपने भक्त को मेरे बारे में क्यों नहीं बतलाया। जब आदि शक्ति को शिव ने शिव शक्ति से समाहित किया तो उन्होंने ही भैरव को मां के साथ रहने का आदेश दिया इसीलिए  भैरव सदा मां के ही साथ रहते हैं। इनके दर्शन करने से ही मां की पूजा-अर्चना सफल मानी जाती है।
इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है।  रक्तप्रिय दुष्टों का नाश करने के लिए ये युद्धभूमि में सदा उपस्थित रहते हैं। इनको दूध या हलवा अत्यंत प्रिय है इसीलिए भक्तजन इन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं।
इन्हें उग्र देवता माना जाता है मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं। जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हैं। इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं।
भगवान भोलेनाथ ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया है तथा काल भैरव जी अदृश्य रूप में ही पृथ्वी पर काशी नगरी में निवास करते हैं।


बाणमाता मन्दिर में विराजमान भेरू जी 


आप चित्तौड़गढ़ मातेश्वरी श्री बाण माताजी के दर्शनार्थ जब भी पधारे तो खेतलाजी के दर्शन अवश्य पधारे एवम् माजी के जब नारियल/प्रसाद चढ़ाएँ तो एक नारियल/प्रसाद खेतलाजी को भी जरूर चढ़ाए। अगर सुविधा हो तो माँ के दर्शन के पश्चात श्री सोनाणा खेतलाजी ( सारंगवास ) के दर्शनार्थ अवश्य जाना चाहिए।
भेरूजी को तेल-सिंदूर एवम् माळीपना/वागा का श्रृंगार होता है, भेरूजी की राजस्थान में सबसे बड़ी गादी मण्डोर ( जोधपुर ) में हैं उसके पश्चात सोनाणा ( देसूरी ) में हैं।




 पावा घमके घुँघरा, पलके तेल शरीर |
दुःखिया ने सुखिया करें, रंग हो भैरव वीर ||
सोनाणा माहि बिराजिया, मात ब्राह्मणी रा लाल |
भिड़ भगत रे आवजो, रक्षा राखो रखवाल || 

श्री बाण माताजी दोहा-०६

दोहा :-

नमो देवी बाणेशरी सुरभि श्री चित्रकूट राय |
बाणमाता जगतां मातर्षर्मरक्षा परायणे ||



अनुवाद :-

हे देवी! हे बाणेश्वरी माँ! हे सुरभि! हे चित्तौड़गढ़ दुर्ग की स्वामिनी! हे जगत की माता! हे धर्मरक्षा करने वाली बाणमाता हम तुझे नमस्कार करते हैं।

श्री बाण माताजी का प्राचीन कुण्ड

श्री बाण माताजी की बावड़ी....



बावड़ी का निर्माण 7 वीं सदी में बप्पा रावल द्वारा कराया गया था, जब बप्पा रावल को बाणमाता ने स्वप्न में दर्शन देकर बाण फैकने हेतुं आदेश दिया था, वह बाण यही पर आकर गिरा था।
बाण गिरने से इस जगह पर छेद हो गया था एवम् जलधारा प्रवाहित हो चुकी थी, चित्तौड़ विजय के बाद बप्पा ने इस बावड़ी का निर्माण कराया एवम् बाणमाता की पूजा की इस बावड़ी के ठीक सामने भगवती बाण माता का मन्दिर बनाया गया, मान्यता हैं कि मन्दिर में भोग लगाने पर स्वत: ही इस बावड़ी में भोग लगता था। अब यह बावड़ी घरों के बनने पर मन्दिर से स्पष्ट नही दिखती हैं, बावड़ी में भगवान् शिव जी और हनुमान जी का मन्दिर बना हुआ हैं। शिवजी के लिंग के पास ही नन्दी विराजमान् हैं एवम् एक नन्दी मन्दिर के बाहर विराजमान हैं जो खण्डित हैं।
एक किवदन्ती यह भी हैं कि बाणमाता के निज मन्दिर के निचे से एक जलधारा प्रवाहित होती हैं जो सीधा बावड़ी में जाती हैं।
इस बावड़ी का पानी यहां के आस-पास के मन्दिर में सप्लाई होता है।बावड़ी की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी लेकिन चित्तौड़गढ़ बाण माता मन्दिर पुजारी जी के कहने पर अब इसकी सफाई का काम चल रहा हैं एवम् जल्द ही इस बावड़ी का शुद्ध जल मन्दिर के आस-पास के सभी घरों में सप्लाई किया जाएगा।

Tuesday 16 May 2017

श्री बाण माताजी स्तुति दोहा

स्तुति दोहा 






बायण बैठी गढ़ रे माय, धनुष-बाण धारिणी |
प्रतीत प्रित रीत जीत, विघ्नैन विदारिणी ||
मैं मन्द बूंदी मावड़ी, शगति तूँ सुधारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
देवी बड़ी दातार, दोष ने निवारिणी |
बायण ब्रह्मांडा बसै, खासजै उदारिणी ||
बप्पा आई बेल, काज उणरा तूँ सारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
सुर-असुर सेवी सदा, दैत्य कुळ खपाविणि |
कन्यारूप कुमारी, दक्षिण में विराजीणी ||
वर दीजै वरदान, विख्याता वरदायिनी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||
यज्ञ कुण्ड प्रगट, बाणासुर दैत्य मारिणी |
घणी खम्मा कुलमात, चार भुजा धारिणी ||
सदा ने संता रामनि, हिंडोल तूँ हजारिणी |
नमो नमामि मात, सदाजै ब्रह्मचारिणी ||

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Monday 8 May 2017

इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का इतिहास

महाराणाओं की इष्टदेवी अन्नपूर्णा माता :- 




सामन्य अर्थों में कुलदेवी और इष्टदेवी की पूजा अर्चना अलग-अलग रूपों में की जाती हैं। हमारा समाज परम्परावादी हैं, कुल परम्परा को प्रायः समाज के हर वर्ग का हर परिवार मानता हैं, मानता ही नही वरन् परम्परा पर आचरण भी करता हैं। इसीलिए कुलदेवी और इष्टदेवी प्रायः वही होती हैं जिनकी आराधना कुल परम्परा से चलती आ रही हैं, परंतु कभी-कभी ये भिन्न हो जाती हैं, जो अपवाद स्वरुप मानी जाती हैं। जैसे राठौड़ो की परम्परागत कुलदेवी नागणेच्या माताजी हैं परंतु इष्टदेवी के रूप में चामुंडा माताजी को माना जाता हैं, इस बारे में विद्वानों ने कई प्रकार के विश्लेषण किये हैं।
वस्तुतः ये हैं तो देवी के अलग-अलग रूप परंतु परिवार के किसी सदस्य को परिस्थितिवश या घटनावश देवी के कोई रूप विशेस की आराधना करके आशीर्वाद या फल प्राप्ति अथवा कोई विशेष सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं तो देवी के उस रूप के प्रति उसकी विशेष श्रद्धा तथा विशेष विश्वास में दृढ़ता आ जाती हैं और वह उसकी इष्टदेवी हो जाती हैं।
इष्ट तथा अभीष्ट का अर्थ हैं चाहा हुआ मिलना, अतः मनवांछित फल की प्राप्ति जिस देवी की आराधना से होती हैं वही इष्ट देवी हो जाती है।
महाराणाओं की इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का मन्दिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी  मंदिर के समीप बना हुआ हैं। यह मन्दिर महाराणा हमीर सिंह ने 13 वीं शताब्दी में बनवाया था । कमलदल पर विराजित महालक्ष्मी 'गजलक्ष्मी' की यह सुन्दर एवम् विशाल प्रतिमा गुप्तकालिनी स्थापत्य कला की सुंदर धरोहर विरासत धार्मिक आस्था एवम् मान्यता का अनुपम व दर्शनीय स्थल हैं। पूर्वकाल में में इस मन्दिर का नाम महालक्ष्मी मन्दिर था, महाराणा हमीर ने 1326 ईस्वी में इसका जीर्णोद्धार करवाकर अपनी इष्टदेवी के नाम से इसका नामकरण अन्नपूर्णा किया।
राणा हमीरसिंह की अल्लाउद्दीन ख़िलजी के विरुद्ध युद्ध में सहायता करने पर इस मन्दिर का निर्माण करवाया एवम् अपनी इष्टदेवी के रूप में भगवती की आराधना पूजा अर्चना की।



"हमीर सिंह री वार भवानी, आकर हुई तैयार।
मुगलों की सेना को मैया, तूने दिलाई हार ||"


मातेश्वरी कमल के पुष्प पर विराजमान हैं, कमल सरोवर में हैं, चार हाथी हैं जो घड़ो में जल भर का देवी स्नान करवा रहे हैं। दो गण निचे बैठे हैं, एक के पास अक्षय निधि पात्र हैं जो भरा हुआ हैं, दूसरे गण द्वारा निधि उड़ेली जा रही हैं। माताजी के दो हाथ हैं, एक में कमल पुष्प हैं दूसरे में अक्षय निधि, माताजी अन्न-धन्न व् भण्डार भरने वाली महालक्ष्मी स्वरूपा हैं।


जय माँ बायण
जय माँ अन्नपूर्णा

Friday 5 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०५

दोहा :- 

सु प्रसन्न मात बाणेशरी, अविरल आपो उगत्ति |

मया करो महामाय, सानिध करों सगत्ति ||




अनुवाद :- हे माँ बाणेश्वरी! प्रसन्न होकर मुझको भाव व्यक्त करने अथवा चमत्कार पूर्ण अभिव्यक्ति की अटूट शक्ति प्रदान करो, हे महामाय! हे दुर्गा! मुझ पर कृपा करो, मेरी सहायता के लिए सदैव मेरा साथ दो।

🚩  || चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय || 🚩



Wednesday 3 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०४

दोहा :- 

कमलाकरि चढ़ती कला, बायण दो मुझ रिद्ध |

आपो वर मो ईश्वरी, सगती सिद्ध वसु वृद्ध ||


🌹 अनुवाद :-  हे लक्ष्मी! हे गौरी! हे बाणमाता! मुझको धन और ऐश्वर्य दो, हे ईश्वरी! मुझको शक्ति, सिद्धि, धन और उन्नति का वर प्रदान करो|





Monday 1 May 2017

श्री बाण माताजी दोहा ०३

दोहा :- 

सिरि सुर राय सुरिंदा, चतुरंगी चारु गुण चंदा |
बाणासुर संहारिणी, आई वर देऊ वर मुदा ||




अनुवाद :- हे देवी दुर्गा! हे पार्वती! हे तीक्ष्ण बुद्धि सम्पन्न स्वरूपवाली, चंद्रमा के समान उज्ज्वल गुणों वाली, बाणासुर को मारने वाली, हे बाण माता! प्रसन्न होकर मुझको वर दो।

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय 🚩


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