Wednesday 7 October 2015

Ban Mataji History

सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी
मित्रो आज तक हमने इस ( @[306557149512777:]  पेज के माध्यम से माँ बायण की स्तुति,दोहे,भजन,माँ की छवि और मातेश्वरी का इतिहास आप तक पहुंचाते आए है , इन ग़त वर्षो में माँ की कृपा हुई और माँ के पुत्रो को उनकी कुलदेवी का पता चलने लगा है । आज माँ बायण के दरबार में लाखों भक्त आते है और अपने मन की मुरादें पाते है , इस पेज का असली उद्देश्य ही माँ के भक्तों को जागरूक करना और माँ की लीला से परिचित करना है ।
आज लगभग हर सिसोदिया गहलोत वंश के लोगो को पता चल गया है की उनकी
कुलदेवी महामाया मातेश्वरी श्री बाण माताजी है ।
माँ बायण का मुख्य मंदिर वीरों की तीर्थ स्थली जिसका बखाण इस विश्व में जहाँ देवता भी अवतार लेने के लिए तरसते है चित्तोड़ गढ़ है , चित्तोड़ गढ़ पर अधिकार करने और वहाँ अपने वंश स्थापना करने का हुकम माँ बायण ने अपने परम् भक्त

बप्पा रावल !!
पंथ प्रवर्तक दिग्विजयी बप्पा रावल
जिन पुण्य नामों के स्मरण मात्र से रक्त में ज्वार आ जाता है,
सिर जिनकी स्मृति में श्रद्धा से झुक जाता है,
ऐसे अनेक प्रातः स्मरणीय नामों में से एक नाम है
बप्पा रावल !
१४००, चौदह सौ वर्षों तक देश
की रक्षा का कीर्तिमान स्थापित करने वाले
महान् मेवाड़ वंश के आदिपुरुष
बप्पा रावल का नाम लिखने मात्र से लेखनी धन्य
हो जाती है !
जिह्वा पवित्र हो जाती है !
हृदय अमरता के उल्लास से भर जाता है
और भुजाएं फड़कने लगतीं हैं ! ऐसे महान प्रतापी काल भोज बप्पा रावल
को स्वप्न में आकर माँ ने दर्शन दिए और अपनी पूजा और आराधना करने को कहाँ , तब बप्पा बोले माँ मै आपका भक्त हु लेकिन मेरा कोई राज्य नही है , माँ बायण रूप दिखने में चाहे भयानक हो परंतु जो इसकी भक्ति में पागल होकर इसका गुणगान करता है , उसकी आराधना माँ जल्दी ही स्वीकार लेती है " माँ अपने पुत्र कि अरदास को सुन प्रसन्न हुए और कहा "
बप्पा प्रभात बैला में धनुष से बाण फैको को वह बाण जहां गिरे वहा अपना राज बसाओ और राज करो , बप्पा ने माँ बायण के आदेसानुसार सुबह माँ का नाम लेकर बाण छोड़ दिया......और वह बाण जाकर चित्तोड़ गढ़ में गिरा , उस समय चित्तोड़ पर मान मौर्य का शासन था । मान मौर्य बप्पा रावल के मामा लगते थे बप्पा ने अपने मामा मान मौर्य ( परमार ) को हरा कर चित्तोड़ पर अपना अधिकार किया और गहलोत वंश के चित्तोड़ पर संस्थापक बने । जहाँ वह बाण गिरा वहा माँ बायण का मंदिर बनाया , और बाण गिरने से बाण माता कहलाये । मित्रो आपकी जानकारी के लिए बता दे कि भारत वर्ष पर कई हमले हुए कई बड़ी बड़ी रियासते गई , कई वंश खत्म हो गए अरबो के आक्रमण से कइयों ने अपना धर्म परिवर्तन कर दिया लेकिन यह एक भारत वर्ष का एकमात्र ऐसा वंश है जो कई उतार चढ़ाव के बाद भी माँ बायण द्वारा वरदान् में दिए गए गढ़ चित्तोड़ को खोने नही दिया ......वरना आप कल्पना कीजिये कि कई बार मेवाड़ का यह दुर्ग कई बार हाथ से जाने के बाद भी फिर से इसी वंश का अधिकार रहा, जब ख़िलजी के आक्रमण के बाद माता रानी पद्मिनी ने हजारो क्षत्राणियों के साथ जौहर किया और शूरवीर राजपूतों ने केसरिया धारण कर शाका किया ख़िलजी की सेना अधिक होने के कारण मेवाड़ के वीरों को पराजय का सामना करना पड़ा , इसके बाद चित्तोड़ पर ख़िलजी का अधिकार हो गया
इसी वंश के शूरवीर महाराणा हमीर सिंह  ने माँ बायण से आराधना कर माँ से सभी गहलोत/गुहिलोत राजपूतों को एकत्र और चित्तोड़ पर फिर से गहलोत वंश का ध्वज लहराए , ऐसी सहायता मांगी और अपनी आस्था का केंद्र शिशोदा को न रख कर केलवाडा को रखा एवम् वहा महामाया मातेश्वरी श्री बाण माताजी का मंदिर बनाया ..........��
माँ अपने भक्तों की पुकार जल्दी ही सुन लेती है , माँ बायण के आशिस से चित्तोड़ पर पुनः गुहिल वंश का अधिकार हो गया और ख़िलजी को पराजय हुई उसे अपनी जान बचा कर भागना पड़ा ।
ऐसी है मेरी महामाया मातेश्वरी श्री बाण माताजी की महिमा

राजा गुहिल के बाद 33 वी पीढी मे रावल कर्णसिंह हुए उस
समय शिशोदा पर राव रोहितास्व भील का राज हुआ
करता था। राहप ने रोहितास्व को पराजित कर
अपना आधिपत्य जमाया। उसके बाद राहप ने मालवा के
मोकल पडिहार को पराजित कर उसकी राणा की पदवी छिन
ली इसीके पश्चात शिशोदा के शासक के साथ राणा शब्द
जुडा एवं कालान्तर में हमीर के चित्तोड पर कब्जा करने के
पश्चात मेवाड के शासक महाराणा कहयाये।
रावल कर्णसिंह के दौ पुत्र हुए बडे पुत्र खेमसिंह ने चित्तौड
की राजधानी चित्रकुट तथा छोटे पुत्र के वंशज राणा की
पदवी पाकर शिशोदा की जागीर प्राप्त की।
राणा राहप के 12 वी पीढी में लक्ष्मण सिंह हुए , लक्ष्मण सिंह शूरवीर राजपूत थे ।
एक समय राणा लक्ष्मण सिंह जी द्वारिका यात्रा के लिए रवाना हुए।
रास्ते में रात होने पर राणा लक्ष्मण सिंह जी ने रात्रि विश्राम के लिए पाटण  सिद्धपुर के सोलंकी राजपूत राजा के यहां रुके । सोलंकी राजा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर रचाया लेकिन उस स्वयम्वर आखेट  को कोई भी राजा जित नही पाया तभी सोलंकी राजा दुखी हुए और कहने लगे , कि इस धरती पर ऐसा कोई शूरवीर नही है जो इस आखेट को जीत सके ।
तभी लक्ष्मण सिंह ने यह आखेट जीतकर सोलंकी राजा की पुत्री से विवाह करने का वचन दिया .........।
राणा लक्ष्मण सिंह आखेट खेलने हेतु जंगल में पधारे और माँ ब्राह्मणी की कृपा से जो आखेट कोई नही जित सका वह आखेट राणा लक्ष्मण सिंह पहले बाण में ही विजय हो गए । आखेट जीत कर राणा ने सिद्धपुर की राजकुमारी से विवाह किया और एक रात व्ही रुके ।
उससे पूर्व बाण माताजी/कुमारी अम्मा का एक रूप ब्रह्माणि माताजी गुजरात के गिरनार में विराजमान थे , ब्रह्माणि माता नौ देवियो के साथ प्रकट हुए
जिनमे  नाराष्मी ( Narashmi ), वैष्णवी ( Vaishnavi ) , कुमारी ( Kumari ) , महेश्वरी ( Maheshvari ) , ब्रह्माणि ( Brahmani ), गायत्री (Gayatri ), वाराही (Varahi), ऐन्द्री ( Aindri ) , चामुंडा ( Chamunda/Kali) , अम्बिका ( Ambika ) माता थी । इनमे से ब्राह्मणी माता ने हंस की सवारी श्वेत वस्त्र चारभुजा धारी  हाथो में वैद , कमंडल और माला है ।
सिद्धपुर की सोलंकी राजकुमारी माँ ब्राह्मणी की परम् भक्त थी और वह माँ की एक मूर्ती की पूजा किया करती थी ।
यह लीला भी माँ बायण का ही था इन दोनों के विवाह कराने में ।
काली माँ  के रूप में राणा लक्ष्मण सिंह को स्वप्न में दर्शन देकर कहा " पुत्र मैं तेरे साथ तेरे राज्य मेवाड़ चलूंगी और तेरे वंश कुंलदेवी बन तेरे वंश और राज्य की रक्षा करुँगी
राणा लक्ष्मण सिंह माँ की बात तो मान गए लेकिन एक शर्त रखी कि माँ आप को मैं अपने साथ ले जाऊंगा आपकी नित पूजा अर्चना करूँगा लेकिन माँ वहा आपको बली नही चढ़ेगी , आपको मीठा भोग चढाया जायेगा । माँ अपने भक्तो की बात को कैसे टाल सकती है और माँ ने मीठा भोग स्वीकार कर अपने असली रूप को उज्ज्वल किया और राणा लक्ष्मण सिंह और सिद्धपुर की सोलंकिनी रानी के साथ एक मूर्ती के साथ शिशोदा पधारे । शिशोदा में माँ बायण का  मंदिर राणा लक्ष्मण सिंह ने बनाया और अपनी कुलदेवी के रूप मे पूजा की ।
जब जब अपने किसी भक्त पर संकट आया है , तब तब माँ स्वयं अपने भक्त की रक्षा हेतु पधारे है  ।
ऐसे ही द्वापर युग में जब राक्षस राज बाणासुर का अत्याचार बढ़ गया , उसके अत्याचारो से तीनो लोको में अँधियारा छा गया , और उसके अत्याचारों से दुखी होकर सूर्यवंशी क्षत्रियो ने माँ भगवती को सहायता हेतु पधारने के लिए माँ का यज्ञ कराया ।
सूर्यवंशी क्षत्रिय उस समय गहलोत राजपूतों के वंशज ही थे ......
अपने भक्तों को संकट में देख माँ से रहा नही गया और माँ पार्वती यज्ञ से एक छोटी सी कन्या के रूप में प्रकट हुए , माँ भगवती ने अपने पुत्रो को एक वरदान मांगने को कहा , जिसमे सभी क्षत्रियो ने माँ से बाणासुर दैत्य का संहार करने को कहा ......माँ ने राजपूतों को वचन दिया की मैं स्वयं उस दैत्य का संहार करुँगी ।
तब माँ कन्या रूप में एक बाँझ ब्राह्मण को मिले जिसने माँ को बहुत लाड़ प्यार से पालन पोषण किया और माँ का नाम कुमारी रखा ।
कुछ समय बाद माँ ने बाणासुर के अत्याचार बढ़ते देख उसका वध कर दिया और माँ जाकर दक्षिण में बिराज गए , वहा पर माँ कुमारी अम्मा से प्रसिद्ध हुए , कन्या कुमारी भी माँ बायण के नाम से ही पड़ा है । आज एक समुद्र के बिच कन्या कुमारी में माँ बायण का भव्य मंदिर बना हुआ है , लाखों की सँख्या में भक्त आते है और माँ अपने भक्तो की पुकार सुन मन इच्छा का वरदान देती है । ।मेरी महामाया मातेश्वरी श्री बायण माता की जितनी भी महिमा करू उतनी कम है ।
ऐसे तो मेरी माँ बायण के कई चमत्कार है जैसे चित्तोड़ गढ़ मंदिर में आज भी आरती के समय त्रिशूलों का हिलना भी एक चमत्कार ही है ।
चित्तोड़ गढ़ पर ख़िलजी को माँ बायण के आशीर्वाद से हरा कर पुनः अधिकार करने के कुछ समय बाद ख़िलजी ने बदला लेने की सोची और वह अपनी विशाल फौज लेकर चित्तोड़ की ओर रवाना हो गया और पहुचते ही ख़िलजी ने किले को घेर घेराबंदी करवा दी । अब दुर्ग में नाही तो कोई प्रवेश कर सकता था नाही अंदर से कोई बाहर जा सकता था , ऐसे ही छः मास गुजर गए अब किले में अन्न धन की कमी आने लगी और राणा हमीर सिंह को एक विकट स्थिति का सामना करना पड़ा । एक तरफ निर्दोष जनता जो अगर द्वार खोल दे तो मेवाड़ की सेना कम होने से निर्दोष मारी जाने का भय और एक तरफ अपने क्षात्र धर्म के खिलाफ द्वार खड़े शत्रु को ऐसे ही जाने देना ।
राणा पर विकट परिस्तिथि आ गई , राणा हमीर सिंह जठ से उठे अपनी कुलदेवी महामाया मातेश्वरी श्री बा माताजी के मंदिर गए और माँ को मार्ग बताने और इस विकट परिस्थिति से कोई हल बताने को कहा ........।
अपने लाले की विनती सुन माँ बायण राणा हमीर से कहा सेवक तू क्यूँ चिंता करता है , तेरे साथ तेरी माँ है, इतना कहते ही हमीर सिंह के मुँह एक ख़ुशी की लहर आ गई वह मुरजाय चेहरा खिल उठा , मानो जैसे कोई आदमी प्यास से मर रहा हो उसे आखरी क्षण में तालाब मिला हो ।
हमीर सिंह  माँ के आगे झुके और माँ को प्रणाम किया , और चित्तोड़ धनियाणि मुस्कुरा कर बोले " बोल बेटा तुझे क्या चाहिए? मुझे आज तूने किस वजह से याद किया , हमीर सिंह माँ बायण की तरफ देख कर बोले " माँ तू जग धनियाणि , चित्तोड़ गढ़ कल्याणी , असुर संहारिणी
भक्त उबारिणी , सब के घट घट की जाणी तुझसे क्या चुपा ।
माँ बायण बेटा जाओ युद्ध करो , मैं तुम्हारे साथ हु ....तेरे दरबार के अन्न धन के भण्डार भर जायेंगे और युद्ध में मैं तेरे साथ दुश्मनो का संहार करूंगी और इतना कहते ही माँ बायण विलोप हो गए ।
राणा ने माँ की आज्ञा मानते ही युद्ध की तैयारी की , अपनी फौज के साथ ही किले के द्वार खोल दुश्मन की फौज को हर हर महादेव जय एकलिंग जी के नारों के साथ ललकारा , युद्ध भयंकर हुआ ......... हाथी घोड़े कटने लगे पानी की जगह लहू से धरती अपनी प्यास बुझाने लगी ।
मेवाड़ की सेना कम होने के कारण ख़िलजी की विशाल फौज मेवाड़ की सेना पर भारी पड़ने लगी तभी हमीर सिंह ने माँ बायण को पुकार ..............
" माँ "
और माँ अपने पुत्र की पुकार सुन हंस चढ़ हाथों में धनुष बाण धारण कर पधारे
माँ के चमत्कार से किले के सभी अन्न धन के भण्डार भर गए और माँ की कृपा से ख़िलजी की फौज पर मेवाड़ी सेना भारी पड़ने लगी , अल्लाउद्दीन ख़िलजी को अपनी सेना सहित जान बचा कर वापस भागना पड़ा । इसके बाद उसने कभी मेवाड़ पर आक्रमण नही किया , माँ बायण एन वक्त पर पधार कर अपने भक्त की लाज बचाई , महाराणा हमीर सिंह युद्ध विजय हुए ।
इसके बाद राणा ने माँ बायण के द्वारा अन्न धन की कमी पूर्ण करने और युद्ध सहायता करने के लिए माँ बायण के मंदिर के ठीक पास अन्नपूर्णा माताजी का मंदिर बनाया और अपनी सहायक देवी के रूप में पूजा की ।
भक्तो मैं क्या बताउ इसके चमत्कारों को मुझे तो यह हर बात में चमत्कार दिखाती है .......
आज जैसे जैसे माँ के भक्तों को उनके कुलदेवी बाण माता के प्रति श्रद्धा होने से माँ के नये नये मंदिर निर्माण भी बहुत हो रहा है .......
कुछ मंदिरो की सूचि और वहा के चमत्कार  :-

श्री बाण माताजी मंदिर
मुख्य मंदिर चित्तोड़ गढ़
जहा आरती के समय आज भी त्रिशूल अपने आप हिलते है ।

श्री ब्राह्मणी माताजी मंदिर सोर्सन
बरन से 20 कि.मी दूर सोर्सन गाँव में ब्राह्मणी माताजी का मंदिर है। प्राचीन किले के अन्दर बने इस मंदिर में, ब्राह्मणी माँ की मूर्ति है, जो बड़ी सी चट्टान के नीचे गुफा में स्थित है। कहा जाता है कि मंदिर में जल रही अखंड ज्योति पिछले 400 सालों से जल रही है। शिवरात्री के दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और भारी संख्या में पशुओं की बिक्री होती है।

यह राजस्थान का एक मात्र मंदिर है जहा ब्राह्मणी माताजी के पीठ पर श्रृंगार किया जाता है।

श्री बाण माताजी मंदिर सूरत ( गुजरात )
यहाँ हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माँ बायण की रात्रि प्रसादी और सत्संग का आयोजन श्री बाण माताजी मित्र मंडल सूरत द्वारा किया जाता है।

श्री बाण माताजी मंदिर सड़ा गाँव ( गुड़ामालानी , बाड़मेर )
यहाँ मंदिर मैं कोई भी भक्त अगर नारियल रखता है तो वह नारियल चाहे 1साल बाद जाओ या 10 साल बाद जैसा का वैसा ही रहता है ।

श्री बाण माताजी दरबार जोधपुर
श्री बाण माताजी भक्त मंडल जोधपुर इस दरबार में माँ के हर भक्त के संकट निवारण होता है और माँ मन इच्छा पूर्ण करती है ।

श्री बाण माताजी मंदिर केलवाड़ा यह मंदिर राणा लक्ष्मण सिंह जी के पोत्र राणा हमीर सिंह जी ने बनाया था ।

श्री बाण माताजी मंदिर शिशोदा यह मंदिर माँ क भक्त राणा लक्ष्मण सिंह जी ने बनाया था ।

श्री बाण माताजी
गांव-दुजाणा(तखतगढ के पास)
जिला -पाली (राज.)

श्री बाण माताजी
गांव-कालन्द्री और वेलांगरी के बीच में
जिला-सिरोही(राज.)

बाण माताजी मन्दिर
कैलाशनगर ,जिला-सिरोही(राज.)

बाण माताजी मंदिर,
सुमेरपुर ,जिला-सिरोही(राज.

बाणमाताजी मंदिर,
केलवा(राज.)
ब्राह्मणी माता मंदिर भरमौर ( BHARMOUR , Near Chamba  Himachalpradesh  ) , खोडियार नगर , अहमदाबाद ( गुज.), कल्याणा ( पाटण , मेहसाना , गुज.) , पल्लू ( हनुमानगढ़ , राजस्थान ) , ब्राह्मणी , हनुमानगंज ,बल्लिया  ( Ballia ) (उत्तर प्रदेश ) , डिंगच ( Dingucha , T :Kalol Dist : Gandhinagar ) , नाना जादेश्वर ( Near Wankaner , Gujrat ) , सेवाड़ी ( Pali , Rajasthan ) , कामली ( Kamali T: Unjha Dist Mehsana Gujrat )
Shedhavi ( Near Nandasan Dist Mehsana Guj ) , सरंगवास ( Bali , Pali Raj.)
दियोदर ( बनासकांठा गुजरात )  गिरनार ( Patan Gujrat )
सिलोइया ( सिरोही , राज.) , मोरखा ( देसूरी,पाली राज.) , भितवाड़ा ( पाली राज.) , सेमड़ (उदयपुर  मेवाड़ ) , अजबरा ( सराड़ा  उदयपुर  मेवाड़ ) , सलूंबर ( मेवाड़ ) , परावल ( मेवाड़ ) ,  इंदौड़ा ( डूंगरपुर राज.) , नरवाली ( बांसवाड़ा ) , नादेवा ( Nadeva , Rinched , Kumbhalgarh Mewar ) , करेली ( मेवाड़ ) ,  खारवा ( मेवाड़ ) , सेमारी ( मेवाड़ ) , गोगुन्दा ( उदयपुर मेवाड़ )
समीछा ( मेवाड़ ) आदि जगह माँ के मंदिर बने हुए है।
मित्रो इस पोस्ट में माँ बाण माताजी के इतिहास संबधित जानकारि है , आप सभी भक्तों से सविनय निवेदन है कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर माँ के भक्तो तक उनकी जानकारी पहुचाये ।
सः धन्यवाद
जय माँ बायण जय एकलिंग जी

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