Wednesday 22 July 2015

History Of Kelwara Temple

श्री बाण माताजी का इतिहास शिशोदा Part 01 केलवाड़ा
बात उस समय की है जब मेवाड़ पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया और मेवाड़ की क्षत्राणियों ने माता राणी पद्मिनी के साथ जौहर किया , रावल रतन सिंह जी सहित शिशोदा जागीर के राणा लक्ष्मण सिंह उनके जेष्ठ पुत्र अरी सिंह जी एवं समस्त मेवाड़ की सेना वीरगति को प्राप्त हुई । जैसे तैसे करके अजय सिंह घायल अवस्था में शिशोदा पहुचे और वहा अपना राज्य बरकरार रखा । अरि सिंह के पुत्र थे जिनका नाम था हमीर सिंह राणाअजय सिंह जी की मृत्यु के बाद हमीर सिंह शिशोदा जागीर के राणा बने , यह मेवाड़ की एक मात्र जागीर थी और आजाद थी । राणा हमीर सिंह अपने दादोसा राणा लक्ष्मण सिंह की तरह माँ बायण के साधक थे और मातेश्वरी की नीत भक्ति आराधना करते थे , राणा हमीर सिंह ने अपनी आस्था का केंद्र शिशोदा को ना बना कर केलवाडा को बनाया । केलवाड़ा में राणा हमीर सिंह ने श्री बाण माताजी का मंदिर बनाया और सभी गोहिल राजपूतों को फिर से एक होने के लिए आराधना की ।
हमीर सिंह जी माँ बायण के अनन्य भक्त थे और माँ ने भक्त की पुकार सुन ली , और मेवाड़ फिर से गुहिल राजपूतों के पास आ गया ।
History of shishoda
शिशोदा
इतिहास -
सिंह गमन साख वचन, केल फले एकबार।
त्रिया तेल, हम्मीर हठ चढे न दुजी बार।।
शिशोदा गांव का इतिहास मेवाड राजवंश से झुडा हुआ है
ऐसा माना जाता है कि भगवान सुर्य के 63 वीं पीढी में
भगवान रामचन्द्रजी के पुत्र कुश हुए तथा कुश से 59
वीं पीढी में राजा सुमित्र हुए सुमित्र के 13 वे वंशधर
विजयभुत ने अयोघ्या से निकलकर दक्षिण भारत को विजय
कीया। वि. सं. 580 में शत्रुओं के आक्रमण के कारण
वल्लभीपुर का पतन होना तथा शिलादित्य के मारे जाने पर
उनकी सगर्भा रानी पुष्पावती का मेवाड में आना और
गुहदत्त गुहिल नामक पुत्र का उत्पन
होना तथा उसी का मेवाड राजवंश का आदि पुरुष
होना लिखा है।
राजा गुहिल के बाद 33 वी पीढी मे राजा कर्णसिंह हुए उस
समय शिशोदा पर राव रोहितास्व भील का राज हुआ
करता था। राहप ने रोहितास्व को पराजित कर
अपना आधिपत्य जमाया। उसके बाद राहप ने मालवा के
मोकल पडिहार को पराजित कर उसकी राणा की पदवी छिन
ली इसीके पश्चात शिशोदा के शासक के साथ राणा शब्द
जुडा एवं कालान्तर में हम्ी के चित्तोड पर कब्जा करने के
पश्चात मेवाड के शासक महाराणा कहयाये।राहप ने
सरसलजी पालीवाल को अपना पुरोहित नियुक्त
कीया तथा कुल देवी बायण माता की स्थापना की। राहप
द्धारा ही मेर बस्ती में भगवान भोलनाथ के मन्दिर
की स्थापना की जो वर्तमान में सरसल महादेव के नाम से
प्रख्यात है।
राजा कर्णसिंह के दौ पुत्र हुए बडे पुत्र खेमसिंह ने चित्तौड
की राजधानी चित्रकुट तथा छोटे पुत्र के वंशज राणा क
पदवी पाकर शिशोदा की जागीर प्राप्त की।
राणा राहप के 12 वी पीढी में लक्ष्मण सिंह के दो पुत्र
अरिसिंह व अजयसिंह हुए। अरिसिंह की मृत्यु के पश्चात
शिशोदा की जागीर का आधिपत्य अजयसिंह के पास आ
गया। उस समय पाली गोडवाडा का मुन्जावालेया नामक
राजपुत्र डकेत था जो मेवाड में लुट मार करता था जिससे
यहां की जनता परेशान थी। अजयसिंह ने अपने
दोनो पुत्रो सजन्नसिंह तथा खेमसिंह को उस डकेत
का सजा देने के लिए बाध्य कीया परन्तु दोनो भाई इसमें
नाकाम रहे तो
अजयसिंह ने अपने बडे भाई के पुत्र हमीर जो अभी कीशोर
था को इस काम का आदेश दिया। हमीर ने इस कार्य
को उस डकेत का सिर काट अपने चाचा का भेंट कर
पुरा कीया इससे अजयसिंह प्रसन्न हो गये तथा उसे
अपना उत्तराधिकारी धोषित कर दीया। इससे अजयसिंह के
दोनो पुत्र खेमसिंह तथा सजन्नसिंह नाराज हो कर दक्षिण
में चले गये। इसी सज्जनसिंह के वंश में मराठो का राज्य
स्थापित करने वाले शिवाजी महाराज हुए थे।
हमीरसिंह ने वि. स. 1383 के आसपास
शिशोदा की राणा शाखा का राज्य स्थापित कर
महाराणा का पद धारण कीया। ऐसा माना जाता है
की शिशोदा राजवंश के शासक ही भारत के विभिन्न
राज्यो जैसे काठीयावाड मे भावनगर, पालीताणा, लाठी,
वला गुजरात में राजपीपला धरमपुर मध्यभारत में रामपुरा,
बडवाना महाराष्ट में मुधोल, कोल्हापुर, सावन्तवाडी नेपाल
में तथा मेंवाड में प्रतापगढ, देवलिया, डुंगरपुर, बांसवाडा,
शाहपुरा, बनेडा आदि फेले हुए थे।
तुर्क हमलावर अलाउद्दीन खिलजी ने जैसे
तैसे चितौड़ जीत कर अपने चाटुकार मालदेव को मेवाड़
का सूबेदार बना दिया था | युध्ध में रावल रतन सिंह सहित चितौड़ के
वीरो ने केसरिया बाना पहन कर
आत्माहुति दी | खिलजी की मौत
के बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली का सुलतान
बना तो मालदेव ने
उसकी अधीनता स्वीकार कर
ली |
सीसोदा की जागीर को छोड़कर
लगभग सारा मेवाड़ तुर्कों के कब्जे में था और सिसोदा के
राणा हम्मीर सिंह को इसी का दुःख था |
बापा रावल
की सैंतीस्वी पीढी के
रावल करण सिंह ने जब अपने बड़े बेटे क्षेम सिंह को मेवाड़
की बागडोर सौंपी तो छोटे बेटे राहप
को राणा की पदवी दे
सिसोदा की बड़ी जागीर दे
दी | केलवाडा इस ठीकाने
की राजधानी था | रावल क्षेम सिंह के वंश
में आगे चल कर रावल रतन सिंह हुए | राणा राह्प के वंशज
अरि सिंह इनके समकालीन थे और
खिलजी से युध करते हुए राणा अरि सिंह ने
भी रावल रतन सिंह के साथ
वीरगति पायी |
उन्ही का युवा पुत्र हम्मीर इस समय
केलवाडा में मेवाड़ को विदेशी दासता से मुक्त करने
की योजना बना रहा था |
पहले तो हम्मीर ने मालदेव का स्वाभिमान जगाने
की कोशिश की ,पर जिसके खून में
ही गुलामी आ गयी हो वह
दासता में ही अपना गौरव समझता है | इस लिए उसने
उलटे हम्मीर
को ही तुर्कों की शरण में आने को क़हा |
हमीर ने मालदेव और तुर्कों पर छापेमार कर हमले
करने शुरू कर दिए | मालदेव ने इस से बचने के लिए चाल
सोची और हम्मीर
को अपनी लड़की की शादी के
प्रस्ताव का नारियल भिजवाया |
हम्मीर ने काफी सोचविचार के बाद उस
विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया | और तय समय
पर अपने गुप्तचरों और सैनिको के साथ चितौड़ दुर्ग पहुँच गए |
वंहा जाकर दुर्ग का निरिक्षण किया | विवाह के बाद
उनका साक्षात्कार राजकुमारी सोनगिरी से
हुआ तो राजकुमारी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया "
महाराज मै आपके शत्रु की कन्या हूँ इसलिए मै
आपके योग्य नहीं हूँ मेरे पिता तुर्कों के साथ है लेकिन
मै आपका साथ देकर मातृभूमि के लिए संघर्ष करूंगी | "
हम्मीर उसकी देशभक्ती से
प्रभावित हुए वे बोले " देवी अब आप
सिसोदा की रानी है | अब आपका लक्ष्य
भी हमारा लक्ष्य है | हम मिल कर मेवाड़
की स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ेंगे |"
सोनगिरी ने क़हा महाराज अप देहेज में
दीवान मौजा राम मोहता को मांग लीजिये वे
बहुत नीतिग्य और देश भक्त है |
मालदेव ने सोचा की मोहता अपने लिए
गुप्तचरी करेंगे यह समझ कर उनहोने सहर्ष
हम्मीर की बात मान दीवान
मोहता को उनके साथ कर दिया | हमीर
की विदाई रानी और मोहता के साथ कर
दी गयी | दुर्ग के कपाट बंद कर किलेदार
को आदेश दिया गया की आज से हम्मीर
या उनका कोइ सैनिक इस किले में ना आ पाये |
थोड़ी दूर जाने पर दीवान मोहता ने
हम्मीर से क़हा की महाराज मालदेव
आपको असावधान करके केलवाड पर हमला करने
की फिराक में है | लेकीन
अभी तुगलक ने उसे सेना सहित
सिंगरौली बुलाया है | वह कूच करने वाला है | इस लिए
चितौड़ विजय का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा |
मोहता की बात सुन कर हम्मीर ने पास के
ही जंगल में डेरा डाल दिया और मालदेव के
सिंगरौली जाने का इन्तजार करने लगे | जैसे हे उन्हें
अपने गुप्तचरों के द्वारा मालदेव के बाह जाने का सन्देश मिला अपने
सैनिको को इकठ्ठा करके वापस किले की तरफ
रवाना हो गए | राणा हम्मीर
भी स्त्री वेष में हो लिए और
मोहता मोजा राम को आगे कर दिया | खुद पालकी में बैठ
गए | रात्री का समय हो गया था किले के दरवाजे पर
जाकर आवाज लगाई "द्वारा खोलो मै दीवान मोजा राम
मोहता हूँ , राजकुमारी पीहर
आयी है | किले दार ने झांक कर देखा तो उन्हें मोजा राम
पालकी के साथ दिखाई दिए तो उन्हें कोइ ख़तरा ना जान
और मोजा राम तो अपने आदमी है तथा आदेश केवल
राणा हम्मीर के लिए ही था सो किले दार ने
ज्यादा बिचार किये बिना द्वार खोल दिए | अन्दर घुसते
ही राणा हम्मीर और सैनिको ने द्वार
रक्षक सैनिको का काम तमाम कर दिया | अगले द्वार पर
भी यही प्रक्रिया दोहराई
गयी | किले में मालदेव के थोड़े से ही सैनिक
थे इस लिए बात ही बात में किले पर
राणा हमीर का कब्जा हो गया | सुबह
की पहली किरन के साथ
ही केसरिया ध्वज लहरा दिया गया |
माल देव को पता लगा तो वह उलटे पैर चितौड़ की ओर
दोड़ा पर हम्मीर ने उसे रास्ते में ही दबोच
लिया | उसके सैनिक भी हम्मीर के साथ
हो लिए | अब बिना समय गवाए हम्मीर ने
सिंगरौली में बैठे तुगलक पर हमला बोल दिया उसके सैनिक
भाग गए और तुगलक पकड़ा गया | तीन
महीने तक कारागृह में रहने के बाद मेवाड़ के साथ
साथ अजमेर व नागौर के इलाके पचास लाख रूपये और
सो हाथी देकर अपने प्राण बचाए |
राणा हम्मीर अब पूरे मेवाड़ के महाराणा हो गए |
यहीं से मेवाड़ के शिशोदिया वंश का काल खंड शुरू हुआ |
राष्ट्र भक्त
क्षत्राणी महारानी सोनगिरी ने
राष्ट्र - हित में अपने पिता को त्याग कर मेवाड़ को पुन भारत
का मुकुट बना दिया |
जय माँ बायण जय एकलिंग जी

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