Friday, 29 April 2016

श्री बाण माताजी के दोहे

देवी दर्शन देवीया , धन घड़ी धन भाग ।
बायण बारणे आविया , अब तो सेवक जाग ।।
विडारनी देत्य वंश , बाणासुर बायण ब्राह्मणी !
नीवारनी विघ्न अनेक , बप्पा भूप तारणि !!
रण रमता हमीर ने , नजरे आप निहारा ।
भुज मलेच्छ रा भांजिया , आखर आय उबारा ।।
हमीर हठिला राजवी , हिये नित बायण राखे ।
हेलो सुण दौड़ी आवे , फळ भगती रो चाखै ।।
पाटण गढ़ परभात मे , पहुंचे लक्ष्मण दरबारा ।
सपने दरशन देविया , भयो गहिल उजियारा ।।
मलेच्छा रे विरुद्ध में , अजब खेल रचाया ।
अन्न धन रा भण्डार भर् या , बेले बायण आया ।।
आयल क्षत्रियों रे अवतरी , रुद्राणी तू ब्रह्मणी ।
रूद्राक्ष हाथ धारण करि , समद जाय समाणी ।।
झळां हळां झळां हळां , करंत कान कुण्डळा ।
सोळां कळां सम्पूर्ण , भाल है मयंक निरमळा ।।
सोळां कळां सम्पूर्ण , करत कान कुण्डळा ।
भजु बायण भव माय , करो मात मंगळा ।।
चितौड़ गढ़ री धणियाणी , मिळे थारे चरण री धूल ।
प्रसन्न भवानी भेगी रेवजे , माफ किजो सब भूल ।।
भवानीह माँ भगवती , भव्याह भगवत भाण ।
या देवी बायण माँ , सेवा करे नित राण ।।
विध्व करण मंगल करण , भूमि परम् अनूप ।
बायण मम हृदय असो , भूपन की तुम भूप ।।
हमीर सिंह हरदम , बायण भक्तिं में जिव लगाया ।
बायण आय बाह पकड़ी , चित्तौड़ी राज दिलाया ।।
दर्शन सु दुखड़ा मिटे, भागे रोग सब दूर ।
हलकारे हाजर होवे , आवे भवानी समरूप ।।
चित्तौड़ वाळी ने सुमरत , नित लेवा थारो नाम ।
कृपा मोपे राखजो , लुळी लुळी करू प्रणाम ।।
विच गाळा नाळा वहैं , जोवण जाळा जोय ।
मन जंजाळा मेटि दे , बायण रखवाला होय ।।
जगदम्बा जग जोगणी , जाणी देस विदेस ।
ब्रह्मा विष्णु नित नमे , मनावे महेस ।।
जय जय माँ बायण , चित्तोड़ वाळी संकट टार ।
कृपा सूत पर किजियो , माँ उमा रा अवतार ।।
    भूप भड़ भगत सुमरे , भजे है भोले नाथ ।
भक्तिं करू भवानी री , बायण रखो सूत सर हाथ ।।
भज भगत माँ बाण ने , बायण राखी ख़याल ।
जो भजिया माँ बाण ने , वाने किया निहाल ।।
चार भुजा अति शोभती , बेठी चित्तोड़ गढ़ ।
संकट भज बायण सूत के रह्यो , आसी माँ हंस चढ़ ।।
मात धरा पर अवतरया , आणद भयों अपार ।
गुहिलोत मन राजी घणा , परगटो बारम्बार ।।
दुःख हमीर रो दूर हुयो , खुशियां अपरम्पार ।
रण राणा है जितियों , लियों बायण माँ तार ।।
हाथ धनुष-बाण सोवणा , गळ फुला री फूल माळ ।
एक थारो नाम लिया , बायण भागे दूर सब जाळा ।।
मात मनाऊं ब्राह्मणी , राखो छत्तर चाव ।
थूं भूखी प्रेम री , धरु भगती में भाव ।।
बायण मुख यु अखियों , सरस वैण सरसाव ।
हमीर थूं भड़ जितसी , दुठाँ ऊपर डाव ।।
धिन धोरा धिन घाटियां , धिन मेवाड़ी राण ।
बप्पा थूं सत जाणजे , महि थिर रहसि माण ।।
घर-घर बाजै बधावणा , घर-घर मंगलाचार ।
गुड़ धाण लड्डू बटै , मंगल गीत विचार ।।
बायण बेटों देवियों , आणंद भयो अपार ।
असम्भव ने सम्भव करें , खम्मा मात मेवार ।।
नमो नमो मातेश्वरी , नमो नमो जगदम्ब ।
दास जनों के कारणे , बायण करती नही विलम्ब ।। चिड़िया चहकै चाव सूं , कलरव करै किलोळ ।
बायण आया देश में , रमैं मोर रमझोळ ।।
छायों उमंग अजबरों , आंच न आई आण ।
बायण हमीर री सहाय करी , चहु दिस भयो बखाण ।।
जगत भवानी जोगणी , जग री तारणहार ।
बायण बाळक री सहाय करो , दो दुश्मन को मार ।।
आतम आलस पहल तज , ओळख आद विसन्न ।
जै मनोरथ मन करें , सो पुरें बायण ।।
गढ़ में दिसे गूंजती , माँ बायण री जयकार ।
नित नेम ती नाम लिया , दूर होवे अन्धकार ।।
मावड़ी मनाऊ मेवाड़ री , नित उठ लागू पाय ।
दर्शन दुर्लभ थारा ब्राह्मणी , कष्ट सब मिट जाय ।।
जलम जलम रो नातों है , माँ बायण रे साथ ।
इच्छा एक मावड़ी , पकड़्या रहिजे हाथ ।।
भव सूं मांग्या नही मिले , मिलसी एक बार ।
मांगो माता बाण थी , इणरो देसी आ दरबार ।।
सुरसत सुमरिया सदबुद्धि मिले , लक्ष्मी सु धन ।
बायण भज भाई म्हारा , चारों धाम इण चरण ।।
माजी म्हारा मन मोवणा , हिवड़ै हेत अपार ।
बायण बेगा आवजो , म्हारी चित्तोड़ री सरकार ।।
माँ काली रे रूप में , दरश दिया माँ आय ।
लक्ष्मण साथे चालसु , करसु कुल सहाय ।।
चित्तोड़ गढ़ धणियाणी री , महिमा अपार अनन्त ।
देश विदेशा जाणता , मनावे नर नारी अर संत ।।
सुख देणों दुःख मेटणो , माँ बायण रो नाम ।
चरण शरण दे ब्राह्मणी , पुनि पुनि करू प्रणाम ।। चित्तोड़ गढ़ की बाण माँ , अपरम्पार अनन्त ।
भले पधारे भक्त जन , नर नारी अर संत ।।
नर नारी अर संत , ग्यानी जन ज्ञान सुणावै ।
ज्याने बायण करे निहाल , चित्तोड़ दोड़्या आवै ।।
कुल कल्याणी मेवाड़ री , बायण मात हमारी ।
महाराणा मनावता , खम्मा खम्मा कन्या कुमारी ।।
भवन बुहारे पवन थारों ,  इन्दर करे छिडकाव ।
चाँद सूरज ज्योति करे , नाग करे थारे चाव ।।
मोटो कोई न माँ आपसु , आप माँ शक्ति महान ।
ब्रह्मा विष्णु आप मनावे , शिव धरे थारो ध्यान ।।
बाण तू ब्राह्मणी , शक्ति रूप हजार ।
पूजे बामण बाणिया , ध्यावे ओ संसार ।।
सारे संत अर देवता , थारे चरणों रा दास ।
खेतल थारा लाड़ला , हर दम रेवे पास ।।
महामाया जगदम्बिके , जग री पालनहार ।
दुर्गा परम सनातनी , एक थारों आधार ।।
महागौरी वरदायनी , मैया दया निधान ।
भव तारण ब्राह्मणी , करती जग कल्याण ।।
महसिधि महायोगिनी , महामाया बायण मात ।
असुरो री संहारिणी , थारी निराली बात ।।
महिमा थारी गात हैं , सारा वैद पुराण ।
सिसोदिया गहलोत कर रह्या , मायड़ रा गुणगान ।।
बाणासुर एक दैत्य था , पापी नीच शैतान ।
बल पर उणनै आपरे , अति हो अभिमान ।।
संझयों न म्हारी मात ने , वो दुष्ट नादान ।
माँ बायण है मिटावियों , उणरो नामो निशान ।।
सुख दायनी धन दायिनी , बायण थारों नाम ।
महामाया मेवाड़ री , अनेक थारा धाम ।।
ज्योति रूप ज्वाला जगे , माँ थारी निराली शान ।
सूद मन जो सुमरता , वा रो रखती ध्यान ।।
शरणे सब कुछ सोपियो , धन दौलत दरबार ।
काली रूप दरश दिया , कियो लक्ष्मण उद्धार ।।
हमीर भगत रो थे भवानी , खूब बढ़ायो मान ।
रण रजपुतों जितियों , थारों लगाई ध्यान ।।
बायण थाने सुमरिया , सब सुख हैं मैं पाया ।
दुःख म्हारा सब दूर किया ,द्वारे सीस झुकाया ।। काल रूप माँ कलिका , अजब रचाया वेश ।
अस्तु कह रूप उज्ज्वल किया , आई ब्रह्माणी भेष ।।
कुलस्वामिनि गहलोत री , खेतल थारा लाल ।
असुरों पर माँ टूट पड़ी , बण उणरो माँ काल ।।
पाटण गढ़ सूं उड़ हंसौ, मेवाड़ मांही आयौ
मरु री धरती ने देख ,  मन उणरो चकरायौ
जौहर शाका नित हुवे ,  आ धरती अणजाणी
भड़ भगता री बात न पूछौ, लहू बहे ज्यूँ पाणी
गढ़ मोटो मेवाड़ रो ,  अद्भुत किलो निजर आयों
हंसौ उड़ किला में बैठों , माँ बायण रो थान थपायों
मोटी मात भवानी म्हारी , बप्पा लक्ष्मण गुण गावै
पल में दुखड़ा दूर करे , अपार  सुख सरसावै
नर नारी दर्शन ने आवे , राखे माँ चतर छाया
इण देवी री बात न पूछों , मोटी माँ री माया
रोगी भोगी सब आवे , सुखी हो जावे काया
जरणी मात जगदम्बा म्हारी , प्यारी लागै भाया
बेटा ज्यारा खेतल देव , सारंगवास रा निवासी
श्वान सवारी ज्यारे शोभती , महिमा ज्यारि साची
लुटण राज मेवाड़ रों  , दुष्ट ख़िलजी आयौ
भुज भवानी भांजिया , ख़िलजी अति घबरायौ
अन्न धन्न भण्डार भरी , सेवक सहाय आई
सुमरिया पार उतारिया , मातेश्वरी मेवाड़ी माई
अनु उतारे आरती ,  मातेश्वरी थू मतवाळी
महेंद्र मनाया आवजों , मात चित्तोड़ गढ़ वाळी ।

विशेष सुचना :- दोहो में काँट छांट न करें यह दोहे मैंने स्वयं बनाए है ।  ( महेंद्र सिसोदिया )

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