Saturday, 17 December 2016

श्री बाण माताजी दोहे-06

माँ बायण री चाकरी , करी मात कृपांण |
वेदों में वर्णित सदा , सहाय आई धनियाण ||
करो किरपा करतार थे , बायण पकड़ो बाय |
संकट में माँ सहाय करों , बायण बेगि आय ||
माँ बायण री चाकरी , करस्या मैं दिन रात |
जग छोड़े माँ नही छोड़े , निभावे हम साथ ||
बायण जी री भक्ति करा , इणरो हिज पूण प्रताप  |
बायण तो हिये हमे , जपा आपरा जाप  ||
घर आया म्हारे ब्राह्मणी ,  चहुओर छायों उमंग |
श्वान सवारी होय ने , खेतलाजी आया संग ||
आदि शक्ति अम्बा सुमिर,धरि बायण का ध्यान।
मन मँदिर मेँ बास करि , दूर करो अज्ञान।।
देशनोक री करणी माता , जोधणे चामुंडाय |
चित्तौड़ गढ़ री ब्राह्मणी , करों तीनू मम सहाय ||
चिंता बायण मात की , राखों मन सदा आनन्द |
जाया हैं सो पाळसी , श्री बायण माँ जगदम्ब ||
मूरत माँ री ऐसी घड़ी , ज्यूँ चाँद सूरज री साख |
उण मूरत में बायण बसी , सम नव कोटि नव लाख ||
कर जोड़ी बाळक कहे , मोती बायण री रीत |
करोड़ गुनाह माँ मैं कीना , माफ़ करो माईत ||
माँ बायण जी सहाय ने , आवे बेग अपार |
दानव दुष्टि नाम सु , छोड़ ज्यावै लार ||
करूँ मनवारा मावड़ी , बायण रहिजो दिवस दोय |
सेवा में चाकर ज्यूँ खड़ा ,  प्यारी लागे मोय ||
जग जननी दुःख हरणी मैया , हरो बायण सब त्रास |
हिये मायड़ म्हारे आप रमो , करों शत्रु का नाश ||
बाळक बायण आपरों , धरे नित मायड़ ध्यान |
शरणा में माँ राखजों , करजो थे कल्याण ||
जग जननी जगदम्बिका , विनय करूँ कर जोर |
मात ब्राह्मणी दास पर , करों कृपा री कोर ||
या म्हारी अरदास मावड़ी , हाथ जोड़ विणती करूँ |
सब काज सुफल करों , मन भावना अर्पण करूँ ||
चित्तौड़ गढ़ धणीयाणी ने , नत सिर बारंबार |
थे महाराणा री सहाय करि , मोटी तूँ दातार ||
भारत मे गढ़ चित्तौड़ , ज्यारों उंचों मान |
किले बैठी ब्राह्मणी , राखे सबरो ध्यान ||
गढ़ चित्तौड़ उपरे , बैठी सज सवार |
बायण थारों आसरों , तू हिज माँ रखवार ||
धणियाणी थारी गोद में , खेल रह्यो परिवार |
सदा निंगे माँ राखजे , हे कुलदेवी दातार ||
माँ बायण रटत ही , सब व्याधा मिट जाय |
कोटि जनम आपदा , श्री बायण नाम सो जाय ||
श्री बायण माता नाम कों , सपने में जो लेत |
ज्याने माता ब्राह्मणी , रीझ अपना कर लेत ||
बायण थारे नाम री ढ़ाणी , महला सु घणी मोटी | प्रातःकाल में सुमिरन किया , मिले रिजक ने रोटी ||
तूँ हैं मेरी मावड़ी , तुझे ही सब कुछ मानते हैं ।
चित्तौड़गढ़ धाम हैं तेरा , रास्ता सब जानते हैं ।।
ऊँचा भाकर ओपता , जठे माँ बायण रो वास |
चोत्तौड़गढ़ री मात ब्राह्मणी , पुरे मन री आस ||
जय माता चित्तौड़ धणीयाणी , करूँ आपने प्रणाम |
कृपा सुमन माँ मोपे राखजों , थारो जग में अमर नाम ||
धिन धोरा धिन घाटियां , धिन मेवाड़ी राण ।
बप्पा थूं सत जाणजे , महि थिर रहसि माण ।।
जय जय श्री बायण भगवती , ब्रह्माणी  सुखदानी |
नमो नमो बाणासुर संहारण ,  श्री देव मुख बखानी ||
चित्तौड़गढ़ में बिराजिनी , देहु अमर वर अम्ब |
जनहित हे माँ ब्राह्मणी , अब न करहु विलम्ब ||
सेवक काज सुधारिणी , समया देणी साद |
बाण मात ब्राह्मणी , देवी आप अनाद ||
माँ ब्राह्मणी वर दे मुझे , ऐसा दे इस बार |
रोज नए सृजित करूँ , शब्दों का संसार ||
त्रयलोके रक्षा करण , मंगळ रूप बाणेसरी |
सेवक चरणा वंदे सदा , आदि शगति इशरी ||
क्षत्रिय सहाय माँगी माजी सु , बाणासुर संहारण |
भयी विकराळ रूप भगवती , इष्ट ब्रह्मांड उपावण ||
सुरज दिपे,चन्दो दिपे उडगण दिपे आकाश !
इन सबसे तो बढ़कर दिपे माँ बायण का प्रकाश !!
हीरा सो थारों देवरों , सब जुग लेसी नाव |
चित्तौड़गढ़ री धनियाणी , कियो किले में धाम ||
जय जय श्री चित्तौड़ तणी , आदि भवानी अनन्त |
बायण माता बाणेश्वरी , आदि पायो न अंत ||
काटदो अब कष्ट सारा , माँ मैं ओहि चांवता |
काज पूरा उणरा होवे , जो माँ बायण ने मानवता ||
चित्तौड़गढ़ में बेसणो , सिसोदिया शरताज |
यज्ञ कुंड सु प्रकट्या , राखी हमीर री लाज ||
सिमरू देवी ब्राह्मणी , लूळे ने लागू पाय |
दुःखड़ा म्हारा मेटजो , मैहर कीजो माय ||
बायण मात बिराजणो , धिन माता सिरमौड़ |
माला फैरों मात री , जग चावों चित्तौड़ ||
माथे मुकुट गळ फूलमाला , सेवक थारे छवर ढूलाई |
घर-घर माहि होवे पूजा , माँ बायण संग सुखदाई ||
अरज करूँ माँ आपसे , सुनियो दया निधान |
मुझ चरण शरण देना , महामाया माँ बाण ||
श्री बायण माता जग करें , आपकी जय-जयकार |
कृपा मोपे किजियों , एक आप हो आधार ||
करुणामयि श्री बाण भवानी , क्लेश मोह संताप हरो ।
भव-भय हारिणि असुर-विनाशिनि , शरणागत उद्धार करो ।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी
जय जय जय श्री बाण भवानी..
हे जगदम्बे बाण मैया तेरा तीनों लोकों  में छाया राज हैं......
तूँ ओढ़ कुसुम्बल चुनरी तेरे सिर पर रत्नों का ताज हैं.....
हे चित्तौड़वाली बाण मैया , दयामयी कल्याणी माँ ।
दर पे आये भक्तों की तू , भर देती है झोली माँ ।।
जय जय जननी जगदम्बिका , महामाया माँ बाण |
मोटी मात मेवाड़ री , सेव्ये सदा महाराण ||
विघ्न विनाशिनी वरदायिनी , सदा बाळक सहाय |
राखों लाज माँ भगवती , मातेश्वरी बायण माय ||
पिळा वस्त्र पेरणा , मात ब्राह्मणी माय |
चार भुजा धारण करि , सेवक करो सहाय ||
कन्या कुमारी रूप में , हस्त रुद्राक्ष माळा |
सफेद वस्त्र सोवणा , ओ माजी चित्तौड़गढ़ वाळा ||
चित्तौड़गढ़ री बाण माँ , हरे सब कष्ट कलेश |
नर-नारी दर्शन आवता , जाणी देश-विदेश ||
जय जय माता ब्राह्मणी , जय जय जगतकरी |
वर दे अपने भक्त को , माँ तुमसे काज सरी ||
मात ब्राह्मणी आपरा , जग में परचा भारी |
हंस आरूढा होयने , आवों धनुष-बाण धारी ||
मैं नादान बाळक , गुण नित गाऊँ थारों |
सद्बुद्धि विद्या देवजों , गुण नी भूलू थारों ||
कृपा करो माँ ब्राह्मणी , सुणजो मो अरदास |
नित गुणगान करतो रहूँ , करजो हिये में वास ||
जगदम्बा जग जोगणी , अम्बा देवी आप |
चरणें थारी आवियों , बायण गुनाह करो सब माफ़ ||
मेवाड़ नगरी मायने , अर चित्तौड़गढ़ रे माय |
बायण बिराजे आड़ावळा , देवी करें भक्तों री सहाय ||
आवों देवी बाणेश्वरी , जगदम्बा मम माय |
भक्त पुकारे मावड़ी , अब पलक न देरी लगाय ||
माँ बायण री शरण में, जो जीवन व्यापन होय |
एसो वर दे अम्बिका, और वर न मांगू कोय ||
माँ बायण करती महर, बायण कदै न कोप|
महासमरथ बड़ मातपण, अदभुद बायण ओप||
माँ बायण म्हारी धनी, हूँ बायण रो दास|
धरनी पै बायण सिवा, करू न किणरी आस||
चार धाम बायण चरण, सह तीरथ सिर मोड़|
पद बायण चख परसता, पातक कटे कऱोड||
इण जुगड़ा रे मायने, बायण आप सु आस |
तारे तो माँ तारजे , नही तो राखे चरणा पास ||
साँस साँस में बायण बसे, दूजों न किणीरों वास |
आप अखिल ब्रह्मांड री देवी , आप रो हैं विश्वास ||
आठ पहर चौसठ घड़ी बायण री , घर-घर पूजा थाय |
हंस आरूढा होयने, खेतल संग में लाय ||
आवों माता ब्राह्मणी, मरुधर धरती माय |
अनु करें आराधना, माँ देवों दरश दिराय ||
मेवाड़ वाळी मावड़ी, श्री बायण माँ मम माय |
बेगी आजै ब्राह्मणी, माँ चित्तौड़गढ़ री राय ||
देवा में देवी बड़ी, बड़ी म्हारी ब्राह्मणी माय |
हाथ जोड़ विनती करूँ, माँ करियो मोरी सहाय ||
करियो मोरी सहाय, शरण में आया तेरी |
हे बाणेश्वरी मम माय, थे लाज रख लीजो मेरी ||
बायण आज्यों चित्तौड़ सु, म्हारे घर रे माय |
लाल चुनरी सु कराऊँ श्रृंगार, सेवक रे मन माँ भाय ||
जय बायण जरणी तूँ, श्री बायण करो दुःख द्वन्द |
हे बायण तूँ हेकरी, श्री बायण हैं आंणद ||
मन में बायण बिराजिया, मन री जाणे मात |
तूँ जग री जगन्नमाता, तीनों लोक विख्यात ||
चार खुट नवखण्ड में, माँ बायण रो प्रभाव |
वरणी वैद पुराण में, अंक बंक अरु राव ||
हर कण में बायण बसी, चित्तौड़गढ़ री राय |
हिये में हाजर खड़ी, देवों मन सु बुलाया ||
कोई ज्ञान दे पंथ विषय में, कही प्रातः घटे संताप |
तेरी भक्ति जानू मैं तो, बाकी होय अपने आप ||
नमो नमो श्री बाण माता , माँ तूँ गढ़ चित्तौड़ स्वामी |
अखिल ब्रह्मांड की आप महारानी, माँ बायण नमो नमामि||
जठे किरपा थारी भयी, अम्ब बिराज्या आय |
तीरथ तिनु लोक रा, गढ़ चित्तौड़ मंदिर माय ||
बायण सगत सिरोमणी,सब री लेवै सार |
विकट घड़ी भेळी बसै,अबखी में आधार ||
🙏 चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय  🙏

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