Wednesday 7 October 2015

श्री बाण माताजी के परम् भक्त राणा लक्ष्मण सिंह

महामाया श्री बाण माताजी " चित्तौड़गढ़ राय "
माँ बायण के भक्तों में  बप्पा रावल ( काल भोज ) के बाद माँ के परम् भक्त शिशोदा के ठाकुर राणा लक्ष्मण सिंह हुए । जिन्होंने अपनी श्रद्धा और भक्ति से माँ के दर्शन स्वप्न में किये , और शिशोदा स्थित मंदिर बनाया ।
शूरवीरों , भक्तों , दानवीरों की धरती मेवाड़ धरा जग विख्यात है , बप्पा रावल के वंश में रावल कर्ण सिंह हुए जिनके दो पुत्र हुए बड़े पुत्र खेमसिंह को मेवाड़ की राजधानी चित्रकूट की गद्दी मिली और छोटे पुत्र राहप ने राव रोहितास्व  नामक भील को मार कर उससे शिशोदा की जागीर ले ली , मालवा के मोकल पडियार को हरा कर उसकी राणा पदवी छीन ली ।
राहप ने राणा की पदवी धारण कर शिशोदा की जागीर संभाली ,
राहप
द्धारा ही मेर बस्ती में भगवान भोलनाथ के मन्दिर
की स्थापना की जो वर्तमान में सरसल महादेव के नाम से
प्रख्यात है।
रावल कर्ण सिंह के दो पुत्र हुए बड़े खेम सिंह को चित्तोड़ की गद्दी मिली और राहप ने राणा की पदवी धारण कर शिशोदा पर राज किया , राणा राहप की 12 वीं पीढ़ी में " राणा लक्ष्मण सिंह " हुए ,
जो अत्यंत ही शूरवीर थे ।
एक बार " राणा लक्ष्मण सिंह " द्वारिका यात्रा पर निकले रास्ते में पाटण रात्रि विश्राम के लिए रुके , उस समय पाटण के सोलंकी राजपुत राजा ने अपनी पुत्री राजकुमारी का स्वयंवर रचाया था जिसमे कच्छ के विशाल सिंगा भैंसे को मारना था .
लेकिन यह कार्य कोई नही कर पाया ।
राणा लक्ष्मण सिंह को इस बात का पता चलते ही उन्होंने इष्टदेव प्रभु श्री एकलिंग जी का नाम ले उस कच्छ के विशाल सिंगा भैंसे की बलि दे दी ( मार दीया ) ।
शिशोद वंशावली और टोकरा  बड़वा की पोथी से यह उल्लेख मिलता है , जब " राणा लक्ष्मण सिंह " ने विशाल सिंगा भैंसे की बलि देने के संदर्भ में ये छंद दृष्टव्य है :-

" गढ़ पाटण गुजरात , जटे करे राज सोलंकी ।
पाडा उपर बही शिशोद , बिजल बल बंकी ।।

सीस सिंग खुर कटिया , कवर कामण बखाण ।
वाही तेग शिशोद , जटको जग जाहर जाण ।। "

इससे प्रसन्न होकर भटियाणी रानी ने अपनी पुत्री का विवाह राणा लक्ष्मण सिंह से करवा दिया , उस रात विवाह करने के पश्चात राणा पाटण में ही रुके । रात को स्वप्न में सोलंकियों की कुलदेवी श्री ब्राह्मणी माताजी ने माँ काली के रूप में स्वप्न में दर्शन देकर " राणा लक्ष्मण सिंह " को मेवाड़ साथ चलने को कहा , राणा मान गए लेकिन माँ से कहा " कि आप मेवाड़ चलिए लेकिन आपको मेवाड़ में बलि नही दी जायेगी आपको मिठा भोग स्वीकार करना पडेगा " एसा कहते ही माँ ने अपना रूप उज्ज्वल किया और मीठा भोग स्वीकार किया ।
प्रभात में " राणा लक्ष्मण सिंह " ने राजकुमारी के साथ सोलंकियों की कुलदेवी माँ ब्राह्मणी की एक छोटी सी प्रतिमा के साथ मेवाड़ को रवाना हुए ।
सोलंकियों ने अपनी कुलदेवी माँ बायण के चुंदरी और गहनों को एक पेटी में रख कर " राणा लक्ष्मण सिंह " को सौप दी , राणा लक्ष्मण सिंह ने शिशोदा में माँ बायण का मंदिर बना अपनी कुलदेवी के रूप में नित्य पूजा अर्चना की ।
आज भी पाटण के सोलंकी राजपूत अपनी कुलदेवी श्री ब्राह्मणी  ( बायण ) माता को मानते है गुजरात के पाटण में ब्राह्मणी माता का भव्य मंदिर भी है ।
माँ बायण ने सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी बन कर हमेशा मेवाड़ की रक्षा करती आई है , हजारो आक्रमणो और उथल पुथल के बाद भी माँ बायण और एकलिंग जी के आशीर्वाद से मेवाड़ सिसोदिया गहलोत वंश का यह दीपक जलता रहा है ।

आप सभी माँ बायण के लाड़ले भक्तों से निवेदन कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर कर माँ के भक्तो तक इस पोस्ट को पहुचाये ताकि माँ के इतिहास से उनके जो भक्त अनभिग्य है उन्हें भी माँ की लीला से अवगत कराए ।

प्राणी जय माँ बायण जय माँ बायण जप रै
थारा पाप जावै सब कट रै .........

जय माँ बायण जय एकलिंग जी
(Y) @[306557149512777:]

No comments:

Post a Comment

Featured post

कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी का संक्षिप्त इतिहास

सोनाणा खेतलाजी का सक्षिप्त इतिहास- भक्तों चैत्र की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि हैं वैसे तो पुरे भारत वर्ष में आज से नवरात्रि शुरू होंगे लेकिन ...