Monday, 8 May 2017

इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का इतिहास

महाराणाओं की इष्टदेवी अन्नपूर्णा माता :- 




सामन्य अर्थों में कुलदेवी और इष्टदेवी की पूजा अर्चना अलग-अलग रूपों में की जाती हैं। हमारा समाज परम्परावादी हैं, कुल परम्परा को प्रायः समाज के हर वर्ग का हर परिवार मानता हैं, मानता ही नही वरन् परम्परा पर आचरण भी करता हैं। इसीलिए कुलदेवी और इष्टदेवी प्रायः वही होती हैं जिनकी आराधना कुल परम्परा से चलती आ रही हैं, परंतु कभी-कभी ये भिन्न हो जाती हैं, जो अपवाद स्वरुप मानी जाती हैं। जैसे राठौड़ो की परम्परागत कुलदेवी नागणेच्या माताजी हैं परंतु इष्टदेवी के रूप में चामुंडा माताजी को माना जाता हैं, इस बारे में विद्वानों ने कई प्रकार के विश्लेषण किये हैं।
वस्तुतः ये हैं तो देवी के अलग-अलग रूप परंतु परिवार के किसी सदस्य को परिस्थितिवश या घटनावश देवी के कोई रूप विशेस की आराधना करके आशीर्वाद या फल प्राप्ति अथवा कोई विशेष सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं तो देवी के उस रूप के प्रति उसकी विशेष श्रद्धा तथा विशेष विश्वास में दृढ़ता आ जाती हैं और वह उसकी इष्टदेवी हो जाती हैं।
इष्ट तथा अभीष्ट का अर्थ हैं चाहा हुआ मिलना, अतः मनवांछित फल की प्राप्ति जिस देवी की आराधना से होती हैं वही इष्ट देवी हो जाती है।
महाराणाओं की इष्टदेवी श्री अन्नपूर्णा माताजी का मन्दिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुलस्वामिनि श्री बाण माताजी  मंदिर के समीप बना हुआ हैं। यह मन्दिर महाराणा हमीर सिंह ने 13 वीं शताब्दी में बनवाया था । कमलदल पर विराजित महालक्ष्मी 'गजलक्ष्मी' की यह सुन्दर एवम् विशाल प्रतिमा गुप्तकालिनी स्थापत्य कला की सुंदर धरोहर विरासत धार्मिक आस्था एवम् मान्यता का अनुपम व दर्शनीय स्थल हैं। पूर्वकाल में में इस मन्दिर का नाम महालक्ष्मी मन्दिर था, महाराणा हमीर ने 1326 ईस्वी में इसका जीर्णोद्धार करवाकर अपनी इष्टदेवी के नाम से इसका नामकरण अन्नपूर्णा किया।
राणा हमीरसिंह की अल्लाउद्दीन ख़िलजी के विरुद्ध युद्ध में सहायता करने पर इस मन्दिर का निर्माण करवाया एवम् अपनी इष्टदेवी के रूप में भगवती की आराधना पूजा अर्चना की।



"हमीर सिंह री वार भवानी, आकर हुई तैयार।
मुगलों की सेना को मैया, तूने दिलाई हार ||"


मातेश्वरी कमल के पुष्प पर विराजमान हैं, कमल सरोवर में हैं, चार हाथी हैं जो घड़ो में जल भर का देवी स्नान करवा रहे हैं। दो गण निचे बैठे हैं, एक के पास अक्षय निधि पात्र हैं जो भरा हुआ हैं, दूसरे गण द्वारा निधि उड़ेली जा रही हैं। माताजी के दो हाथ हैं, एक में कमल पुष्प हैं दूसरे में अक्षय निधि, माताजी अन्न-धन्न व् भण्डार भरने वाली महालक्ष्मी स्वरूपा हैं।


जय माँ बायण
जय माँ अन्नपूर्णा

2 comments:

  1. अन्नपुर्णा मां का वास्तविक नाम मां बिरवडी है जो कच्छ प्रांत की एक चारण कन्या थी | माताजी ने 500 घोडे़ अपने पुत्र बारू जी के नेत्रत्व में देकर चित्तौड़ पुन: प्राप्त करने में सहायता की थी ||

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    1. लेख से यह तो जानकारी मिल गई कि माँ चखडा जी चारण की पुत्री थी,परन्तु इनका विवाह कहां और किसके साथ हुआ था । कृपया बताने की कृपा करावे।

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