कठ जाय कहूँ दुखड़ा , कुण सुणे मो अरजी ।
बायण शरण में आवियो , जो करे थारी मरजी ।।
दुखी होय दुनिया सु , बायण आयो शरण तिहारी ।
दुखड़ा मेट शरण जग दीजो , धनियाणि माँ म्हारी ।।
भजन करू भक्ति करू , नित उठ ध्यावुं थाने ।
सेवकीयो शरणे पड़े , दरश दो बायण माने ।।
गुण गाऊ भजन सुनाऊ , सब ने सुनाऊ थारी महिमा ।
सेवकीयो थारो लारे रह गयो , बायण हालो थोड़ा धीमा ।।
सोमवार चुरमो बनाऊ , मंगल ने मिठाई ।
सोने चांदी रा बर्तन माई , रूस रूस भोग लगाईं ।।
बुधवार बाटा बनाऊ , छप्पन साग स्वादिष्ट ।
बिजळ बाव ढ़ोळावणा , बायण सी नही इष्ट ।।
गुरु को गरम लापसी , देशी घी में नाकि ।
माळवियो माई गुड़ मळाऊ , पिस्ता बदमा नी बाकी ।।
शुकर ने सिरो सोजी रो , शनि ने सात पकवान ।
रवि रावळो आपरो , जो हुकम रखु खान पान ।।
उजाळि अष्टमी रात आपरी , जमलो जगाऊँ जोर ।
बण पागल थारी भगति में , नाचू चारो पोर ।।
संत सुर न्योतो जमले दूँ , आजो हंस असवारी ।
धनुष बाण धारण किया , महिमा थारी भारी ।।
सोळह शिणगार सज आवजो , झांझर रे झणकार ।
माँ बेटो घूमर खेल स्या , होसी आनंद अपार ।।
अभिलाषा एक अरदास है , कृपा कीजे धनियाणि ।
महेंद्र सिंह ने दरश दीजो , मात म्हारी ब्राह्मणी ।।
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