Monday 27 July 2015

माँ बायण / आस्था और संस्कार

हमे आज भक्ति के वास्तविक तात्पर्य को समझने की आवश्यकता हैं। हमने गलत अर्थ मे ले रखा हैं... देवो के आगे उल्टा सीधा बैठ कर रोना आँसू बहाना गिड़गिनाना मिन्नते मात्र करना ही भक्ति नहीं हैं, ये भावुकता है । बल्कि भगवान के शास्त्रो में बताए आदेशो का व उनके आदर्शो को मानकर उस पर चलना-- इसके बिना भक्ति पूर्ण हो ही नहीं सकती। क्यो कि भक्ति का मूल इसी मे छिपा हैं। जैसे जैसे भगवान के सिद्धांतो पर आपकी श्रद्धा व आस्था का विकास होता जाएगा, आपकी भक्ति बढ़ती जाएगी, और तभी आप भगवान के सच्चे भक्त कहलाएंगे।
शास्त्रो के अनुसार "रसो वै स:" वह भगवान रसमय हैं, अर्थात आनंदमयी हैं। अगर भगवान के साथ शास्त्रोक्त नियमो के पालन से आत्मीयता जोड़ ली जाये, तो यही आनंद प्राप्त हो जाएगा, यह भक्ति का परिणाम हैं। हम भगवान के है , भगवान हमारे हैं । ऐसी भावना का विकास सबसे पहले करना होगा ।

जय माँ बायण जय एकलिंग जी

#maabaneshwari

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