श्री बाण माताजी स्तुति
लावन्याम्बुधिसम्भवे दुवदनां, विद्याधरी वन्दिताम् |
भाले चंदनमण्डिताम् श्रुतियुगे गांगेयमुक्तांविताम् ||
नासामोक्तिकशोभितां हैंमी दधानां पटीम् |
रत्नशोभितकंचुकीमनुपमाम् , श्रीबाणेश्वरीश्रेयः ||
*अनुवाद* :- सौंदर्य समुन्द्र से उत्पन्न चंद्रमा की तरह मुखवाली, विद्याधरों से नमस्कृत, चंदन से अर्जित ललाट से शोभित, अपने दोनों कानों में मोतियों की लड़ियाँ धारण किए हुए, नाक के अग्रभाग में मोती की लटकन से युक्त, सुवर्णमय वस्त्रों से अलंकृत रत्नमय कंचुकी ( कांचळी ) को धारण किए हुए अनुपम रूपवाली देवी बाणेश्वरी के आश्रय का मैं सदा प्रार्थी हूँ।
चित्तौड़गढ़ री राय, सदा सेवक सहाय
No comments:
Post a Comment