Tuesday 8 August 2017

श्री बाण माताजी श्लोक-24

नमात्यंह बाणमाता नमाम्यहम् सुरेश्वरि |
नमात्यंह महामाय नमाम्यंह बाणेश्वरी ||


🌷 श्री बाण भगवत्यै नमः 🌷

जागो जगदम्ब

जागिये जगदम्बा माय मुख देखूं थारो,
मुख देखूं थारो माँजी कटे संकट म्हारो |
जागिये जगदम्ब माय मुख देखूं थारो ||
झनन-झनन झालर बाजै घुरत हैं नगारा |
ताल तो मृदंग बाजे सेवग आया सारा ||
सूरज तो सतेज उग्यो भयो हैं उजारो |
सेवग आप सरण आया दया दात विचारो ||
अंतर तो अबीर चढ़े भोग लागे मेवा |
बिन्दका सतेज सोहे तेज अम्बा थारो ||
कर जोड़े ईश्वरदास ध्यावे खानाजाद थारो |
अब की वेर उबारो मात आवागमन टारो ||



देखो सूरज की किरणें बिखरने लगी, रंग भरने लगी...
जागो-जागो भवानी सुबह हो गयी...
सुप्रभात मैया 🌄🌄🌴🌿

🌷 श्री बाण भगवत्यै नमः 🌷

Thursday 29 June 2017

श्री बाण माताजी आरती



*★ आरती ★*

ॐ जय बाणेश्वरी माता, हाथ जोड़ हम तेरे द्वार खड़े |
धूप दीप भोग लेकर हम, माँ बाणेश्वरी की भेंट धरे ||
कुलदेवी गुहिल क्षत्रियन की, हो खुश हम पर कृपा करें |
माँ बाणेश्वरी को नमन हमारा, कष्ट हमारे मात दूर करें ||१||
तज पाटण आप मेवाड़ पधारी, धन्य हुए हम सब सूत तेरे |
कुल कल्याण करने को, माँ तुमने ही विविध रूप धरे ||
कृपा वृष्टि करो हम पर माँ, तव कृपा से वंश बेल फरे |
दोष न देख अपना लेना, अच्छे-बुरे पूत हम तव रे ||२||
बुद्धि विधाता तुम कुलमाता, हम सब का उद्धार करे |
तेरे चरणों का लिया आसरा, तेरी कृपा से सब काज सरे ||
बाँह पकड़कर आप उठाओं, हम तेरी शरण आन पड़े |
जब भीड़ पड़े भक्तों पर, तब मात निज हाथ माथ धरे ||३||
माँ बाणेश्वरी की आरती जो गावे, माता उसके घर भण्डार भरे |
दर्शन तांहि जो कोई आवे, माता उसकी मंशा पूर्ण करे ||
कुलदेवी को जो कोई ध्यावे, माँ उसके कुल में वृद्धि करे |
कलि में कष्ट मिटेंगे सारे, माँ की जो जय-जयकार करे ||४||
ॐ जय बाणेश्वरी माता, हाथ जोड़ हम तेरे द्वार खड़े |
धूप दीप भोग लेकर हम, माँ बाणेश्वरी की भेंट धरे ||

🚩 *चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय*
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Wednesday 28 June 2017

श्री बाण माताजी चालीसा


◆ ॐ कुलमाताय नमः ◆
◆ ॐ श्री बाण माताय नमः ◆

👉 श्री बाण माताजी चालीस 👈
● दोहा :- 
श्री गुरु चरण नमन कर, लेखिनी निज कर धारी |
बायण मात गुण वरणो, जो दायक फल चारि ||
मंदमति मैं सुत तेरो, अपनाओ माँ मोहि |
सुख शान्ति देऊँ सदा, मैं वन्दन करूँ तोहि ||

★ चौपाई ★
सूर्य वंश क्षत्रिय जग जाना |
गुहिल खाँप तहँ मेरु समाना ||१||
भूप गुहदत्त भये विख्याता |
बाणेश्वरी ताही कुलमाता ||२||
आठवाँ वंशज रावल बप्पा |
मेवाड़ आन शासन थापा ||३||
ताके वंशज लक्ष्मण राणा |
ले लश्कर द्वारिका प्रस्थाना ||४||
पाटण नगर मग मँह आया |
तँह कुमारी सों ब्याह रचाया ||५||
बायण माँ मन्दिर तँह सुहाना |
जोड़ायत संग आया राणा ||६||
वर-वधु ने शीश झुकाया |
बायण माँ ने पुष्प बक्षाया ||७||
सुखद नींद सोया था राणा |
सुखद सपना आया सुहाना ||८||
माता बायण ने फरमाया |
मेवाड़ धाम मो मन भाया ||९||
मोहि ले चलो अपने साथा |
अब पाटण मोहि न सुहाता ||१०||
कर नमन राणा बोला धीमा |
माँ! तेरी पूजा कठिन कामा ||११||
कर न सकूँ मैं पूना तोरी |
यही दुविधा हैं मात मोरी ||१२||
स्वीकार हैं पूजा साधारण |
मेवाड़ मोहि ले चल लक्ष्मण ||१३||
जब जाग्रत भया लक्ष्मण राणा |
निज राणी सों सपन बखाणा ||१४||
बनकर बालिका मात आयी |
मात बाणेश्वरी झलक दिखायी ||१५||
अब मेवाड़ पधारो माता |
भूप ने कहाँ हिया हुलसाता ||१६||
मात प्रतिमा ले भूप आया |
कर दरशण कुल जन हरषाया ||१७||
शिशोदा गाँव महल सुहाना |
तँह मन्दिर बनवाया राणा ||१८||
गढ़ चित्तौड़ महिमा भारी |
जिसकी छटा सबसे न्यारी ||१९||
लक्ष्मण पौत्र हमीर कहाया |
बायण मातहिं भक्त सवाया ||२०||
दुर्ग मँह मात मन्दिर सुहाना |
जिसे बनाया हम्मीर राणा ||२१||
दरशन तांहि लोग नित आवे |
चढ़ा प्रसाद भोग लगावे ||२२||
माँ! क्षत्रियों के कष्ट मिटाओ |
विपदा में भी आन बचाओ ||२३||
जिसके हिये में भली भावना |
उसकी पुरे मात कामना ||२४||
वर-वधु माँ को ढोक लगावे |
माँ! वह जोड़ी सुखी बनावे ||२५||
कर मुंडन शिशु शीश झुकावे |
माँ उसे सदा स्वस्थ बनावे ||२६||
शुद्ध भाव से जो गुण गावे |
दुःख दरिद्र पास नही आवे ||२७||
भोर भए जो पढ़े चालीसा |
उसके घर में रहे न कलेशा ||२८||
शत्रुंहि नाशो बायण माता |
तुम हो तीन लोक सुखदाता ||२९ ||
अमित अपार आपकी महिमा |
हो अनुभव जब आवे सीमा ||३०||
बायण मात नाम जो जापे |
तां सो भूत प्रेत सब कांपे ||३१||
कुलदेवी को कंठ में धारे |
बिगड़े काज सकल सुधारे ||३२||
जा पर कृपा मात की होई |
सकल पदार्थ करतल होई ||३३||
धन्य हुआ जो दर्शन पाया |
मंशा पूरी जिन शीश नवाया ||३४||
माँ की महिमा कही न जाई |
अंधा को सब कुछ दर्शाई ||३५||
निर्धन को धन देती माता |
पुत्र हीन सुंदर सुत पाता ||३६||
तिथि अष्टम चौदस शुक्ल पक्षा |
अवस उपासना करें मात समक्षा ||३७||
जय हो तेरी बायण माता |
पूजा अर्चन मुझे न आता ||३८||
भूल-चूक क्षमा करना माता |
माँ-बेटे का अटूट नाता ||३९||
माँ की चरण शरण सुखदायी |
बड़भागी जन दर्शन पायी ||४०||

★ || दोहा || ★
सम्बत दो हजार सत्तर, नव रात्रि मधुमास |
बायण मात चालीसा, रचा 'अल्पज्ञ' तव दास ||
भूल-चूक कर माफ़, भाव सुमन लें मात |
पूत-कपूत हो जात हैं, मात न होत कुमात ||

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🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

Wednesday 14 June 2017

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमे धारण किए हुए आयुध

श्री बाण माताजी की भुजाएँ एवम् उनमें धारण किए हुए आयुध :- 


सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं, इनकी महिमा अजब निराली हैं। मातेश्वरी के भक्त आप और हम महीने में एक बार या साल में दो बार मातेश्वरी के दर्शन हेतु जाते ही हैं, माजी के दर्शन कर मन को आनन्द मिलता हैं। चित्तौड़गढ़ में भगवती स्वयं साक्षात् विराजमान हैं, किसी भी देवता या देवी की महिमा उनकी भुजाएँ तथा उनमे धारण किए हुए आयुधों से जानी जा सकती हैं। चित्तौड़गढ़ में विराजमान बाणमाता ने चार भुजाएँ धारण कर, मातेश्वरी कमलासन पर विराजमान हैं। ऐसे तो लोगो को माताजी के बारें में केवल इतनी ही जानकारी हैं कि माताजी ने हाथों में धनुष-बाण धारण किए हुए हैं इसके अलावा कोई जानकारी नही, सही हैं जानकारी भी कैसे होगी? माताजी के इतिहास के बारें में तथा उनकी महिमा के बारें में कही पर भी कोई स्पष्ट जानकारी नही मिलती, आइये आज हम आपको इनके आयुधों के बारें में बताते हैं।


सिसोदिया गहलोत वंश कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी का पाट स्थान चित्तौड़गढ़ में हैं,  मातेश्वरी कमलासन पर विराजित हैं, बाण माता चतुर्भुजा रूप हैं दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं जिनमे क्रमशः अंकुश तथा पाश हैं, दो हाथों में धनुष एवं बाण धारण किए हुए हैं जो घुटनो पर टिके हुए हैं। माताजी का यह चतुर्भुजा रूप अत्यंत मनमोहक एवम सुन्दर हैं, बैठकर शांतिपूर्वक दर्शन करने पर मन को अत्यंत शान्ति व ऊर्जा प्राप्त होती हैं जैसे मातेश्वरी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण कर रही हैं।
श्री बाण माताजी की यह नवीन प्रतिमा महाराणा शम्भू सिंह जी द्वारा स्थापित की गयी थी, इसी नवीन प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बप्पा रावल द्वारा स्थापित अल्लाउद्दीन ख़िलजी द्वारा खण्डित प्रतिमा को देखने पर भी यही प्रतीत होता हैं कि उस प्रतिमा ने भी समान आयुध तथा चार भुजाएँ धारण किए हुए हैं। पुराणी प्रतिमा नवीन प्रतिमा के पीछे होने के कारण उसे स्पष्ठ देखना मुश्किल हैं लेकिन ध्यान से देखने पर मातेश्वरी के मुख तथा एक हस्त के दर्शन होते हैं जिसमे अंकुश धारण हैं तथा खंडित हैं।
माताजी के आयुधों में पाश इच्छाशक्ति का प्रतिक हैं जैसे मनुष्य पाश में उलझ कर फसता ही चला जाता हैं वैसे ही इच्छाशक्ति के फंदे में पड़ कर वह उलझता जाता हैं और उसका संसार बढ़ता हैं ज्ञान तथा नियंत्रण का प्रतिक अंकुश हैं जो अविद्या अथवा भ्रम की ओर बढ़ते हुए मन मतंग को सचेत कर नियंत्रण करता हैं जिसे स्वयं गौरी नंदन गणेश भी धारण करते हैं, धनुष और बाण क्रियाशक्ति के नमूने हैं।



" इच्छाशक्तिमयं पाशं अंकुशं ज्ञानरूपिणम् |
क्रिया शक्तिमये बाणधनुषी दधदुज्जवलम् || "


दुर्गाशप्तशति में मातेश्वरी के कई रूपों का वर्णन किया गया हैं, श्री देव्यथर्वशीर्षम् में भगवती के बारें में कहाँ गया हैं:-




" एषाऽऽत्मशक्ति एषा विश्वमोहिनी |
पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरा | एषां श्री महाविद्या | य एवं वेद स शोकं तरति ||१५||


ये परमात्मा की शक्ति हैं, ये विश्वमोहिनी हैं, पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करने वाली हैं। ये श्री महाविद्या हैं, जो ऐसा जानता हैं वह शोकको पार कर जाता हैं।

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

तूँ ब्रह्माणी तूँ धनियाणी

जय भवानी बाणमाता, तू ही चित्तौड़गढ़ धणियाणी |
तूँ ही बायण तूँ ब्रह्माणी, तूँ ही सेवक सहाय सर्वाणि ||
तूँ ही ब्रह्मा शिव विष्णु हैं, जग जिव जुगत तू ही उपजाणि |
काळा-गोरा लांगड़ आगे, तूँ ही डमडमाट कर डमकाणी ||
बाणासुर री बायाँ भांजी, चमचमाट कर चमकाणी |
सिंह सवारी हंसला री हाकणार, दानव दल पर मलफाणी ||
लहू लाल रागस भर खप्पर, तू गट गटाक कर गटकाणी |
लक्ष्मण सिंह जी ने वचन दीनो, बणगी माँ तूँ ब्रह्माणी ||
हँसले चढ़ बायण तूँ आज्यै, संग सातू बेहना लाणी |
अनु आराधा आप पधारी, जय जय मात ब्रमांड रचाणि ||
भव सागर भयहीन करि, इण सागर तूँ तिरवाणी |
किरपा कर महेंद्र पर माड़ी, भगता ने भक्ति बगसाणी ||

🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय


Thursday 8 June 2017

श्री बाण माताजी मन्दिर कुम्भलगढ़

श्री बाण माताजी मन्दिर कुम्भलगढ़ ( दुर्ग )


सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी श्री बाणमाता जी का यह मन्दिर महाराणा कुम्भकरण सिंह ( राणा कुम्भा ) ने 14 वीं सदी में कुम्भलगढ़ दुर्ग के निर्माण के समय बनाया था,  मातेश्वरी का यह मन्दिर कुम्भलगढ़ दुर्ग में ही विद्यमान हैं।
राणा कुम्भा ने दुर्ग की रक्षा का भार भगवती को सौपा था, जिस अजेय गढ़ की रक्षा अपने पाट स्थान की भाँती आज तक बाणमाता करती आ रही।


कुम्भलगढ़ किले में बैठी, जग री पालनहार |
कुम्भकरण सिंह सोपियो, किले वाळो भार ||
माताजी मेवाड़ रा, आप हो रण री देवी |
विपदा में हैं सुमरिया, माँ सहाय करो सेवी ||
आजै सदा उतावळी, भीड़ मतवाळी भड़ |
कुंभों केवे मावड़ी, दरशन दो सिंह चढ़ ||


🚩 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय

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