Saturday 30 April 2016

श्री कन्याकुमारी देवी श्री बाण माताजी का अवतार

कन्याकुमारी देवी मंदिर, (Kanyakumari Devi Temple)
द्वापरयुग में क्षत्रियों को सहायता के लिए लिया था माँ पार्वती ने यह रूप , बाण माताजी के नाम से विख्यात है आज राजस्थान , गुजरात में ।
कन्याकुमारी प्वांइट को इंडिया का सबसे निचला हिस्सा माना जा है। यहां समुद्र तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है। यहां मां पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। यह देश में एकमात्र ऐसी जगह है जहां मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरूषों को कमर से ऊपर के क्लॉथ्स उतारने होंगे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,  बाणासुर का वध करने उसका वध शक्ति की ही अंश एक कुँआरी देवी ने किया. इस पर कई प्रचलित कथाएं हैं.
दक्षिण भारत में उन्हें कन्याकुमारी कहा जाता है और उत्तर भारत में सूर्यवंशियों की आराध्य देवी बायण माता. यह कथा भी बहुत प्रचलित है।
इस स्थान पर देवी का विवाह संपन्न न हाे पाने के कारण बचे हुए दाल-चावन बाद में कंकड़-पत्थर बन गए। कहा जाता है इसलिए ही कन्याकुमारी के बीच या रेत में दाल और चावल के रंग-रूप वाले कंकड़ बहुत मिलते हैं। आश्चर्य भरा सवाल तो यह भी है कि ये कंकड़-पत्थर दाल या चावल के आकार जितने ही देखे जा सकते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य : यदि आप मंदिर दर्शन को गए हैं तो यहां सूर्योदय और सूर्यास्त भी देखें। कन्याकुमारी अपने ‘सनराइज’ दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर विश्रामालय की छत पर टूरिस्टों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी यहां है।

Friday 29 April 2016

Shree Brahmani Mataji Temple Kudasan ( Gandhinagar , Gujrat )

श्री बाण माताजी के दोहे

देवी दर्शन देवीया , धन घड़ी धन भाग ।
बायण बारणे आविया , अब तो सेवक जाग ।।
विडारनी देत्य वंश , बाणासुर बायण ब्राह्मणी !
नीवारनी विघ्न अनेक , बप्पा भूप तारणि !!
रण रमता हमीर ने , नजरे आप निहारा ।
भुज मलेच्छ रा भांजिया , आखर आय उबारा ।।
हमीर हठिला राजवी , हिये नित बायण राखे ।
हेलो सुण दौड़ी आवे , फळ भगती रो चाखै ।।
पाटण गढ़ परभात मे , पहुंचे लक्ष्मण दरबारा ।
सपने दरशन देविया , भयो गहिल उजियारा ।।
मलेच्छा रे विरुद्ध में , अजब खेल रचाया ।
अन्न धन रा भण्डार भर् या , बेले बायण आया ।।
आयल क्षत्रियों रे अवतरी , रुद्राणी तू ब्रह्मणी ।
रूद्राक्ष हाथ धारण करि , समद जाय समाणी ।।
झळां हळां झळां हळां , करंत कान कुण्डळा ।
सोळां कळां सम्पूर्ण , भाल है मयंक निरमळा ।।
सोळां कळां सम्पूर्ण , करत कान कुण्डळा ।
भजु बायण भव माय , करो मात मंगळा ।।
चितौड़ गढ़ री धणियाणी , मिळे थारे चरण री धूल ।
प्रसन्न भवानी भेगी रेवजे , माफ किजो सब भूल ।।
भवानीह माँ भगवती , भव्याह भगवत भाण ।
या देवी बायण माँ , सेवा करे नित राण ।।
विध्व करण मंगल करण , भूमि परम् अनूप ।
बायण मम हृदय असो , भूपन की तुम भूप ।।
हमीर सिंह हरदम , बायण भक्तिं में जिव लगाया ।
बायण आय बाह पकड़ी , चित्तौड़ी राज दिलाया ।।
दर्शन सु दुखड़ा मिटे, भागे रोग सब दूर ।
हलकारे हाजर होवे , आवे भवानी समरूप ।।
चित्तौड़ वाळी ने सुमरत , नित लेवा थारो नाम ।
कृपा मोपे राखजो , लुळी लुळी करू प्रणाम ।।
विच गाळा नाळा वहैं , जोवण जाळा जोय ।
मन जंजाळा मेटि दे , बायण रखवाला होय ।।
जगदम्बा जग जोगणी , जाणी देस विदेस ।
ब्रह्मा विष्णु नित नमे , मनावे महेस ।।
जय जय माँ बायण , चित्तोड़ वाळी संकट टार ।
कृपा सूत पर किजियो , माँ उमा रा अवतार ।।
    भूप भड़ भगत सुमरे , भजे है भोले नाथ ।
भक्तिं करू भवानी री , बायण रखो सूत सर हाथ ।।
भज भगत माँ बाण ने , बायण राखी ख़याल ।
जो भजिया माँ बाण ने , वाने किया निहाल ।।
चार भुजा अति शोभती , बेठी चित्तोड़ गढ़ ।
संकट भज बायण सूत के रह्यो , आसी माँ हंस चढ़ ।।
मात धरा पर अवतरया , आणद भयों अपार ।
गुहिलोत मन राजी घणा , परगटो बारम्बार ।।
दुःख हमीर रो दूर हुयो , खुशियां अपरम्पार ।
रण राणा है जितियों , लियों बायण माँ तार ।।
हाथ धनुष-बाण सोवणा , गळ फुला री फूल माळ ।
एक थारो नाम लिया , बायण भागे दूर सब जाळा ।।
मात मनाऊं ब्राह्मणी , राखो छत्तर चाव ।
थूं भूखी प्रेम री , धरु भगती में भाव ।।
बायण मुख यु अखियों , सरस वैण सरसाव ।
हमीर थूं भड़ जितसी , दुठाँ ऊपर डाव ।।
धिन धोरा धिन घाटियां , धिन मेवाड़ी राण ।
बप्पा थूं सत जाणजे , महि थिर रहसि माण ।।
घर-घर बाजै बधावणा , घर-घर मंगलाचार ।
गुड़ धाण लड्डू बटै , मंगल गीत विचार ।।
बायण बेटों देवियों , आणंद भयो अपार ।
असम्भव ने सम्भव करें , खम्मा मात मेवार ।।
नमो नमो मातेश्वरी , नमो नमो जगदम्ब ।
दास जनों के कारणे , बायण करती नही विलम्ब ।। चिड़िया चहकै चाव सूं , कलरव करै किलोळ ।
बायण आया देश में , रमैं मोर रमझोळ ।।
छायों उमंग अजबरों , आंच न आई आण ।
बायण हमीर री सहाय करी , चहु दिस भयो बखाण ।।
जगत भवानी जोगणी , जग री तारणहार ।
बायण बाळक री सहाय करो , दो दुश्मन को मार ।।
आतम आलस पहल तज , ओळख आद विसन्न ।
जै मनोरथ मन करें , सो पुरें बायण ।।
गढ़ में दिसे गूंजती , माँ बायण री जयकार ।
नित नेम ती नाम लिया , दूर होवे अन्धकार ।।
मावड़ी मनाऊ मेवाड़ री , नित उठ लागू पाय ।
दर्शन दुर्लभ थारा ब्राह्मणी , कष्ट सब मिट जाय ।।
जलम जलम रो नातों है , माँ बायण रे साथ ।
इच्छा एक मावड़ी , पकड़्या रहिजे हाथ ।।
भव सूं मांग्या नही मिले , मिलसी एक बार ।
मांगो माता बाण थी , इणरो देसी आ दरबार ।।
सुरसत सुमरिया सदबुद्धि मिले , लक्ष्मी सु धन ।
बायण भज भाई म्हारा , चारों धाम इण चरण ।।
माजी म्हारा मन मोवणा , हिवड़ै हेत अपार ।
बायण बेगा आवजो , म्हारी चित्तोड़ री सरकार ।।
माँ काली रे रूप में , दरश दिया माँ आय ।
लक्ष्मण साथे चालसु , करसु कुल सहाय ।।
चित्तोड़ गढ़ धणियाणी री , महिमा अपार अनन्त ।
देश विदेशा जाणता , मनावे नर नारी अर संत ।।
सुख देणों दुःख मेटणो , माँ बायण रो नाम ।
चरण शरण दे ब्राह्मणी , पुनि पुनि करू प्रणाम ।। चित्तोड़ गढ़ की बाण माँ , अपरम्पार अनन्त ।
भले पधारे भक्त जन , नर नारी अर संत ।।
नर नारी अर संत , ग्यानी जन ज्ञान सुणावै ।
ज्याने बायण करे निहाल , चित्तोड़ दोड़्या आवै ।।
कुल कल्याणी मेवाड़ री , बायण मात हमारी ।
महाराणा मनावता , खम्मा खम्मा कन्या कुमारी ।।
भवन बुहारे पवन थारों ,  इन्दर करे छिडकाव ।
चाँद सूरज ज्योति करे , नाग करे थारे चाव ।।
मोटो कोई न माँ आपसु , आप माँ शक्ति महान ।
ब्रह्मा विष्णु आप मनावे , शिव धरे थारो ध्यान ।।
बाण तू ब्राह्मणी , शक्ति रूप हजार ।
पूजे बामण बाणिया , ध्यावे ओ संसार ।।
सारे संत अर देवता , थारे चरणों रा दास ।
खेतल थारा लाड़ला , हर दम रेवे पास ।।
महामाया जगदम्बिके , जग री पालनहार ।
दुर्गा परम सनातनी , एक थारों आधार ।।
महागौरी वरदायनी , मैया दया निधान ।
भव तारण ब्राह्मणी , करती जग कल्याण ।।
महसिधि महायोगिनी , महामाया बायण मात ।
असुरो री संहारिणी , थारी निराली बात ।।
महिमा थारी गात हैं , सारा वैद पुराण ।
सिसोदिया गहलोत कर रह्या , मायड़ रा गुणगान ।।
बाणासुर एक दैत्य था , पापी नीच शैतान ।
बल पर उणनै आपरे , अति हो अभिमान ।।
संझयों न म्हारी मात ने , वो दुष्ट नादान ।
माँ बायण है मिटावियों , उणरो नामो निशान ।।
सुख दायनी धन दायिनी , बायण थारों नाम ।
महामाया मेवाड़ री , अनेक थारा धाम ।।
ज्योति रूप ज्वाला जगे , माँ थारी निराली शान ।
सूद मन जो सुमरता , वा रो रखती ध्यान ।।
शरणे सब कुछ सोपियो , धन दौलत दरबार ।
काली रूप दरश दिया , कियो लक्ष्मण उद्धार ।।
हमीर भगत रो थे भवानी , खूब बढ़ायो मान ।
रण रजपुतों जितियों , थारों लगाई ध्यान ।।
बायण थाने सुमरिया , सब सुख हैं मैं पाया ।
दुःख म्हारा सब दूर किया ,द्वारे सीस झुकाया ।। काल रूप माँ कलिका , अजब रचाया वेश ।
अस्तु कह रूप उज्ज्वल किया , आई ब्रह्माणी भेष ।।
कुलस्वामिनि गहलोत री , खेतल थारा लाल ।
असुरों पर माँ टूट पड़ी , बण उणरो माँ काल ।।
पाटण गढ़ सूं उड़ हंसौ, मेवाड़ मांही आयौ
मरु री धरती ने देख ,  मन उणरो चकरायौ
जौहर शाका नित हुवे ,  आ धरती अणजाणी
भड़ भगता री बात न पूछौ, लहू बहे ज्यूँ पाणी
गढ़ मोटो मेवाड़ रो ,  अद्भुत किलो निजर आयों
हंसौ उड़ किला में बैठों , माँ बायण रो थान थपायों
मोटी मात भवानी म्हारी , बप्पा लक्ष्मण गुण गावै
पल में दुखड़ा दूर करे , अपार  सुख सरसावै
नर नारी दर्शन ने आवे , राखे माँ चतर छाया
इण देवी री बात न पूछों , मोटी माँ री माया
रोगी भोगी सब आवे , सुखी हो जावे काया
जरणी मात जगदम्बा म्हारी , प्यारी लागै भाया
बेटा ज्यारा खेतल देव , सारंगवास रा निवासी
श्वान सवारी ज्यारे शोभती , महिमा ज्यारि साची
लुटण राज मेवाड़ रों  , दुष्ट ख़िलजी आयौ
भुज भवानी भांजिया , ख़िलजी अति घबरायौ
अन्न धन्न भण्डार भरी , सेवक सहाय आई
सुमरिया पार उतारिया , मातेश्वरी मेवाड़ी माई
अनु उतारे आरती ,  मातेश्वरी थू मतवाळी
महेंद्र मनाया आवजों , मात चित्तोड़ गढ़ वाळी ।

विशेष सुचना :- दोहो में काँट छांट न करें यह दोहे मैंने स्वयं बनाए है ।  ( महेंद्र सिसोदिया )

Saturday 23 April 2016

Shree Brahmani Mataji Temple Punasan ( Gujrat )

Shree Brahmani Mataji Temple Punasan ( Gujrat)

सुख देणों दुःख मेटणो , माँ बायण रो नाम ।
चरण शरण दे ब्राह्मणी , पुनि पुनि करू प्रणाम ।।

Wednesday 20 April 2016

श्री बाण माताजी चित्तोड़ धणियाणि

सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी

मेवाड़ राजवंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं। इन्ही के आशीर्वाद और कृपा से सिसोदिया वंश को निरंतर सफलता प्राप्त होती रही हैं घोर संघर्ष और विपदाओं के बाद भी महाराणाओं ने कभी साहस नही खोया । उनका आत्म विश्वास बनाए रखने में महामाया ने सदा सहायता की है , अरबों और मुग़लो के  आक्रमण के बाद कई राज्य नष्ट हो गए लेकिन देवी के आशीष से यह वंश 7 वीं सदी के प्रारम्भ से आज तक दृढ़ हैं । मातेश्वरी ने इस वंश के जिन राणाओं को चमत्कार दिए उनमे बप्पा रावल , राणा लक्ष्मण सिंह , राणा हमीर सिंह , महाराणा प्रताप सिंह हैं ।

विध्व हरण मंगल करण , भूमि परम् अनूप ।
बायण मम हृदय बसो , भूपन की तुम भूप ।।

(Y) @[306557149512777:]

Monday 18 April 2016

श्री बाण माताजी जिन गोत्रों की कुलदेवी हैं , उनकी सूचि

सुर , संत , शूरवीरों की धरती राजस्थान में देवियों की पूजा का विशेष महत्व हैं । कुल की रक्षा एवम् पालन पोषण करने वाली देवी कुलदेवी कहलाती हैं , हर गोत्र की एक अलग कुलदेवी और कुलदेवता होते हैं , इसी तरह जिन कुलों की कुलदेवी श्री बाण , बायण , ब्राह्मणी माताजी हैं , वे गोत्र हम आपको निचे बता रहे हैं ।

सिसोदिया गहलोत राजपूत जिन खांप की कुलदेवी श्री बाण माताजी वे निचे दिए गए हैं , वैसे तो सिसोदिया या गहलोत कहने पर पता चल जाता है कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी है लेकिन कोई समझने में कठिनाई ना हो इसीलिए मैं आपको सिसोदिया वंश की 24 शाखा और गहलोत वंश की 25 शाखा से अवगत कराता हूँ जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं ।

सीसोदियोँ की 24 खांप है
1 चन्द्रावत
2 लूणावत
3 भाखरोत
4 भंवरोत
5 भूचरोत
6 सलखावत
7 सखरावत
8 चूंडावत
9 मौजावत
10 सारंगदेवोत
11 डूलावत
12 भीमावत
13 भांडावत
14 रुदावत
15 खीँवावत
16 कीतावत
17 सूवावत
18 कुंभावत
19 राणावत
20 शक्तावत
21 कानावत
22 सगरावत मालवा
23 अगरावत
24 पूरावत

24 शाखा गहलोत शिशोद वंश
रावल बापा जी के 25 कुंवर हुए तथा 25 शाखा गहलोत
शिशोद वंश कहलाये !
1. आहाड़ा
2. कुचेरा ( कुछ कुचेरा गहलोत राजपूत स्वयं की कुलदेवी श्री अम्बा भावज मोरप्पा माताजी को बताते है , लेकिन लेकिन उनकी भी कुलदेवी श्री बाण माताजी ही हैं ।
3.  हुल
4. केलवा
5.पिपाडा
6. भीमल
7.  भटेवरा
8.  अजबरिया
9. मंगरोप
10.  आसावत
11.  बिलिया
12. कडेचा
13. मांगलिया
14. ओजाकरा
15. तिकमायत / तबडकिया
16. बेस
17. धुरनिया
18. मुन्दावत
19. डालिया
20.  गोदा
21.  दसाइत
22. तलादरा
23. भूसालिया
24.  जरफा
25. टवाणा

अन्य गोत्र जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी है

अणदा - ब्राह्मणी माताजी - सोनाणा , सारंगवास
आगलुड़ - बाण माताजी - सोनाणा खेतलाजी
अकलेचा - बाण माताजी - सोनाणा खेतलाजी
आडवानी - ब्राह्मणी माताजी
आँजणा - ब्राह्मणी माताजी
उदेश - ब्राह्मणी माताजी
उंटवाड़ - ब्राह्मणी माताजी
ओड़ाणी - ब्राह्मणी माताजी
कलसोणिया - ब्राह्मणी माताजी
करोलीवाल - ब्राह्मणी माताजी
करड़ - ब्राह्मणी माताजी
काबरा - बाण माताजी
कांदलि - ब्राह्मणी माताजी
काला - ब्राह्मणी माताजी
कुण्डल बार - ब्राह्मणी माताजी
केलवा - बाण माताजी
खाटणा - ब्राह्मणी माताजी
गर्ग - ब्राह्मणी माताजी
गदेचा - बाण माताजी
गगराणि - बाण माताजी
गठाणी - बाण माताजी
गहाणि - बाण माताजी
गगलोत भाटी - बाण माताजी
गिलड़ा - बाण माताजी
गोराणा - बाण माताजी
गोदारा - बाण माताजी
गोघात - बाण माताजी
गोसलिया - ब्राह्मणी माताजी ( डीडवाना बामणी )
गोलिया - ब्राह्मणी माताजी
गौतम - बाण माताजी
घोड़ेला - ब्राह्मणी माताजी
चांदेरा - ब्राह्मणी माताजी
चिंचट - ब्राह्मणी माताजी
चित्तौड़ा - बाण माताजी
चेलाणा - ब्राह्मणी माताजी
चोहणिया - ब्राह्मणी माताजी
जाड़ोति - ब्राह्मणी माताजी
जांगला सेवग - ब्राह्मणी माताजी
जागरवाल - ब्राह्मणी माताजी
जोण - ब्राह्मणी माताजी
झुटाणा - बामणी माताजी
टांक - ब्राह्मणी माताजी
डांगी - ब्राह्मणी माताजी
डाबी - ब्राह्मणी माताजी
तरपासा - ब्राह्मणी माताजी
दगड़ावत - ब्राह्मणी माताजी
दधिवाड़िया - ब्राह्मणी माताजी
धनदे - ब्राह्मणी माताजी
नागी - ब्राह्मणी माताजी
नागरिया - ब्राह्मणी माताजी
निवेल - ब्राह्मणी माताजी
परवतीया - ब्राह्मणी माताजी
पलासिया - ब्राह्मणी माताजी
पन्नू - ब्राह्मणी माताजी
पराडिया - ब्राह्मणी माताजी
पालड़ीवाल - ब्राह्मणी माताजी
पाचल - ब्राह्मणी माताजी
पालाच - ब्राह्मणी माताजी
पाटासर - ब्राह्मणी माताजी
पाराशर - ब्राह्मणी माताजी
पेगड़ - ब्राह्मणी माताजी
पोण - ब्राह्मणी माताजी
पोठल्या - बाण माताजी
फोदर - ब्राह्मणी माताजी
बरबड़ - ब्राह्मणी माताजी
बजोच - ब्राह्मणी माताजी
बागाणा - ब्राह्मणी माताजी
बाणिया - ब्राह्मणी माताजी
बामणिया - ब्राह्मणी माताजी
बांकलिया - ब्राह्मणी माताजी
बांभरेचा - ब्राह्मणी माताजी
बारड़ - ब्राह्मणी माताजी
बाबरिया - ब्राह्मणी माताजी
बारड़ा - ब्राह्मणी माताजी
बीजल - ब्राह्मणी माताजी
बोड़ा - ब्राह्मणी माताजी
बोसेता - ब्राह्मणी माताजी
भवरा - बाण माताजी
भायलोत - बाण माताजी
भांड - ब्राह्मणी माताजी
भारद्वाज - ब्राह्मणी माताजी
भिलात - बाण माताजी
भूक - ब्राह्मणी माताजी
भुमलिया - ब्राह्मणी माताजी
भोंडक - बाण माताजी
मंडोवरा - ब्राह्मणी माताजी
मालवी - बाण माताजी
मारोटिया - ब्राह्मणी माताजी
मगड़दिया - बाण माताजी
मारवणिया - ब्राह्मणी माताजी
मांगलिक - बाण माताजी
मिंडा - ब्राह्मणी माताजी
मेरणिया - ब्राह्मणी माताजी
मोचाला - ब्राह्मणी माताजी
राकदी - ब्राह्मणी माताजी
राणे - बाण माताजी
रालड़िया - ब्राह्मणी माताजी
रोहोटिया - ब्राह्मणी माताजी
लवत - ब्राह्मणी माताजी
लायचा - ब्राह्मणी माताजी
लाताड़ - ब्राह्मणी माताजी
लिबड़िया - ब्राह्मणी माताजी
लोलग - ब्राह्मणी माताजी
वड़किया - ब्राह्मणी माताजी
वशिष्ठ - ब्राह्मणी माताजी
विनपाल - ब्राह्मणी माताजी
सखा - ब्राह्मणी माताजी
सवार - बाण माताजी
सकुत - बाण माताजी
सरादरो - ब्राह्मणी माताजी
सेऊआ - ब्राह्मणी माताजी

विशेष सुचना - मित्रों वैसे तो बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी एक ही हैं बस भक्त मातेश्वरी को प्रेम से कभी बाण , बायण तो कभी बामणी , ब्राह्मणी तो कभी बाणेश्वरी माताजी कहते हैं ।
ऊपर दी गयी पोस्ट में आपको हर गौत्र में माँ के दो अलग अलग नामों का प्रयोग किया गया हैं ' बाण माताजी और ब्राह्मणी माताजी '
दिए गए गोत्रों में जिन गोत्रों के पीछे ' बाण माताजी ' लिखा है उनकी कुलदेवी निसंदेह: बाण माताजी चित्तौड़ गढ़ में विराजमान है और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी हैं ।
उन गोत्रों की कुलदेवी का पाट स्थान चित्तौड़ गढ़ और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी ही होंगे ।

जिन गोत्रों के पीछे ब्राह्मणी माताजी लिखा हुआ हैं , उनकी कुलदेवी का पाट स्थान वही होगा जो आपके पूर्वज जिस स्थान पर जाकर उपासना या पूजा किया करते थे या जहाँ से आप पहली बार ज्योत लाए हो ।
उदाहरण के तौर पर सिंगानिया गोत्र की कुलदेवी ब्राह्मणी , बाण माताजी ही हैं और यह गोत्र माताजी के पल्लू धाम से एक बार ज्योत लायी है या इनके पूर्वज इनको आराध्य या कुलदेवी मान कर पल्लू में विराजमान रूप की पूजा करते थे तो आपकी कुलदेवी का पाट स्थान पल्लू ही होगा ।
और अगर दी गयी गोत्रों में अगर उन्हें आज तक पता न लगा हो कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी  हैं ।
अगर इस पोस्ट के माध्यम से पहली बार आपको पता चले कि आपकी कुलदेवी ब्राह्मणी माताजी या बाण माताजी है तो आप मातेश्वरी की ज्योत चित्तौड़ से ला सकते हैं श्री बाण माताजी आपकी अपने कुल का ही मानेगी ।

(Y) @[306557149512777:]

Saturday 16 April 2016

श्री बाण माताजी मंदिर पोमावा

सिसोदिया गहलोत कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी के पोमावा गाँव स्थित नव निर्मित मंदिर की चैत्र नवरात्रि की अष्टमी 14/04/2016 को प्राण प्रतिष्ठा की गयी । जिसमे गाँव के सभी बड़े बुजुर्गो  ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया एवम् मातेश्वरी के जयकारे लगाए ।

जिन भक्तों ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में विशेष भाग लिया उनके नाम
��
मूर्ति स्थापना - श्री भवानी सिंह जी राणावत
तोरण - श्री वने सिंह जी राणावत
मोबण - श्री गोविन्द सिंह जी राणावत
मुख्य हवन - श्री अमर सिंह जी राणावत
कलश ( इंडा ) - ठाकुर साहब श्री उम्मेद सिंह जी राणावत
प्रथम आरती - ठाकुर साहब श्री खुमाण सिंह जी राणावत
ध्वजा - श्री वीरेंदर सिंह जी राणावत

मंदिर में हुयी प्राण प्रतिष्ठा के कुछ सुनहरे पल जो श्री गोपाल सिंह जी राणावत द्वारा हमे भेजी गयी कुछ तस्वीरें और मातेश्वरी दर्शन

बायण माता ब्राह्मणी , नित उठ थाने ध्यावा ।
प्राण प्रतिष्ठा ह्म हुयी , राणावत गाँव पोमावा ।।

माजी म्हारा मन मोवणा , हिवड़ै हेत अपार ।
बायण बेगा आवजो , म्हारी चित्तोड़ री सरकार ।।

और भी ऐसे ही श्री बाण माताजी के नए नए मंदिरों की जानकारी , दोहे , स्तुति एवम् मातेश्वरी के इतिहास के बारें में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे फेसबुक पेज से जुड़े
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जय हो श्री बाण मैया की जय हो श्री सोनाणा खेतलाजी की जय हो श्री एकलिंग नाथ जी की

Tuesday 12 April 2016

जय माँ बायण

पाटण गढ़ सूं उड़ हंसौ, मेवाड़ मांही आयौ
मरु री धरती ने देख ,  मन उणरो चकरायौ

जौहर शाका नित हुवे ,  आ धरती अणजाणी
भड़ भगता री बात न पूछौ, लहू बहे ज्यूँ पाणी

गढ़ मोटो मेवाड़ रो ,  अद्भुत किलो निजर आयों
हंसौ उड़ किला में बैठों , माँ बायण रो थान थपायों

मोटी मात भवानी म्हारी , बप्पा लक्ष्मण गुण गावै
पल में दुखड़ा दूर करे , अपार  सुख सरसावै

नर नारी दर्शन ने आवे , राखे माँ चतर छाया
इण देवी री बात न पूछों , मोटी माँ री माया

रोगी भोगी सब आवे , सुखी हो जावे काया
जरणी मात जगदम्बा म्हारी , प्यारी लागै भाया

बेटा ज्यारा खेतल देव , सारंगवास रा निवासी
श्वान सवारी ज्यारे शोभती , महिमा ज्यारि साची

लुटण राज मेवाड़ रों  , दुष्ट ख़िलजी आयौ
भुज भवानी भांजिया , ख़िलजी अति घबरायौ

अन्न धन्न भण्डार भरी , सेवक सहाय आई
सुमरिया पार उतारिया , मातेश्वरी मेवाड़ी माई

अनु उतारे आरती ,  मातेश्वरी थू मतवाळी
महेंद्र मनाया आवजों , मात चित्तोड़ गढ़ वाळी ।

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