Wednesday 21 September 2016

श्री बायण माताजी मंदिर चित्तौड़गढ़ ( पाट स्थान की महिमा )

परम सिद्ध मन्दिर जहाँ दुर्भाग्य की मार से तड़पते भक्त के सभी दुखों को भस्म करने के लिए चरम सत्ता ईश्वर साक्षात निवास करते है  ।

भक्त दुःख से छटपटायेगा, तो चित्तौड़ वाली माँ बेचैन हो उठेगी

ममता की सागर माँ दुर्गा जहाँ प्रत्यक्ष रूप से वास करती हैं उस पवित्र धाम का नाम है चित्तौड़ धाम ! पूरे भारत से देवी के भक्त यहाँ पर अपनी बिगड़ी बनाने के लिए हजारों की संख्या में रोज पहुचते हैं और नवरात्रि में तो पुरे दुर्ग का कोना कोना देवी के हजारों भक्तों की जयकारों से भरी गर्जना से उद्घोषित हो उठता है !
उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह
अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव, राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल ह्मवेल आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त इसका दुर्ग लगभग ३ मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसे इस किले में श्री बाण माताजी के दर्शन करने जाते हैं।
महावीर बप्पा रावल , रावल खुमाण , राणा लक्ष्मण सिंह , राणा हमीर सिंह और महाराणा प्रताप को वरदान देने वाली देवी का यह मंदिर बहुत जागृत और चमत्कारिक माना जाता है , कहते हैं आरती के समय इस मंदिर में यहां लगे त्रिशूलों अपने आप हिलने लगते है  ।
बाण माताजी का मतलब आज से 1300 साल पूर्व बप्पा रावल के बाण पर बैठ कर माताजी ने वर देकर बप्पा रावल को चित्तौड़ का राज दिया था , बाण माताजी के आदेशानुसार बाण फेका गया , बाण जहाँ गिरा वहां आज मंदिर बना हुआ हैं , बाण फेकने से बाण माताजी ( बाणेश्वरी माँ ) कहलाए । इन्हें बाण , बायण , ब्रह्माणी माताजी भी कहते हैं इस संदर्भ में एक दोहा प्रचलित हैं :-
बाण तूं ही ब्राह्मणी , बायण सु विख्यात ।
सुर संत सुमरे सदा , सिसोदिया कुलमात ।।

चित्तौड़गढ़ जंक्शन से करीब 2 मिल की दुरी पर त्रिकुट पहाड़ी पर बने दुर्ग में श्री बाण माताजी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही श्री बाण माताजी का बप्पा रावल द्वारा निर्मित मंदिर है |

बप्पा रावल ने माँ की भक्ति कर प्रसन्न किया था , प्रकट होकर माँ ने बप्पा रावल को आशीर्वाद दे व् हमेशा गुहिलोत वंश की रक्षा का वचन दिया था , मेवाड़ के राजा भले ही एकलिंग जी प्रभु हैं लेकिन किले की धनियाणी तो  बाण माताजी ही हैं आज भी यहां के स्थानीय लोग इन्हें ' चित्तौड़ री देवी या किले री देवी ' के नाम से जानते हैं ।
श्री बाण माताजी की सूंदर प्रतिमा चित्तौड़ दुर्ग में विराजमान हैं मावड़ी ने चार भुजा और हंस की असवारी धारण किए हुए हैं ।
बाणमाता पूर्ण सात्विक और पवित्र देवी हैं जो तामसिक और कामसिक सभी तत्वों से दूर हैं। माँ पार्वती जी का ही अवतार होने के बावजूद बाण माता अविवाहित देवी हैं। तथापरा-शक्ति देवी माँ दुर्गा का अंश एक योगिनी अवतारी देवी होने के बावजूत भी बायण माता तामसिक तत्वों से भी दूर हैं अर्थात इनके काली-चामुंडा माता की तरह बलिदान भी नहीं चढ़ता हैं ।
श्री बाण माताजी ने अलग अलग समय में अनेकों चमत्कार भक्तों को दिए हैं और आज चित्तौड़ में बैठी किले की धनियाणी के हजारों भक्त दूर-दूर से दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं , अपनी शरण में आये की मातेश्वरी हमेशा सहायता करती हैं कष्ट हरती हैं ।

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चित्तौड़ री देवी तेरी सदा ही जय

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