भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली, उनके दुःखों को हरने वाली, उनकी समस्त समस्याओं को दूर करके उन्हें संसार की सभी खुशियां प्रदान करने वाली ' चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी का चित्तौड़गढ़ स्थित ( पाट स्थान ) मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। सिसोदिया गहलोत वंश की कुलदेवी श्री बाण माताजी की महिमा अपरम्पार है। श्री बाण माताजी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अन्नपूर्णा व् अपने लाडले श्री खेत्रपाल के साथ में विराजमान हैं ।
‘आदिशक्ति’ श्री बाण माता का मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं ।
कहते हैं किले में विराजमान मैया सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। श्री बाण माताजी ने समय -समय में अपने भक्त की सहायता और आह्वान पर माजी चित्तौड़गढ़ से उनकी रक्षार्थ पधारे हैं ऐसे ही गुजरात के बनासकांठा जिले के दियोदर गाँव में श्री बाण माताजी का भव्य मंदिर विद्यमान हैं लोकमान्यता के अनुसार एक समय में जोधपुर से नागोह देवासी समाज के कुछ परिवार जोधपुर से पलायन कर दियोदर गाँव में आकर बस गए थे ।दियोदर गाँव में एक देवल बा नाम की लड़की रहती थी , दियोदर गाँव की सीमा से कुछ दूरी पर गंगा कुआँ था , उस कुँए के पानी से ही सम्पूर्ण दियोदर गाँव के लोग पानी पीते थे ।
एक समय की बात हैं जब देवल बा घड़ा लेकर घर से पानी लेने निकली , तभी रास्ते में कुछ लोग नाटक दिखा रहे थे , नाटक देख देवल बाई वही पर रुक कर खेल देखने लग गयी और खेल देखते देखते कब शाम हुयी उन्हें पता ही नही चला ।
जल्दी से उठ कर देवल बाई दौड़ती-दौड़ती कुआँ पर पहुँची और पहुँच कर देखा तो कुँए में रस्सी ही नही थी
रस्सी न होने के कारण पानी भर पाना मुश्किल था , देवल बाई ने सोचा अगर घर जाकर रस्सी लाऊंगी तो रात हो जायेगी और अगर पानी नही लेकर गयी तो घर पर सभी लोग डांटेंगे , देवलबाई उदास होकर कुँए पर रोने लगी , रोते-रोते उनके आँखों में से आंसू की एक बूंद कुँए में जा गिरी , देवलबाई को दुःखी देख बाण माताजी से रहा नही गया और भक्त की रक्षा करने हेतु माँ ने चमत्कार दिखाया ।
थोड़ी ही देर में कुँए में पानी छलकने लगा और देखते ही देखते पानी कुँए की छोर तक आ गया और चारों और सन्नाटा छा गया , सन्नाटे और संध्या के समय में देवी के हंसने की आवाज आई तभी देवल बाई ने चारों ओर देखा लेकिन वहां कोई नही था ।
देवल बाई ने घबरा कर आवाज लगाई , कौन हैं??
तभी देवी बोली ' हे देवल मैं दियोदरी बाण माता हूँ और इस कुँए में मेरा वास हैं ।
माँ के दर्शन कर देवल बाई की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा और वह माँ के चरणों में जा गिरी ।
बाण माताजी बोले ' हे भक्त इस कुँए से अपने घड़े में पानी भरलो और इसमें से एक सोने की ईट निकलेगी , उस ईट को ले जाकर दियोदर के सभी लोगो को मुझसे अवगत कराओ और इस सोने की ईट पर मेरी स्थापना करों ।
दियोदर में बाई देवल ने , पर्चों दियो बाण दियोदरी |
खाली कुओं गाँव रों , मात बाण माँ तूँ भरी ||
सोना री ईट साथ में , दिनी जळ रे माय |
कह्यों मात करों थरपना , हूँ चित्तौड़ी राय ||
अगर गाँव वाले न माने तो उन्हें कुँए पर लेकर आओ और मैं स्वयं उन्हें फिर से कुँए का पानी छलकता हुआ दिखाउंगी । देवल बाई ने बाण माताजी को प्रणाम कर गाँव में जाकर सभी को सारा वृतांत बताया , लोगो ने बाण माता को आजमाने के लिए कुँए पर आये और वहाँ जो देखा उन्होंने वे बाण माताजी के दीवाने हो गए और माँ की महिमा गाने लगे ।
सोने की ईट पर श्री बाण माताजी की मूर्ती की स्थापना कर गुजरात के रबारी समाज ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया ।
दियोदर रे मायने , बायण रो मंदिर बणियो जोर |
कोयलिया टंहुका करें , जठे मीठा बोले मोर ||
धुप दिप करें आरती , होवे हैं आठूं पोर |
नर नारी दरश ने आवता , थारे जयकारा रो सोर ||
आज दियोदर मंदिर रबारी समाज और बनासकांठा के लोगो की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं हजारों भक्त मातेश्वरी दर्शन हेतुं यहां आते हैं और अपने दुःखों का निवारण कर माँ की महिमा गाते हैं ।
मैं दीवानों मात रो , आवे दियोदर दाय |
प्यारी मूरत बाण री , भक्ता रे मन भाय ||
👍 @[306557149512777:]
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