श्री बाण माताजी प्रतापगढ़ ( मेवाड़ )
भक्तों जैसा कि आप जानतें हैं , महामाया श्री बाण माताजी की लीला अपरम्पार हैं .......इनका बखाण जितना करें उतना कम हैं |
माँ बायण अलग - अलग समय में अपने अलग - अलग रूपों से विख्यात हुये है ।
द्वापरयुग में बाणासुर दैत्य का वध करने और धरती को उसकें अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए बाण मैया ने हाथों में धनुष - बाण धारण कर एक छोटी कन्या के रूप में यज्ञ कुण्ड से क्षत्रियों की आराधना पर पधारें थे ।
मैया का मुख अति अद्भुत था , जिसे अगर एक बार देखे तो देखते ही रहें । बाणासुर के वध के बाद माँ बायण दक्षिण में " कन्या कुमारी " में जा बसे । कन्या कुमारी भी बाण मैया के नाम से पड़ा हैं , बाण मैया का पालन पोषण एक ब्राह्मण ने किया था और नाम " कुमारी " रखा ।
आज भी दक्षिण में बाण मैया को " कुमारी अम्मा " के नाम से लोग पूजते हैं , मंदिर समुद्र के बिच में स्थित है ।
उसके बाद दुसरा अवतार दुर्गासप्तशती के अनुसार बाण मैया ने नो बहनों के साथ लिया था , उस अवतार में माँ बायण ने अपनी असवारी हंस को बनाया और चार भुजा धारण कर हाथों में कर कमंडल और वैद लिए । इस रूप की पूजा ख़ास कर गुजरात में की जाने लगी और ब्राह्मणी माता के नाम से विख्यात हुए , गुजरात के पाटण के सोलंकियों की कुलदेवी भी ब्राह्मणी माताजी है । कई जगह गुजरात में चौहान भी ब्राह्मणी माता को मानते है , इस बात का प्रमाण आपको पाटण स्थित मंदिर में मिल जाएगा ।
दुर्गा सप्तशति के अनुसार देवियो में " कुमारी " ( श्री बायण माताजी का दक्षिण में विराजमान रूप ) सर्वपूजनिय है , सबसे पहले इन्ही का नाम लिया जाता हैं । कुमारी ( श्री बाण माताजी ) का स्थान माता लक्ष्मी , सरस्वती और काली माँ के बराबर है ।
माँ बायण के अनेकों अवतारों में अलग अलग रूप में प्रकट हुए और भक्तों के दुःख दूर किये ।
ठीक इसी तरह बाण मैया ने प्रतापगढ़ में घोड़े की असवार कर अपने भक्तों के दुःख दूर करते है , जी हाँ हम बात कर रहे हैं मेवाड़ के प्रतापगढ़ की जहाँ पर श्री बाण माताजी ने हंस की जगह घोड़े पर असवार होकर बीराजमान है । इसके अलावा मेवाड़ के केलवाडा गाँव में भी श्री बायण माताजी की घोड़े पर असवारी है , केलवाडा स्थित मंदिर माँ बायण के लाड़ले भक्त महाराणा हमीर सिंह जी ने बनाया था , माँ बायण के आशीष से ही हमीर सिंह ने पुनः मेवाड़ पर अधिकार किया था ।
प्रतापगढ़ में आज माँ बायण की घोड़े पर असवारी वाले मंदिर में हजारो भक्त आते है और अपने मनवांछित वर पाते है , निर्धन को माया , कोडे को काया , बाँझ को बेटा , अंधे को आँखे देती है ।
जो भी इसके दरबार में सच्चे मन से हाजरी लगाता है उसकी नाव कभी नही डोलती स्वयं बाण माँ उसके नाव की पतवार बन कर उसके जीवन को पार लगाती है । मेवाड़ की धनियाणि महामाया श्री बाण माताजी की लीला अपरम्पार है ,
महामाया श्री बाण माताजी आपकी सदा ही जय हो
धिन धरती मेवाड़ री , धिन धिन प्रताप गढ़ देश ।
बायण आप पधारिया , जबर घोड़ा पर बैश ।।
जय माँ बायण जय एकलिंग जी जय खेतलाजी
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