श्री बाण माताजी की असवारी हंस , सिंह , घोड़ा , भैंसा और हाथी
सिसोदिया गहलोत वंश की कुलस्वामिनी चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी की महिमा ही निराली हैं , इनकी महिमा का वर्णन करने के लिए लेखनी की स्याही कम पड़ जाती हैं । दुर्गा सप्तशती में माता लक्ष्मी , माता , सरस्वती और माता महाकाली के बराबर माता ब्रह्माणी को माना गया हैं , माता पार्वती का ही स्वरूप होने के बावजूद भी बाण माता पूर्ण सात्विक व् पवित्र देवी हैं ।
इनके चमत्कारों व् भक्तों की अथाह भक्ति व् मात्र प्रेम के कारण मैया के संपूर्ण भारत से दर्शन हेतु भक्त चित्तौड़ आते हैं ।
इन्हें बाण माता , बायण माता , ब्राह्मणी माता , बाणेश्वरी माता , वरदायिनी माता और कन्याकुमारी माताजी के नाम से भक्त पुकारते हैं ।
जैसे इनके भिन्न-भिन्न नाम हैं वैसे ही इन्होंने भिन्न-भिन्न असवारी धारण की हैं , जब अलग-अलग मंदिरों में भक्त बाण माता की अलग-अलग असवारी को देखते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं और उनके मन में शंका उत्तपन्न हो जाती हैं कि यह बाण माता हैं या नही?
मित्रों श्री बाण माताजी भक्त मण्डल जोधपुर ने हमेशा आपको श्री बाण माताजी के बारे में माजी के शुभाशीष से सही एवं स्पष्ट जानकारी दी हैं और हमेशा देते आएंगे ।
चित्तौड़गढ़ स्तिथ मंदिर में विराजमान श्री बाण माताजी और अधिकतर मंदिरों में तथा वेदों आदि में श्री बाण माताजी को हंस की असवारी बताई गयी हैं ।
हंस एक पक्षी है , भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक ( जल और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है , जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है। पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती , गायत्री माता , बाण माताजी एवं मेहर माता का वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे। यह पक्षी दांपत्य जीवन के लिए आदर्श है , इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती है। हिंदू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
कोई भी भक्त अनुमान नही लगा सकता कि एक देवी इतनी सवारी धारण कर सकती हैं!
चित्तौड़ गढ़ ( पाट स्थान ) , राजस्थान और गुजरात के कई छोटे बड़े मंदिरों में श्री बाण माताजी की हंस ही असवारी हैं ।
अष्ट पहर चौसठ घड़ी ,में सिंवरूँ देवी तोय ।
हंस सवारी होय ने , बायण दर्शन दीजौ मोय ।।
घोड़े की असवारी :
घोड़े की असवारी वाला मुख्य मंदिर केलवाड़ा ( कुम्भलगढ़ ) का हैं जिसका निर्माण महाराणा हमीर सिंह ने कराया था , इसके अलावा प्रतापगढ़ में भी श्री बाणेश्वरी माँ का प्राचीन घोड़े की असवारी वाला मंदिर विद्यमान है।
पंचकुंडी ( राजस्थान ) और जंबूसर ( दधिमता ) , गुजरात स्थित मंदिर में श्री बाण माताजी ने षष्ट भुजा धारण कर घोड़े पर विराजमान हुए हैं । दौलपुरा ( प्रतापगढ़ ) स्थित मंदिर रविकुल भूषण एकलिंग दीवान श्री महाराणा महेंद्र सिंह जी के कर कमलों से इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुयी हैं इस मंदिर में श्री बाण माताजी ने घोड़े पर सवारी की हैं ।
हायल सुण हय असवार हुयी , जगदम्बिका स्वरुप ।
ब्रह्मा , विष्णु , महेश मनावे , मनावे माँ महाभूप ।।
षष्ट भुजाळी भगवती , आजै सदा सहाय ।
तुरंग तेज दौड़ावजे , सेवक संभळीयों न जाय ।।
भैंसे की असवारी वाले मंदिर : देचू स्थित 300 साल पूर्व निर्मित मंदिर में श्री बाण माताजी भैंसे पर सवार होकर बिस भुजा धारण किए हुए हैं । देचू रामदेवरा जाते समय बिच रास्ते में आता हैं ।
भैंसों माँ रे सोवतों , सोवे सोळह शिणगार ।
देचू माहि आप बिराजो , गळ फुला रो हार ।।
आस काई उणरी करूँ , हैं जिणरै दो हाथ ।
मो लिनी शरण जिणरी , वा बीस भुजाळी मात।।
सिंह सवारी :
श्री बाण माताजी के सिंह सवारी वाले कई मंदिर आपको राजस्थान में देखने को मिलेंगे , राजसथान में स्थित आज से 1300 साल पूर्व का मंदिर सालोड़ी , 250 साल पूर्व निर्मित उजलिया मंदिर , सलूम्बर राजमहल , मालानी क्षेत्र में सड़ा आदि गांवों में स्थित मंदिरों में श्री बाण माताजी ने सिंह की सवारी धारण कर भक्तों का उद्धार किया ।
इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि युद्धों में राजा-महाराजाओं की सहायतार्थ हेतु मैया ने सिंह की सवारी की होगी ।
वनराज गाजै घणो , जद हुवे मात सवार ।
सुर संत अर शूरमा , करें मात जुवार ।।
चढ़े सिंघ विचरती , जपूं में आठों पहर ।
हे रणदेवी ब्राह्मणी , करजे मोपे महर ।।
हाथी की सवारी वाला मंदिर :
देव नगरी सिरोही को धरती पर वैसे तो श्री बाण माताजी के कई विशाल मंदिर बने हुए हैं लेकिन प्रकति की छटा में छुपा सिलोइया स्थित मंदिर की महिमा ही निराली हैं यहां पर मानो स्वयं इन्दर देव की अपार कृपा हो जिससे यह जगह हर समय हरीभरी रहती हैं ।
यहां पर चित्तौड़गढ़ राय ने हाथी पर असवारी कर मातेश्वरी का कृष्ण रंग भक्तों के मन भाता हैं व् भक्तों के कष्ट हरता हैं ।
मदकल पर मेवाड़ी माय , हुयी अरि ले असवार।
कष्ट निवारे ब्राह्मणी , म्हाने एक थारों आधार ।।
जिस प्रकार असुरों का विनाश करने हेतु माँ जगदम्बा ने अलग-अलग रूप धारण किए , उसी तरह चित्तौड़गढ़ राय राज राजेश्वरी श्री बाण माताजी ने समय-समय में अपने भक्तों की सहायता एवं रक्षार्थ हेतुं अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर अपने भक्तों की रक्षा कर माँ की ममता का एक अनूठा उदाहरण दिया , चित्तौड़गढ़ राय का अपनों भक्तों के प्रति अथाह प्रेम एवं ममता हर देवी-देवता से कई गुना ज्यादा हैं ।
इनकी भिन्न-भिन्न असवारी देख कर आचर्यचकित न होवे इसकी लीला केवल यही जानती हैं अगर आप हंस के सिवाय श्री बाण माताजी की घोड़ा , हाथी , सिंह और भैंसे की असवारी वाला मंदिर दिखे तो भ्रमित न होवे ।
हाथी बैठ हाजर खड़ी , घोटक पर माँ ध्यान धरे ।
कलकंठ पर कल्याण करें , भैंसा पर माँ भय हरे ।।
राजस्थान में ऐसे कई मंदिर हैं जिनकी जानकारी अभी तक लोगो को पता नही हैं , आप सभी पेज और ब्लॉग से जुड़े सभी भक्तों से निवेदन हैं कि आपके गाँव या आपकी जानकारी में श्री बाण/बायण/ब्राह्मणी/बाणेश्वरी माताजी का कोई भी मंदिर हो तो हमसे संपर्क करें और हमारे व्हाट्सएप्प पर भेजे ।
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