श्री बाण माताजी के द्वारपाल व लाडले बेटे श्री खेतलाजी महाराज
सारंगवास ( नविधाम ) में विराजमान श्री सोनाणा खेतलाजी
श्री बाण माताजी मन्दिर के पूर्व दिशा के मुख्य द्वार पर बटुक भैरव विराजमान हैं मुख पर बालभाव चारभुजा धारण किए खड्ग, त्रिशूल और दंड धारण किए हुए श्वान असवारी हैं। इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
माँ भगवती के सिपाहसलार भैरव ही हैं। शिव का अवतार होने के कारण मां दुर्गा के अत्यंत प्रिय, आदि शक्ति महादेवी दुर्गा, चंडिका, काली गढ़देवी, त्रिपुर सुंदरी, ब्रह्माणी व अम्बा का मंदिर जहां भी होगा वहीं भैरव भी उन्हीं के साथ होते हैं। मान्यता है कि मां की पूजा-अर्चना के उपरांत अगर भैरव की पूजा न की जाए तो मां से भी ये नाराज हो जाते हैं कि आपने अपने भक्त को मेरे बारे में क्यों नहीं बतलाया। जब आदि शक्ति को शिव ने शिव शक्ति से समाहित किया तो उन्होंने ही भैरव को मां के साथ रहने का आदेश दिया इसीलिए भैरव सदा मां के ही साथ रहते हैं। इनके दर्शन करने से ही मां की पूजा-अर्चना सफल मानी जाती है।
इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। रक्तप्रिय दुष्टों का नाश करने के लिए ये युद्धभूमि में सदा उपस्थित रहते हैं। इनको दूध या हलवा अत्यंत प्रिय है इसीलिए भक्तजन इन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं।
इन्हें उग्र देवता माना जाता है मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं। जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हैं। इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं।
भगवान भोलेनाथ ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया है तथा काल भैरव जी अदृश्य रूप में ही पृथ्वी पर काशी नगरी में निवास करते हैं।
बाणमाता मन्दिर में विराजमान भेरू जी
आप चित्तौड़गढ़ मातेश्वरी श्री बाण माताजी के दर्शनार्थ जब भी पधारे तो खेतलाजी के दर्शन अवश्य पधारे एवम् माजी के जब नारियल/प्रसाद चढ़ाएँ तो एक नारियल/प्रसाद खेतलाजी को भी जरूर चढ़ाए। अगर सुविधा हो तो माँ के दर्शन के पश्चात श्री सोनाणा खेतलाजी ( सारंगवास ) के दर्शनार्थ अवश्य जाना चाहिए।
भेरूजी को तेल-सिंदूर एवम् माळीपना/वागा का श्रृंगार होता है, भेरूजी की राजस्थान में सबसे बड़ी गादी मण्डोर ( जोधपुर ) में हैं उसके पश्चात सोनाणा ( देसूरी ) में हैं।
पावा घमके घुँघरा, पलके तेल शरीर |
दुःखिया ने सुखिया करें, रंग हो भैरव वीर ||
सोनाणा माहि बिराजिया, मात ब्राह्मणी रा लाल |
भिड़ भगत रे आवजो, रक्षा राखो रखवाल ||
Hokam सिसोदिया वंश का भेरूजी का स्थान कहा पर है चित्तौड़गढ़ किले पर
ReplyDeleteMujhe bhi es ke bare me jankari chahiye
DeleteVijay istambh ke pass hai right said me
DeleteChittor kile pe jo bheru ji ka sthan h Or jo khtlaji me sthan h vo ek hi h
ReplyDelete