सलूम्बर राज महल में विराजमान श्री बाण माताजी की महिमा ही निराली हैं।
मेवाड़ की सेना में " हरावल " पंक्तीं के अधिकारी चूण्डावतों के पाटवी ठिकाणा सलूम्बर राज महल में राजपरिवार द्वारा स्थापित मन्दिर हैं , आजादी से पूर्व इस मंदिर में मातेश्वरी की पूजा स्वयं रावत जी एवम् समस्त राज परिवार द्वारा की जाती थी।
किवदंतियों के अनुसार एक बार रावत जी सलूम्बर से स:परिवार उदयपुर आ गए , वे सलूम्बर से बाण माताजी को भी अपने साथ लेकर आ गए , तब बाण माताजी वहा से स्वयं यहा सलूम्बर आकर वापस विराजमान हो गए ।
कुछ समय के लिए मन्दिर में ज्यादा संख्या में चमगादड़ों ने अपना बसेरा बना लिया था , इसकी वजह से मंदिर में किसी का आना जाना नही रहता था ।
अभी माँ की कृपा से मन्दिर में एक भी चमगादड़ नही है , मातेश्वरी के पुजारी जी एवम् ग्रामवासि बताते है कि मातेश्वरी दिन में तीन रूप करती है , और इस अद्भुत चमत्कार को " श्री बाण माताजी भक्त मंडल जोधपुर " के सदस्यों और मातेश्वरी के परम् आराधिका अनुराधा जी गहलोत ने माँ के सन्मुख रह कर यह चमत्कार देखा है । मन्दिर के ऊपरी भाग में
कालिका माताजी का मंदिर हैं जहा रावत जी स्वयं नवरात्रि में उदयपुर से आकर यहा मातेश्वरी की पूजा अर्चना करते है । मंदिर परिसर में यहा के बुढ़े बुजुर्गो ने बताया कि यहा एक नाग नागिन का जोड़ा भी रहता है , जिनमे नाग देवता के बड़ी बड़ी मुछे भी है , कई सालों से यह नाग नागिन का जोड़ा है लेकिन किसी को आज तक बिना कारण नुकसान नही पहुचाया ।
सलूम्बर में विराजित बाण माताजी युद्धों की देवी हैं , अक्सर युद्धों में जाते समय मेवाड़ की सेना एकलिंग जी का नाम लेकर युद्ध के लिए निकलती हैं लेकिन हरावल पँक्ति के हकदार चुण्डावत ख़ास कर चूण्डावतों का पाटवी ठिकाणा सलूम्बर में सर्व प्रथम अपनी कुलदेवी की आराधना युद्ध में साथ चल सहायता करने का आह्वान करते थे ।
वैसे तो बाण माताजी की हंस की असवारी हैं लेकिन यहा मातेश्वरी की सिंह की असवारी है , बाण माताजी भक्तों का उद्धार करने वाली संकट हरने वाली मैया आपके श्री चरणों में प्रणाम ।
माँ से एक निवेदन : प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव || :-
विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हम पर प्रसन्न हो ओ।
त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि ! सब
भक्तो को वरदान दो |
दोहा :-
रण देवी थू दुरग देवी , भगत भूप घणा भाय ।
शगति सलूम्बर वाळी सुमरिया , कष्ट सब मिट जाय ।।
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